पार्क में स्कूल चलाकर दे रही हैं शिक्षा
- शिक्षा के साथ समाज के अन्य कार्यों में भी रहती हैं अग्रणी
गुरुग्राम(संजय कुमार मेहरा)। तमसो मा ज्योतिर्गमय। संस्कृत के इस श्लोक का अर्थ है अंधकार से प्रकाश की ओर। इसी को चरितार्थ करते हुए मंजू देसवाल उन बच्चों में ज्ञान का दीप जलाकर अंधेरे से प्रकाश की ओर ले जाने में लगी हैं, जिन्हें स्कूल की दहलीज तक नहीं पहुंचाया जाता। अक्सर मजदूर मां-बाप के काम-धंधों में हाथ बंटाते हुए ऐसे बच्चों के जीवन में कब सुबह से सांझ हो जाती है, पता ही नहीं चलता। दिल्ली की बेटी, झज्जर की बहु और आखिर गुरुग्राम में आशियाना बनाकर रह रही मंजू देसवाल पत्नी रणबीर देसवाल (रेलवे से सेवानिवृत सीनियर सेक्शन इंजीनियर) को समाजसेवा की सोच और समझ विरासत में मिली है।
उनके दादा जी, पिता जी हमेशा गरीबों, जरूरतमंदों की मदद के लिए अपने दरवाजे खुले रखते थे। उनके पदचिन्हों पर चलते हुए ही मंजू देसवाल ने भी समाजसेवा को अपने जीवन का हिस्सा बनाया। वर्ष 2010 से हर तरह के सामाजिक कार्यों लगातार कार्यरत हैं। वर्ष 2017 में एक एनजीओ के स्कूल में मंजू देसवाल बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। कोरोना काल से पूर्व बजट की कमी बताकर संस्था ने उस स्कूल को बंद कर दिया।
2019 में ससुर के नाम से बनाई संस्था
मंजू कहती हैं कि एक स्कूल के बंद होने से ऐसा नहीं है कि हमारे लिए सभी दरवाजे बंद हो जाते हैं। हम समाजसेवा करना छोड़ दें। उन्होंने अपने घर के सामने ही पार्क में बच्चों को पढ़ाने का निर्णय लिया। उन्होंने वर्ष 2019 में अपने ससुर उदय देसवाल के नाम से उदय फाउंडेशन नाम से संस्था भी बनाई। अब वे उसके बैनर तले बच्चों को पढ़ा रही हैं। खुले आसमान के नीचे, हरे-भरे पेड़ों की छांव में बेहद ही शांत वातावरण के बीच मंजू देसवाल बच्चों की कक्षा लगाती हैं।
शिक्षा के साथ अन्य कार्यों में भी हैं आगे
बच्चों को पढ़ाने के अलावा सफाई, सुरक्षा, पेयजल, गरीब बेटियों की शादियां, लॉकडाउन में गरीबों के घरों तक खाना, राशन पहुंचाने समेत अनेक समाजहित के कार्यों को प्रमुखता से कर रही हैं। अब तो उनके समाजसेवा के जज्बे को देखकर अन्य महिलाओं में भी जज्बा पैदा हुई है। महिलाएं सामाजिक कार्यों में उनके साथ रहती हैं। पार्क के सामने के घरों में रहने वाली सीमा मक्कड़, गार्गी आदि महिलाएं भी समय निकालकर बच्चों को पढ़ाने आ जाती हैं।
सब दुखों की एक दवा…
मंजू देसवाल के समाज हित के कार्यों को लेकर सेक्टर-40 में ही रह रहीं करनाल निवासी सेवानिवृत शिक्षिका अविनाश कक्कड़ कहती हैं कि हमारे लिए तो सब दुखों की एक दवा मंजू देसवाल हैं। श्रीमती कक्कड़ के इस कथन में ही मंजू देसवाल के जीवन का पूर सार सामने आ जाता है कि वे किस तरह से क्षेत्र में लोकप्रिय हैं।
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