मौड़ बम धमाका: इन्साफ के लिए भटक रहे पीड़ित परिवार

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छ: माह बीत जाने के बाद भी नहीं किए वायदे पूरे

  • तीन बच्चों सहित छह जनों की हुई थी मौत
  • घायल अंकुश दो माह बाद हार गया था जिंदगी की जंग

भटिंडा(अशोक वर्मा)। बीती विधान सभा चुनावों के लिए चुनाव प्रचार की समाप्ति से पहले मौड़ मंडी में हुए बम धमाके में मारे गए बच्चों के परिवारों को इन्साफ के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है।

इन परिवारों के एक सदस्य को नौकरी देने का वायदा डिप्टी कमिश्नर भटिंडा ने उस वक्त किया था जब दो माह बाद मौत के मुंह में जा समाए बच्चे सौरव सिंगला का परिवार व सार्वजनिक पक्षों ने अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया था। पीड़ित परिवारों का दर्द है कि छह माह बाद भी पुलिस इस मामले को सुलझा नहीं सकी और न ही उनके साथ किए वायदों को पूरा किया जा रहा है।

इन धमाकों दौरान तीन बच्चों सहित छह जनों की मौत हो गई थी, जबकि घायल हुआ बच्चा अंकुश दो माह बाद जिंदगी की जंग हार गया था। मौड़ मंडी में राकेश कुमार की किरयाणा की छोटी सी दुकान है परंतु उसके दुखों का पहाड़ सबसे बड़ा है। चुनावी हिंसा की आग में राकेश कुमार का सातवीं कक्षा में पढ़ता पुत्र सौरव सिंगला जल गया था।

इस परिवार को अब भी अपने पुत्र के आने का इंतजार है। इसी तरह खुशदीप सिंह के घर का चिराग सदा के लिए बुझ गया। नौवीं कक्षा में पढ़ता जपसिमरन सिंह इस धमाके में दुनिया से विदा हो गया परिवार में पीछे जपसिमरन की छोटी बहन बची है। जपसिमरन के दादा डॉक्टर बलबीर सिंह ने भरे मन से कहा कि पंजाब चुनाव में कोई भी पक्ष जीता हो परंतु उन्होंने जंग हार दी है।

परिवारों का न खत्म होने वाला इंतजार शुरू

सामाजिक कार्यकर्ता राकेश नरूला का कहना था कि इस बम धमाके में जान गवाने वाले बच्चों के मां-बाप के अरमान राख हो गए हैं और परिवारों का न खत्म होने वाला इंतजार शुरू हो गया है।

जल्द होंगे मामले हल: डिप्टी कमिश्नर

डिप्टी कमिश्नर भटिंडा दिपारवा लाकड़ा का कहना था कि दो पीड़ित परिवारों को नौकरी देने की मंजूरी मिल गई है जिनको जल्द ही नियुक्त कर दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि बाकी पांच बच्चों का केस सरकार के पास भेजा हुआ है। उन्होंने बताया कि आगामी दिनों में मसला हल कर लिया जाएगा।

अब बची है तो यादों की पिटारी

धमाके में मारे गए अंकुश के परिवार के साथ भी ऐसी ही घटना घटित हुई है। अंकुश सहित मौड़ धमाके में मौत के मुंह में जा समाए चारों बच्चों की दोस्ती थी जोकि जिंदगी की पगडंडियों पर चलने से पहले ही विदा हो गए। गांव संदोहा का चौथी कक्षा में पढ़ता रिपनदीप सिंह भी इन दोस्तों के साथ दोस्ती निभाने का वायदा पूरा कर गया।

रिपनदीप सिंह के होश संभालने से पहले ही उसके पिता इस जहान से चल बसे तो पुत्र के हौसले के साथ मां ने अपने स्वामी की तस्वीर संभाल ली। अब इस दुखी मां के पास दो तस्वीरें हो गई हैं जिनकी याद उससे बर्दाश्त नहीं होती । यह बच्चे घटना वाली जगह के नजदीक गली की नुक्कड़ पर खेल रहे थे परंतु बम धमाके ने उनकी खेल को ऐसा बिगड़ा कि अब पीछे परिवारों के पास दुखों की गठरी और यादों की पिटारी बची है।

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