पाकिस्तान परस्त आतंकवाद और हिंसा के खिलाफ हम लंबी (CG Naxal) लड़ाई लड़ रहे हैं। अब तक हमने काफी कुछ खोया है। लेकिन अभी यह जंग जीतना काफी मुश्किल है। हम आंकड़ों के ग्राफ में ऐसी हिंसा की समीक्षा करते हैं। यह हमारे लिए मुनासीब नहीं है। आतंकी और नक्सल हमले कम पिछली सरकारों से कम हुए हैं या अधिक यह सोचने के बजाय समस्या को समूल नष्ट करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। दोनों ही स्थितियों में हमारे निर्दोष जवान मारे जा रहे हैं। हमारी सेना हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण है। तकनीकी विकास के बावजूद भी हम लगातार सैनिकों को खोते जा रहे हैं। शहीद होने वाले जवानों की तादाद कम है या ज्यादा यह खास नहीं। महत्वपूर्ण यह है कि आतंकी और नक्सली मुठभेड़ के दौरान हम कम से कम जोखिम उठाएं। ऐसे हालात में कहीं ना कहीं से हमारी आंतरिक सुरक्षा से संबंधित खुफिया तंत्र भी विफल होता दिखता है। क्योंकि ऐसे हमलों की वह समय पर सही और सटीक सूचना उपलब्ध नहीं करा पाता है, तो उस पर अमल नहीं होता है।
पुलवामा हमले के बाद भी नक्सली और आतंकी हमले में हमारे जवानों की शहादत जारी है। यह हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है। तकलीफ इस बात की होती है कि हमारे जवान युद्ध के बजाय आतंकी और नक्सली साजिश का शिकार बन शहीद होते हैं। हमें अपनी सेना और जवानों पर गर्व है। राष्ट्रीय सुरक्षा में हमारा जवान प्राणों की आहुति दे देता है। एक सप्ताह पूर्व जम्मू-कश्मीर के पुंछ में आतंकी हमले में पांच जवान शहीद हो गए थे। उस घटना से सात दिन बाद भी हमने सबक नहीं लिया और छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में हमारे 11 जवान शहीद हो गए।
कश्मीर में जहां जवानों की गाड़ी पर ग्रेनेड से हमला किया गया था वहीं दंतेवाड़ा में जवान नक्सली आॅपरेशन से वापस लौट रहे थे जब आईईडी ब्लास्ट में मारे गए। दोनों घटनाओं से जहां देश और सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा है वहीं शहीद परिजनों के सपने टूट गए हैं। उनकी नींद उचट गई। मां-बाप पत्नी और बच्चों के भविष्य पर सवाल खड़ा हो गया है कि जिंदगी कैसे चलेगी। क्योंकि ऐसी घटनाओं से परिवार टूट जाता है। जिस बेटे के कंधो पर परिवार के सपने पलते हों जब वहीं अलबिदा कह जाय तो क्या होगा।
सरकार और रक्षा मंत्रालय को सैन्य सेवा करते हुए शहीद होने वाले जवानों के लिए एक अलग से विशेष प्रकार का मंत्रालय और आयोग गठित करना चाहिए। शहीद सैन्य परिवारों को अधिक से अधिक आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए। उनकी धर्मपत्नी भाई या खून के रिश्ते में आने वाले लोगों को लम्बी कानूनी प्रक्रिया के बगैर सरकारी नौकरी में रखा जाना चाहिए। पीड़ित परिवारों के लिए भरपूर आर्थिक सहायता के साथ-साथ दूसरी सरकारी सहायता भी मिलनी चाहिए। सेना के जवान का वेतन उस दौरान तक जारी रखना चाहिए जब तक उसके परिवार के लिए मुकम्मल व्यवस्था नहीं हो जाती। शहीद परिजनों को गैस एजेंसी और पेट्रोल पंप जैसी सुविधाएं मिलनी चाहिए। शहीद होने वाले हर जवान को सेना का विशिष्ट सेवा पदक मिलना चाहिए।
सरकारी खर्च पर शहीद होने वाले जवान के गांव में भव्य स्मारक बनना चाहिए। ऐसे जवान के नाम पर सड़कें, स्कूल कॉलेज या सरकारी संस्थाओं के नाम होने चाहिए। सेना के जवानों की शहादत पर सरकार को खुलकर आगे आना चाहिए। हालांकि सरकार की तरफ से इस तरह की काफी सुविधाएं उपलब्ध करायी जाती हैं। लेकिन इन कार्यों में इतना विलंब होता है कि पीड़ित परिवार टूट और बिखर जाता है। क्योंकि पूरी प्रक्रिया बेहद लंबी और उबाऊ होती है। इस तरह की खबरें मीडिया में सुर्खियां बनती हैं। ऐसी स्थिति में एक स्वतंत्र मंत्रालय या सेना आयोग पूरी तरह ऐसी घटनाओं के लिए समर्पित होना चाहिए। पीड़ित जवान के परिवार की ए-टूजे मानिटरिंग होनी चाहिए।
हमारे देश में आम तौर पर राजनीतिक बयानबाजी मीडिया की सुर्खियां बनती है। अपराधियों का महिमामंडन किया जाता है। दुर्दांत अपराधी सांसद और विधायक बन जाते हैं। आम लोगों की जमीन हड़प कर भू-माफिया का काम करते हैं। राजनीति में आने के बाद बेशुमार दौलत बना ली जाती है। अपराधी, गुंडों और माफियाओं पर टीवी चैनल 24 घंटे लाइव रिपोर्टिंग करते हैं। राजनेताओं के अनाप-शनाप बयानबाजी पर लाइव डिबेट आयोजित होती है। लेकिन सेना के जवानों की शहादत पर 24 घंटे लाइव रिपोर्टिंग क्यों नहीं होती। ऐसी दुखद घटनाओं पर डिबेट क्यों नहीं आयोजित की जाती।
छत्तीसगढ़ में पिछले 5 साल के दौरान नक्सली हिंसा में 175 जवान शहीद हो चुके हैं। हालांकि इस दौरान जवानों की तरफ से सर्च आॅपरेशन और मुठभेड़ में 328 नक्सली भी मारे गए हैं। लेकिन नक्सली हिंसा में 345 आम नागरिकों को भी जान गवानी पड़ी है। लोकसभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय की तरफ से दिए गए एक जवाब में बताया गया था कि छत्तीसगढ़ में साल 2018 से फरवरी 2023 तक इतनी जवानों के साथ आम आदमी को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। जबकि आतंक प्रभावित जम्मू-कश्मीर में पुलवामा हमले के बाद 1067 आतंकी हमले में 182 जवान शहीद हुए। जबकि 729 आतंकवादी मार गिराए गए।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से घटना के संबंध में जानकारी ली है। दोनों नेताओं ने इस घटना पर गहरा दुख व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री ने अपना कर्नाटक दौरा रद्द कर दिया है। लेकिन ऐसी घटनाओं से बचने के लिए सरकार और सेना को ठोस नीति बनाने की जरूरत है। नक्सलियों को भारत के संविधान पर विश्वास करना चाहिए। हथियार छोड़कर उन्हें संवैधानिक तरीके से अपनी बातें रखनी चाहिए।
सरकार कभी भी बातचीत करने से इंकार नहीं करती है, लेकिन सवाल यह उठता है कि नक्सली क्या सकारात्मक मानसिकता के लिए बात करने के लिए तैयार है? आखिर वह समाधान की राह पर क्यों नहीं चलते? क्यों उन्हें लगता है कि आतंक के बल पर ही वे अपनी बातें मनवा सकते हैं? आखिर मुख्यधारा में लौटने की हमारी सारी कवायदें विफल क्यों हो जाती हैं? दरअसल नक्सल समस्याओं से निपटने के दीर्घकालिक उपाय के तहत नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बड़ी संख्या में रोजगार के अवसरों का सृजन किया जाना चाहिए, जिससे उन क्षेत्रों के बेरोजगार युवा निराश होकर नक्सली समूहों में शामिल ना हों। उन्हें भरोसा दिलाना होगा कि सरकार उसकी सहायता के लिए हमेशा तत्पर है।उन्हें किसी संगठन के समक्ष मदद के लिए हाथ में फैला ना पड़े,यह सरकार को सुनिश्चित करना होगा, तभी उनके मन में यह विश्वास पैदा होगा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था ही जीवन यापन के लिए सर्वोत्तम माध्यम होती है। आतंकी और नक्सली हमले में सेना के जवानों की शहादत हर हाल में रुकनी चाहिए। सेना हमारे देश अहम है। आतंकी और नक्सली हिंसा में सेना की शहादत चिंता का विषय है। ऐसी हिंसा का आखिर खात्मा कब होगा। देश कब तक ऐसी हिंसा को झेलता रहेगा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)
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