आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा और नरेंद्र मोदी को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जहां सम्पूर्ण विपक्ष मोदी को चित्त करने के लिए एकजुट हो रहा है वहां तीन महिला नेताओं ने भी मोदी को पटकनी देने के लिए अपनी कमर कस रखी है। ये महिलाएं नेता हैं प्रियंका गांधी वाड्रा, मायावती और ममता बनर्जी। तीनों महिला नेता अलग-अलग राजनीतिक दलों से सम्बद्ध हैं मगर उनकी पार्टी पर उनका जलवा बरकरार है। कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को राष्ट्रीय महासचिव बनाकर और पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी देकर अपने इरादे साफ कर दिए हैं। उधर दो अन्य दिग्गज महिला नेता भी इस चुनाव में मोदी को चुनौती देने के लिए तैयार हैं।
ये हैं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी चीफ ममता बनर्जी और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती। ये दोनों भी मोदी और एनडीए गठबंधन को सत्ता से हटाने के लिए चक्रव्यूह रच रही है। मायावती और अखिलेश यादव ने गठबंधन करके उत्तर प्रदेश की सभी सीटें साधने की कोशिश की है। वहीं कांग्रेस ने प्रियंका गांधी वाड्रा को पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी देकर लड़ाई को और कठिन बना दिया है जबकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही मोदी सरकार को हटाने का बिगुल फूंक चुकी हैं।
लोकसभा चुनाव की दृष्टि से उत्तर प्रदेश और प बंगाल बहुत महत्वपूर्ण राज्य है। यूपी में लोकसभा की 80 सीटें है वहां प बंगाल में 48 सीटें है जो किसी भी पार्टी के लिए खासा दमखम रखने वाली सीटें है। यूपी में 80 सीटों में से भाजपा के पास 73 सीटें थी। प बंगाल में हालाँकि दो सीटें ही भाजपा जीत पायी थी। माया और ममता के बाद अब प्रियंका गाँधी वाड्रा की चुनौती का सामना भाजपा को करना होगा। मायावती ने अपने धुर विरोधी समाजवादी पार्टी से अपना गठबंधन कर अपने इरादे साफ कर दिए। ममता शुरू से ही मोदी के खिलाफ दहाड़ रही है। अब प्रियंका भी मोदी को यूपी के मैदान में दो दो हाथ करने को उतावली है।
आॅपिनियन पोल आज भी मोदी को देश का सबसे लोकप्रिय नेता बताते हैं। मोदी ने अपने पांच वर्षीय कार्यकाल में महिला कल्याण और सशक्तीकरण की अनेक योजनाएं संचालित की है। सरकार ने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा दिया, उज्ज्वला योजना के जरिए ऐसे करोड़ों घरों में मुफ्त गैस कनेक्शन पहुंचाए, जहां आज तक महिलाएं चूल्हे पर खाना पकाती थीं। इसके अलावा स्वच्छ भारत मिशन के तहत बने लाखों शौचालयों से भी सबसे ज्यादा महिलाओं को ही लाभ हुआ है। मोदी की 26 सदस्यीय कैबिनेट में छह महिलाएं हैं और सबसे महत्वपूर्ण पांच सदस्यीय कैबिनेट कमिटी आॅन सिक्यॉरिटी में भी दो महिलाएं (विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण) हैं। इन सब के बावजूद मोदी को देश की तीन सबसे तेज-तर्रार महिला नेताओं से जूझना पड़ेगा।
यह गौरतलब है ये तीनों महिला नेता अपने अपने फन की फनकार है। ममता बनर्जी ने 34 साल पुरानी वामपंथी सरकार को 2011 के विधानसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल से उखाड़ फेंका था। ममता अपनी सादगी और तेज-तर्रार राजनीतिक लहजे से अलग पहचान रखती हैं। वह बीजेपी और मोदी के खिलाफ आग उगलती रहती है। मायावती ने यूपी में पिछड़े ,दलित और अल्पसंख्यकों को एकजुट कर अपनी पहचान बनायीं है। प्रियंका अमेठी और रायबरेली से हालाँकि बाहर नहीं निकली है मगर आमजन में उनकी छवि एक करिश्माई व्यक्तित्व की है। मोदी सरकार ने मायावती और ममता के खिलाफ सीबीआई और अन्य एजेंसियों को पीछे लगाकर घेरने की चेष्टा की है वहीं प्रियंका के पति रोबर्ट वाड्रा के खिलाफ भी जमीनों सम्बन्धी कुछ मुकदमें दायर है। इन सबके बावजूद तीनों महिला नेता मोदी को चुनावी मैदान में निपटने को बेचैन है।
भाजपा में सक्रिय महिला नेतृत्व अब समय के साथ कमजोर पड़ रहा है। सुषमा स्वराज और उमा भारती ने अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की है। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन में वोटरों को खींचने का कोई दमखम नहीं है। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अवश्य जनाधार वाली नेता है मगर वह राजस्थान छोड़ने को तैयार नहीं है हालाँकि भाजपा ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का दायित्व सौंपा है। राष्ट्रीय नेतृत्व से राजे के मतभेद जगजाहिर है। आगामी लोकसभा चुनाव मोदी और उनके विरोधियों के लिए निश्चय ही महाभारत की लड़ाई से कम नहीं है। ऐसे में देश की तीन जनाधार वाली महिला नेताओं की चुनौती से मोदी कैसे पार पाएंगे यह देखने वाली बात है।
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