सबका साथ, सबका विकास नारे के साथ भज्ञरी जनादेश प्राप्त करने के बाद अब प्रधानमंत्री मोदी सबका विश्वास पर बल दे रहे हैं। उन्होने कहा जिन लोगों ने हमें वोट दिया वे हमारे हैं और जो हमारे कट्टर विरोधी हैं वे भी हमारे हैं। नई सरकार के समक्ष सबसे पहला कार्य देश के सभी वर्गों का विश्वास जीतना है। उन्होने कहा कि देश में अल्पसंख्यकों को उन लोगों ने बहुत लंबे समय तक भय के वातावरण में जीने के लिए मजबूर किया जो वोट बैंक की राजनीति में विश्वास करते हैं और यह धोखाधडी बंद होनी चाहिए। इसलिए प्राथमिकता अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के बीच विश्वास और सौहार्द को बढाने को दी जानी चाहिए। चुनाव संपन्न हो गए हैं किंतु निर्वाचन आयोग सहित कोई भी प्राधिकारी शांति से नहीं बैठ सकता है।
इन चुनावों में देश में सबसे कडा मुकाबला देखने को मिला और सघन चुनाव प्रचार भी देखने को मिला। विभिन्न पार्टियों के नए-नए नेता उभर कर सामने आए। यह कहा जा रहा है कि विभिन्न पार्टियों ने चुनाव प्रचार के लिए पेशेवर प्रबंधकों की नियुक्ति की और यह सही भी है क्योंकि जिस तरह से प्रचार, संप्रेषण, आरोप-प्रत्यारोप आदि चलाए जा रहे थे वह इसी ओर इंगित करता है। चुनाव प्रचार के दौरान प्रयुक्त भाषा के बारे में कम ही कहा जाए तो अच्छा है। चुनाव में हारने वाले या जीतने वाले उम्मीदवारों का पहला कार्य यह होना चाहिए कि वे चुनाव के तनाव से बाहर निकलें और शांतिपूर्ण ढंग से शासन पर ध्यान दें। विजेता भाजपा और पराजित कांग्रेस दोनों पार्टियों पर बडी जिम्मेदारी है। भाजपा को अपने वायदों को पूरा करना है। जबकि कांग्रेस के समक्ष वायदे पूरे करने की जिम्मेदारी नहीं है किंतु उसे पार्टी का ढांचा पुन: खडा करना है और भारी हार के बाद उसे अपनी डूबती नैया को बचाना है।
भारतीय मतदाता किसी पार्टी से बंधे हुए नहीं हैं। वे छोटी-छोटी बातों को लेकर अपना समर्थन बदल देते हैं। यहां पर प्रशासन समर्थक और प्रशासन विरोधी लहरें स्वतंत्र कारक नहीं हैं और वे चुनावों में मुख्य दावेदारों के कार्य निष्पादन के आधार पर सक्रिय होेते हैं। महागठबंधन की हार निश्चित रूप से यह साबित करता है कि चुनाव परिणाम केवल गणित नहीं है अपितु यह जनता और पार्टी तथा जनता और उम्मीदवार के बीच संबंधों पर भी निर्भर करता है। दो या अधिक पार्टियों के नेता गठबंधन कर सकते हैं किंतु वे यह नहीं सुनिश्चित कर सकते कि उनके समर्थक भी एकजुट हो जाएंगे। कुछ मामलों में गठबंधन भी हार का कारण बना है। इसलिए विजेता और पराजित दोनों उम्मीदवारों को गणितीय आकलन और व्यक्तिगत हमलों के बजाय अपने जनाधार पर ध्यान देना होगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव के पश्चात एक नया नारा राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा, क्षेत्रीय आकांक्षा (एनएआरए) दिया है। यह इन चुनावों में दलीय राजनीति को दशार्ता है जब क्षेत्रीय पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत, क्षमता और महत्वाकांक्षा का प्रदर्शन किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि इन दोनों के बीच संतुलन देश की प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है और यह क्षेत्रीय पार्टियों के समर्थन के बिना संभव नहीं है। नई सरकार को राष्ट्रीय हित में कार्य करने के साथ साथ क्षेत्रीय हितों की भी रक्षा करनी होगी। भारी जनादेश के बावजूद विजेता पार्टी के नेताओं का कहना है कि गठबंधन की राजनीति आज एक वास्तवकता है और क्षेत्रीय आकांक्षाओं को पूरा करना आवश्यक है और इसीलिए क्षेत्रीय राजनीति की आकांक्षाओं के मद्देनजर विभिन्न क्षेत्रीय नेताओं के साथ मुलाकातों का दौर चला।
भाजपा की जीत चाहे कितनी भी भारी हो किंतु उसे इस बात को ध्यान में रखना होगा कि क्षेत्रीय, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं और अपेक्षाओं को राष्ट्रीय प्राथमिकता देनी होगी। इसी तरह हमारे बहुलवादी समाज में हर वर्ग के हितों का ध्यान रखना भी जरूरी है और नई सरकार को देश के सभी वर्गां की शिक्षा, स्वास्थ्य आदि पर ध्यान देना होगा। राजग को अपने दूसरे कार्यकाल में इस सच्ची झूठी धारणा को मिटाना होगा कि वह पक्षपात से कार्य करता है और जाति तथा धर्म के आधार पर बिना किसी भेदभाव के कार्य करने होंगे। समानता और साम्यता पर न केवल बल दिया जाना चाहिए अपितु यह दिखाई भी देना चाहिए और यही समावेशी भावना है और यह जनादेश प्राप्त करने वाले की भावना भी होनी चाहिए। विभाजनकारी और वोट बैंक की राजनीति में संलिप्त पार्टियों द्वारा अल्पसंख्यकों के मन में पैदा की गयी भय की भावना को दूर किया जाना चािहए।
बडी जीत से कोई पार्टी या उसका शीर्ष नेता संविधान से बडा नहीं हो जाता है और बडी हार से किसी पार्टी या किसी नेता को यह संदेह करने, बदनाम करने और दोष देने का लाइसेंस नहीं मिल जाता कि वह किसी पद या पदाधिकारी को बदनाम करे। विजेता और पराजित दोनों की निष्ठा संविधान और उसमें वर्णित मूल्यों के प्रति होनी चाहिए और दोनों को राजनीतिक वातावरण को स्वच्छ करने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए। प्रधानमंत्री का मानना है कि लोगों ने लोकतंत्र के लिए मत दिया है और उन पर एक बडी जिम्मेदारी है।
इस चुनाव में जीत के बाद भाजपा का यह मानना स्वाभाविक है कि जनता ने उसकी आर्थिक नीतियों को समर्थन दिया है। हालांकि भाजपा आर्थिक सुधारों के बारे में जनता को विश्वास में लाने में पूर्णत: सफल नहीं हुई है फिर भी उसे असाधारण जन समर्थन मिला है। किंतु स्वच्छ छवि और स्वच्छ कार्यो के बिना जनता का समर्थन बनाए रखना संभव नहीं है। 2019 का जनादेश घरेलू और विदेश नीति दोनों के लिए है। देश की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। आशा की जाती है कि आने वाले दिनों में विश्व मंच पर भारत की छवि और सुधरेगी। भारत को आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए आगे आना होगा जो राष्ट्रीय और क्षेत्रीय शांति तथा विकास के लिए आवश्यक है। इस भारी जनादेश ने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में भारत की स्थिति में सुधार किया है और अब एशिया में उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती है तथा स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसारण कर इस स्थिति को बनाए रखा जाना चाहिए। कोई भी जनादेश स्थायी नहीं होता है। जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए विजेता को अपने कार्य निष्पादन में निरंतर सुधार करना होगा क्योंकि जनादेश क्षणिक होता है और वह कभी भी पाला बदल सकता है।
डॉ एस. सरस्वती
Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।