मीडिया की जिम्मेवारी पुष्टि वाली खबरें देना है व अफवाहों का खंडन करना या जागरूक करना है। यह जिम्मेवारी केवल महत्वपूर्ण ही नहीं बल्कि समाज और देश की सेवा है। खासकर हमारे देश में जहां साम्प्रदायिक टकराव के आसार बहुत अधिक हैं। पता नहीं चलता कब दो व्यक्तियों का आपसी झगड़ा साम्प्रदायिक झगड़ा बन जाता है। बीते दिनों उत्तर प्रदेश में एक सम्प्रदाय के बुजुर्ग व्यक्ति से मारपीट का मामला पूरे मीडिया में छाया रहा है, जिसे एक व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर अप्लोड कर सनसनी फैला दी। यह वायरल वीडियो मुख्य धारा के मीडिया की खास खबर बन गई लेकिन २जैसे-जैसे मामले के राज खुलते गए मामला आपसी कलह का सामने आने लगा। पता नहीं ऐसी कितनी ही वीडियो सोशल मीडिया पर प्रतिदिन वायरल हो रही हैं।
जहां तक जिम्मेवार मीडिया का संबंध है, ऐसी वीडियो को सच मानकर खबर तैयार करने से लेकर सबसे पहले पेश करने की बुरी नीति से बचना होगा। कुछ मीडिया संस्थाओं ने खबरों की जांच कर उनका झूठ पाठकों/दर्शकों तक पहुंचाने का अच्छा काम शुरू किया है। लेकिन मीडिया का एक हिस्सा वायरल वीडियो को अपनी खबर का सही स्त्रोत मानकर वाह-वाही लूटने की लत का शिकार हो गया है। सोशल मीडिया का अपना महत्व है लेकिन इसका दुरूपयोग समाज के लिए खतरनाक है। देश ने आजादी से पहले भी अफवाहों के कारण दंगों के रूप में बहुत नुक्सान उठाया है। चाहिए तो यह था कि सोशल मीडिया जैसी क्रान्ति लोगों को अफवाहों से बचाने में सहायक सिद्ध होती लेकिन काम उल्टा हो गया है।
स्वार्थी व असामाजिक तत्वों ने सोशल मीडिया का इस हद तक दुरूपयोग किया है कि फेसबुक, ट्वीटर जैसे बडे प्लेट फार्मों का अमेरिका सहित भारत व अन्य देशों की सरकारों के साथ कानून एवं अभिव्यति को लेकर टकराव हो गया है। मामले अदालतों में विचाराधीन हैं। विचारों की आजादी जरूरी है लेकिन किसी घटना में कितनी सूचना है व कितनी अफवाह ये अंतर समझने की जिम्मेवारी मीडिया की है। देश व समाज में सद्भावना व प्रेम-प्यार को कायम रखने के लिए मीडिया को हमेशा चौकन्ना रहना होगा। सत्य शिवम सुंदरम ही मीडिया का आधार होना चाहिए।
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