देश में चिटफण्ड घोटाले एक के बाद एक उजागर होते जा रहे है। चिट फंड भारत में एक (Chit fund scam) प्रकार की बचत संस्थाएँ हैं। यह एक निश्चित अवधि के लिए आवधिक किश्तों में पूंजी को निवेश करने सम्बन्धी व्यक्तियों के समूह का एक समझौता होता है। चिट फंड ऐसे लोगों को जिनकी बैंकिंग सुविधाओं तक सीमित पहुंच है , को बचत और उधार की सुविधा प्रदान करता है। भारत में चिट फंड 1982 के चिट फंड अधिनियम के अनुसार संचालित और विनियमित किये जाते हैं । वे केंद्रीय कानून के माध्यम से शासित होते हैं जबकि राज्य सरकारें उनके विनियमन के प्रति जिम्मेदार होती हैं। चिटफण्ड कम्पनियों ने एक के बाद एक लोगों को लूटने का जबरदस्त अभियान चला रखा है जब करोड़ों-अरबों रुपये चिटफण्ड कम्पनियां लूट कर फरार हो जाती हंै तब जनता को समझ में आता है कि उनके साथ धोखा हुआ है लेकिन जनता के धोखे से सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता।
वास्तव में चिटफण्ड कम्पनियों के नाम पर धंधा वर्षों से चल रहा है। चेहरे बदल कर , नाम बदलकर लुटेरे इस धंधे में उतरते रहते हैं। वैसे देखा जाए तो यह हमारे बैंकिंग सिस्टम की फेल होने की निशानी भी है। लोग अपनी गाढ़ी कमाई को मुसीबत के दिनों के लिए बचा कर रखना चाहते हैं। स्वाभाविक बात है कि अगर पैसे पर अच्छा रिटर्न मिले तो लोग आकृष्ट जरूर होते हंै तथा यह लोगों की चाहत भी होती है। लेकिन सरकार ने आज तक ऐसा कोई पुख्ता इंतजाम ही नहीं किया है तथा कोई कानून ही नहीं बनाया जिससे चिटफण्ड कम्पनियां लोगों के साथ धोखाधड़ी न करें। आश्चर्य की बात है कि देश भर में लोगों को किसी न किसी रूप में अच्छे रिटर्न के लिए धन जमा कराने के लिए प्रेरित किया जाता है और फिर जनता का पैसा लेकर लोग फरार हो जाते हंै। आमतौर पर छोटी बचत पर वाणिज्यिक बैंकों द्वारा दी गई ब्याज की कम दर बाजार दर के साथ सुसंगत नहीं होती है, जिसके परिणामस्वरूप मध्यम वर्ग अनियमित जमा स्कीमों की ओर रुख करता है।
राजस्थान में आदर्श कोआपरेटिव घोटाला निपटा ही नहीं था कि संजीवनी कोआपरेटिव घोटाले ने प्रदेश की जनता को हिला कर रख दिया। चिटफण्ड कम्पनियों ने लोगों के पैसों से विदेशों में बड़ी-बड़ी सम्पतियाँ जैसे इमारतें , होटल , रेस्टोरेंट आदि खोल दिये और सारा पैसा बर्बाद कर दिया। जब समय आने पर लोग पैसा लेने पहुंचे तो वहां ताले लगे मिले। जनता की गाढ़ी कमाई को लूटने वाले लोग चतुर-चालाक होते हैं , पहले लोगों के बीच में से ही अपने एजेंट तैयार करते है जो मोटी तनख्वाह और कमीशन के लालच में इन कम्पनियों से जुड़ जाते हैं। सबसे पहले ये एजेंट अपने जान-पहचान वाले लोगों को इस जाल में फंसाते हैं। चालाकी से भरे इस खेल की शुरूआत के कुछ महीनों या वर्षों तक मोटा रिटर्न लौटाकर लोगों का विश्वास जीता जाता है और फिर जब लाखों की संख्या में लोग अपनी मेहनत की कमाई इनके हाथों में सौंप देते हैं तब रातों-रात सारा पैसा लेकर फरार हो जाते है। कानून के अभाव में कल किसी अन्य नए नाम व शर्तों के साथ अपना जाल फैलाने में कामयाब होंगे।
समस्या यह है कि औपचारिक ऋण प्राप्त करना अभी भी आम आदमी के लिए बहुत मुश्किल है क्योंकि बैंक, वित्तीय संस्थान कठोर प्रक्रियाओं से ग्रस्त हैं। आज बैंकिंग व्यवस्था इतनी औपचारिकताओं से उलझी हुई रहती है जो ग्रामीण जनता की समझ से परे होता है जिससे बैंकिंग सिस्टम में आम जन का विश्वास कम हो रहा है तथा कई दफा ऐसी भोली-भाली जनता एटीएम से पैसे निकालने व कार्ड रिन्यू जैसे फेक कॉल में फंसकर अपना सारा पैसा गंवा देते है अत: ये लोग अपने इर्द-गिर्द सरल और सहज व्यवस्था की आस में इन चिटफण्ड कम्पनियों के जाल में फंस जाते हैं।
ऐसा नहीं है कि सरकार को इन फर्जी कम्पनियों के बारे में पता नहीं होता लेकिन आश्चर्य होता है कि अनेक सरकारी कानून पेचीदगियों के बावजूद ये लोग स्वीकृति प्राप्त कर लेते हैं। रिजर्व बैंक से लाइसेंस प्राप्त करते ही धड़ल्ले से जनता से पैसा उगाना शुरू कर देते हैं। कुछ वर्षों पहले भी देश के विभिन्न हिस्सों में अवैध जमाओं से लोगों को ठगने के बहुत सारे मामले सामने आये है। जिसमें शारदा चिट फंड घोटाला, रोज वैली घोटाला, सहारा घोटाला आदि जैसी स्कीम शामिल हैं। उसी तरह हाल ही में ई – बिज नामक कम्पनी की ठगी सामने आई जिसके ऊपर 17 लाख बेरोजगारों को ठगने का आरोप है। यह ई-बिज कम्पनी कॉलेज छात्रों को करोड़पति बनाने के सपने दिखाकर प्रत्येक छात्र से दस हजार रुपये ऐंठती थी तथा उन छात्रों को अपने साथ अन्य लोगों को जोड़ने के लिए प्रेरित करती थी। इस तरह करोड़ों रुपये इकट्ठा कर लिए।
इसी तरह राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय सहारा जैसी कम्पनियां अभी तक जनता का पैसा नहीं लौटा पाई है। ठगी हुई जनता किसी प्रकार की आस न बचती देख सीधा कोर्ट का दरवाजा खटखटाती है । करोड़ों लोग इस देश में ऐसे है जिनका पैसा फर्जी कम्पनियों ने लूटा है और लौटाने के नाम पर उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ ही। राजस्थान की आबादी 7 करोड़ से अधिक है। लेकिन विडंबना है कि पूरे राज्य की जनता को एक कम्पनी ठग लेती है और राज्य की तमाम संस्थाएं सिवाय अफसोस के कुछ नहीं कर पाती हैं।
फरवरी 2019 में देश के कानून मंत्री ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया था कि सरकार ने चिटफण्ड कंपनियों के बारे में कुछ फैसले लिए है। जल्दी ही सरकार इन पर लगाम कसने हेतु एक कानून लाने जा रही है लेकिन देश मे फर्जी कंपनियों से छुटकारा नहीं मिला है। चिटफण्ड एक्ट 1982 में आया था लेकिन इसे लागू करने की जिम्मेदारी राज सरकारों की है। ये वही साल है जब पीएसीएल का घोटाला सामने आ गया था। अनरेगुलेटेड डिपॉजिट स्कीम एवं चिटफण्ड संशोधन अधिनियम 2018 को मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है और कानून भी बन गया लेकिन देशभर में 140 से अधिक चिटफण्ड कम्पनियों के खिलाफ कार्यवाही का क्या स्टेटस है , किस घोटाले में कितना पैसा मिला है , इसकी जानकारी नहीं है। पीएसीएल चिटफण्ड का घोटाला सामान्य नहीं था।
इसमें लगभग 6 करोड़ लोग लूटे गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने एक तिहाई पैसा लौटाने की बात कही थी जो वापस नहीं हो सका। बंगाल के शारदा घोटाले के मामले की राजनीति हाई प्रोफाइल हो चुकी है। उस मामले में 6 साल से सीबीआई जांच कर रही है। लेकिन अभी तक जनता को अपना पैसा वापस नहीं मिला है तथा उस पर केवल राजनीति की जा रही है।
बहरहाल , राजस्थान की जनता की गाढ़ी कमाई अब वापस लौटाने हेतु राज्य सरकार को तुरंत कदम उठाने चाहिए । औपचारिक बयानों से लोगों में विश्वास पैदा नहीं होगा इसके बजाय हजारों करोड़ रुपये जो चिटफण्ड कंपनियों ने जनता से लूटा है , को सूद सहित जनता को वापस लौटाने का समय आ गया है । राज्य सरकार व केंद्र सरकार को मिल कर चिटफण्ड कम्पनियों तथा ऐसे ही सम्भावित फर्जी काम करने वालों को रोकने के लिए सख्ती से कदम उठाने चाहिए । साथ ही जनता को भी जागरूक किये जाने की आवश्यकता है कि वह ऐसे लालच में आकर अपनी पूंजी को धोखेबाज लोगों के पास जमा न करवाये ।
जनता की सावधानी से ही उनका पैसा सुरक्षित रह सकता है। कुछ साल पहले आयी एक फिल्म ‘फिर हेरा फेरी ‘ में इसी तरह के चिटफण्ड घोटाले को अच्छे से उजागर किया गया है कि किस तरह जनता को करोड़पति बनाने के सपने दिखाकर लूटा जाता है। आज यदि सरकार डिजिटल इंडिया की वकालत कर रही है तो बैंकिंग सुविधाओं को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उठानी होगी जिससे ऐसी चिटफण्ड कम्पनियों पर स्वत: ही लगाम लग सके ।
नरेन्द्र जांगिड़
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