राम-नाम के जाप से ही सफल होगा मनुष्य जीवन : पूज्य गुरु जी

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 शाह सतनाम जी धाम (सरसा), शाह सतनाम जी आश्रम, बरनावा और सलाबतपुरा डेरे में हुई नामचर्चाएं (Happy Incarnation Month)

  •  पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को साध-संगत ने पावन अवतार माह की पवित्र नारे के रूप में दी बधाई
  • पावन अवतार माह का आगाज, नामचर्चाओं में गूंजा राम-नाम

सरसा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन अवतार माह अगस्त के आगमन की खुशी में रविवार को शाह सतनाम जी धाम (सरसा), शाह सतनाम जी आश्रम बरनावा (यूपी) और शाह सतनाम जी रूहानी धाम राजगढ़-सलाबतपुरा, भटिंडा (पंजाब) में आॅनलाइन नामचर्चाओं का आयोजन किया गया। नामचर्चाओं का शुभारंभ पवित्र नारा ‘धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ से व पूज्य गुरु जी को पावन अवतार माह की बधाई के साथ हुआ। इसके पश्चात कविराजों ने ‘‘अज आए सतगुरु जी, अगस्त माह में रूहों ने खुशियां मनाई’’, ‘‘जी सतगुरु जग विच आए ने, रूहों ने तड़प बुलाए ने’’, ‘‘अगस्त में छाई बहार, की इसमें आए सिरजणहार’’ आदि विभिन्न भक्तिमय भजनों के माध्यम से गुरु महिमा का गुणगान किया।

नामचर्चाओं में कोरोना के मद्देनजर सरकार और प्रशासन द्वारा निर्धारित सोशल डिस्टेसिंग, सेनेटाइजेशन और थर्मल स्कैनिंग आदि नियमों का पूर्णत: पालन किया गया। इस अवसर पर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के रिकॉर्डिड पावन वचन चलाए गए। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि मनुष्य शरीर हीरा अनमोल है; बाकी जितने भी शरीर हैं, हालांकि दुर्लभ हैं, लेकिन आत्मा के लिए जो शरीर सबसे दुर्लभ है, जिसे किसी भी मोल पर कहीं से भी खरीदा नहीं जा सकता, वो मनुष्य शरीर है। मनुष्य शरीर को दुर्लभ इसलिए कहा गया कि आत्मा को ओउम, हरि, अल्लाह, राम से बिछुड़े हुए सदियां गुजर गर्इं, युग बीत गए। मालूम नहीं कब से आत्मा तड़फ रही है, व्याकुल है और तड़पती हुई और व्याकुल आत्मा को आवागमन यानि जन्म-मरण से आजादी का मौका किसी जन्म में मिला है तो वो जन्म है मनुष्य शरीर, मनुष्य जन्म। बाकी जितने भी शरीर हैं, उनमें आत्मा आवागमन से आजाद नहीं हो सकती। लेकिन ये संभव तभी है जब सुमिरन, भक्ति की जाए।

आपजी ने फरमाया कि जब तक जीवात्मा मनुष्य शरीर में ओउम, अल्लाह, राम की भक्ति इबादत नहीं करती, तब तक आवागमन से आजाद नहीं हो सकती। जन्म-मरण का चक्कर बड़ा लंबा है। धर्मों में हमने पढ़ा, सदियां गुजर गर्इं आत्मा को भटकते हुए। युग बीत गए। अलग-अलग धर्मों में भाषा जरूर अलग-अलग है, लेकिन सभी का मतलब यही है कि आत्मा को बिछुड़े हुए युग हो गए, सदियां बीत गई, बहुत समय हो गया। पूज्य गुरु जी ने आगे फरमाया कि एक जन्म-मरण का दु:ख भयानक है। और 84 लाख बार जन्म लेना और 84 लाख बार मरना, उसका दर्द कितना आत्मा को सहना पड़ता होगा, कहने-सुनने से परे है।

पूज्य गुरु जी ने आगे फरमाया कि धर्मों में ये भी लिखा है कि आत्मा शरीर को ऐसे भी छोड़ती है, जैसे हम कपड़ा बदल लेते हैं। ये कब संभव है? इसके लिए ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरू, राम के नाम से जुड़ना जरूरी है। उस औंकार, जिसने ब्रह्मा, विष्णु, महेश को बनाया। उस नूरे जलाल, अल्लाह ताल्हा, जिसने सारी सृष्टि, खलकत, फरिश्तों को बनाया। वो एक औंकार, वाहेगुरू जिसने सब कुछ बनाया।

वो सुप्रीम पावर गॉड जिसने सब कुछ बनाया, तैयार किया। उसका नाम जपोगे तो मौत के समय चेहरे पर ज्यादा नूर आ जाता है और आदमी कई तो बताकर जाते हैं कि मैं फला टाइम पर जाऊंगा, मेरा मालिक लेने आया है। ऐसी खुशी होती है, जो ज़िंदगी में कभी हुई नहीं होती, दर्द तो दूर की बात है। सो राम-नाम, भगवान की भक्ति में इतनी शक्ति है। इसलिए मालिक का नाम लेना चाहिए। मालिक की भक्ति करनी चाहिए। मालिक की भक्ति से 84 लाख जन्म-मरण का चक्कर भी खत्म हो जाता है। इस जन्म में मौत का डर तो होता ही नहीं बल्कि आगे से भी जन्म-मरण का जो दर्द है, वो हमेशा के लिए खत्म हो जाता है। ऐसा है अल्लाह, वाहेगुरू, हरि, ओउम, राम का नाम। इसलिए मालिक का नाम लेने में हिचक नहीं करनी चाहिए।

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