पाकिस्तान के साथ-साथ भारत भी शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का पूर्णकालिक सदस्य बन गया। इसे भारत की एक बड़ी कूटनीतिक सफलता माना जा रहा है। इस प्रकार भारत अब एक और अंतरराष्ट्रीय मंच पर अहम् भूमिका निभाने जा रहा है। पिछले दिनों भारत और पाकिस्तान को एससीओ का पूर्णकालिक सदस्य बनाया गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अस्ताना में एससीओ शिखर सम्मेलन से इतर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से मुलाकात की थी। दोनों देशों के बीच चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की सदस्यता के मुद्दे पर बढ़ते मतभेदों के दौरान हुई इस मुलाकात को संबंध सुधारने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है।
दोनों नेताओं के बीच की यह मुलाकात इस लिहाज से खास है कि यह इनके बीच की इस साल की पहली मुलाकात है और यह भारत द्वारा बेल्ट एंड रोड फोरम का बहिष्कार किए जाने के बाद हुई। पीएम मोदी करीब 8 महीने बाद चीन के राष्ट्रपति से मिले। एससीओ में भारत की पूर्ण सदस्यता का समर्थन करने पर भारत ने चीन का धन्यवाद किया।
दोनों देशों के बीच इस औपचारिक बैठक को काफी अहम् माना जा रहा है, क्योंकि चीन के सीपीईसी और एनएसजी में भारत की नो एंट्री पर दोनों देशों के रिश्तों में खटास रही है।
अब उम्मीद है कि इस बैठक के बाद कुछ सकारात्मक कदम सामने आ सकते हैं। इससे पहले पीएम मोदी ने करीब 17 महीने बाद इस सम्मेलन में पाकिस्तान पीएम नवाज शरीफ से मुलाकात की। भारत-पाक रिश्तों में तनाव व दोनों प्रधानमंत्रियों की मुलाकात की अटकलों के बीच एक कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ ने एक दूसरे का अभिवादन किया और एक दूसरे का हालचाल पूछा।
एससीओ की स्थापना अप्रैल 1996 में चीन के शंघाई में हुई थी। उस समय चीन और रूस के अलावा मध्य एशिया के तीन देश कजाखस्तान, किर्गिस्तान और तजीकिस्तान इसके संस्थापक सदस्य थे, इसलिए तब इसका नाम शंघाई-5 रखा गया था। 2001 में उज्बेकिस्तान के शामिल होने के बाद इसका नाम बदलकर शंघाई सहयोग संगठन कर दिया गया।
अब यह 8 देशों वाला एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग का मंच बन गया है। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य मध्य एशिया में सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर आपसी सहयोग बढ़ाना है। एससीओ की सदस्यता मिलने से भारत का मध्य एशियाई देशों से रिश्ते और प्रगाढ़ होंगे। वहां के बाजारों में भारत का प्रवेश आसान हो जाएगा।
मध्य एशिया के देशों के पास गैस का बड़ा भंडार है। चूंकि चीन पहले ही रूस से बड़े पैमाने पर अपनी जरूरत की गैस ले रहा है, ऐसे में कजाखस्तान, तजीकिस्तान, उज्बेकिस्तान जैसे देश अपनी गैस की बिक्री के लिए भारत की ओर देख रहे हैं। रूस और कजाखस्तान जैसे सदस्यों के साथ प्राकृतिक गैस खरीद को लेकर भारत की बातचीत पहले से हो रही है।
रूस से भारत तक गैस पाइपलाइन बिछाने की योजना पर भी बातचीत चल रही है। इसी तरह भारत, किर्गिस्तान के साथ भी ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग करना चाहता है। विभिन्न देशों की ऊर्जा जरूरतों के बीच सामंजस्य बनाने के लिए एक समिति भी बनी है। भारत मध्य एशियाई देशों में बड़ा निवेश कर सकता है।
साथ ही ऊर्जा संरक्षण से जुड़ी आधुनिक टेक्नॉलजी भी इन मुल्कों को उपलब्ध करा सकता है। एससीओ की सदस्यता कूटनीतिक नजरिए से भी महत्वपूर्ण है। बताते हैं कि भारत के शामिल होने से इसमें चीन का प्रभुत्व कम होगा। अब चीन, पाकिस्तान के हर कदम का आंख मूंदकर समर्थन करने से भी हिचकिचाएगा। लेकिन चीन ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना को लेकर भारत पर कूटनीतिक दबाव बना सकता है।
एससीओ की सदस्यता हासिल करने में पाकिस्तान ने भले ही सफलता हासिल कर ली हो, पर उसके साथ बहुत अच्छा नहीं हुआ। एससीओ की पूर्ण सदस्यता मिलते ही जहां एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एससीओ के ही मंच से पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर लपेटा, वहीं दूसरी ओर उसके सदाबहार दोस्त चीन के राष्ट्रपति शी ने भी ब्लूचिस्तान में दो चीनी शिक्षकों की हत्या से खफा होकर पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से रस्मी मुलाकात तक नहीं की।
कह सकते हैं कि पाकिस्तान के खिलाफ भारत को एससीओ के रूप में एक ऐसा कारगर मंच मिल चुका है, जहां आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को आसानी से घेरा जा सकता है। एससीओ के मंच पर द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा नहीं हो सकती। यह बात एससीओ के सभी सदस्य देश अच्छी तरह से जानते हैं। भारत सभी मंचों पर जहां पाक द्वारा आतंकवाद को प्रायोजित करने का मुद्दा जोर-शोर से उठाता रहता है वहीं पाकिस्तान जवाब में कश्मीर का मुद्दा जोर-शोर से उठाने का प्रयास करता रहता है।
चूंकि आतंकवाद आज एक विश्वव्यापी समस्या बन चुका है ऐसे में एससीओ के मंच से आतंकवाद का मुद्दा उठाने में भारत को कोई समस्या नहीं आएगी जबकि पाकिस्तान को इस मंच से कश्मीर का मुद्दा उठाने का मौका नहीं मिलेगा क्योंकि पूरी दुनिया कश्मीर को भारत-पाकिस्तान के बीच का द्विपक्षीय मुद्दा मान चुकी है और उसे अकसर इसे द्विपक्षीय रूप से सुलझाने की सलाह भी मिलती रही है।
पाकिस्तान लाख चाहकर भी एससीओ का हाल सार्क जैसा नहीं कर सकता। सार्क में तो पाकिस्तान जब तब भारत का रास्ता काटने का प्रयास करता रहता था लेकिन एससीओ में पाकिस्तान के लिए ऐसा करना असंभव है। इस संगठन में चीन और रूस जैसी बड़ी ताकतें और मजबूत अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं जो अपने आर्थिक हितों की खातिर पाकिस्तान को संगठन के एजेंडे से इतर कुछ भी करने की इजाजत नहीं देंगी।
भले ही रूस द्वारा भारत को सदस्यता दिलाने के जवाब में चीन ने पाकिस्तान के लिए भी एससीओ के दरवाजे खोलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो। ऐसे में जब एससीओ में शामिल देश आतंकवाद के मुद्दे को लेकर भारत की चिन्ताओं पर ध्यान देंगे तो पाकिस्तान पर निश्चित ही दबाव पड़ेगा।
बहरहाल, यह कह सकते हैं कि भारत आतंकवाद के मुद्दे को उठाकर पाकिस्तान को एक्सपोज कर सकता है क्योंकि यह एक ऐसा बहुपक्षीय मसला है जिससे सभी देश पीड़ित हैं। आतंकवाद से लड़ने के लिए सभी सदस्य देशों ने प्रस्ताव पास किया था, जिससे एससीओ के ऐंटी टेरर चार्टर को मजबूती मिली।
माना जा रहा है कि आतंकवाद के मसले पर रूस के लिए भारत का सहयोग करना और भी आसान हो जाएगा। अन्य मामलों में भी दोनों में सहयोग बढ़ेगा। उम्मीद है भारत की उपस्थिति से इस संगठन को एक नया तेवर मिलेगा। देखना है कि भारत इसका कितना लाभ उठा पाता है?
-राजीव रंजन तिवारी
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