देश को होनहार खिलाड़ी से पदक की उम्मीद
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ओलंपिक की तैयारियों के लिए कर रहा कड़ी मेहनत
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ताकत और तकनीक के बेहतरीन समन्वय पर फोकस
सच कहूँ/इन्द्रवेश, भिवानी। कहते हैं कि अगर लक्ष्य पर आपकी नजर है और ज़ज्बा व जुनून आपके खून में है तो आपको कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता। इन पंक्तियों को सार्थक कर दिखाया है भिवानी जिले में गाँव देवसर के अर्जुन अवार्डी अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज मनीष कौशिक ने। ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कर चुका मनीष इन दिनों कड़ी तैयारियों के साथ अपने मुक्के के दम को और बढ़ा रहा है। बता दें कि मनीष दुनिया के छठे रैंक के मुक्केबाज हैं और 23 जुलाई से शुरू होने वाले ओलंपिक के रिंग में 63 किलोग्राम भार वर्ग में अपने मुक्के का दम दिखाएंगे।
पिता किसान और माँ हैं गृहिणी
मनीष के पिता एक किसान हैं और उनकी माता गृहणी हैं। परिजनों के अनुसार आज पूरे परिवार का गुजारा मनीष ही चला रहा है और इसे वो बखूबी निभा रहा है। पिता सोमदत्त शर्मा, भाई विपिन, माता देवकी व बहन पूजा कहते हैं कि उन्हें पूरा विश्वास है कि उनका लाडला टोक्यो ओलंपिक से देश के लिए पदक जरूर जीतेगा। इन दिनों मनीष भारतीय सेना की तरफ से खेलते हैं। वर्ष 2015 में मनीष भारतीय सेना में नायब सूबेदार के पद पर तैनात हुए थे।
ऐसे मिली मुक्केबाजी की प्रेरणा
मनीष के परिवार वाले बताते हैं कि साल 2008 ओलंपिक में जब भिवानी के तीन मुक्केबाज बिजेंद्र सिंह, अखिल और उन्हीं के गाँव के मुक्केबाज जितेंद्र ओलंपिक से लौटे तो उनका भिवानी के लोगों ने ढोल-नगाड़ों और फूल-मालाओं से शानदार स्वागत किया। इसी स्वागत को देखकर मनीष के मन में भी ऐसे ही सम्मान की ललक जगी औरउसने मुक्केबाजी में ही अपना कैरियर बनाने का संकल्प कर लिया।
परिस्थितियों को नहीं बनने दिया मार्ग की बाधा
भिवानी जिले के छोटे से गांव देवसर से मनीष कौशिक ने मुक्केबाजी के सफर में अपना पहला कदम उठाया। लेकिन ये सफर इतना आसान भी नहीं रहा। अकेडमी में रोजाना प्रेक्ट्सि के लिए पहुंचाना किसी चुनौती से कम नहीं था। गर्मी, सर्दी, बरसात जैसा भी मौसम और परिस्थितियां रही, लेकिन मनीष ने कभी अभ्यास को नहीं छोड़ा। खुराक के रूप में चाचा की दुकान पर मौसमी का जूस ही मिलता था। एक खिलाड़ी के रूप में उसके जुनून और ज़ज्बे का अंदाजा इस बात से भी लग जाता है कि प्रेक्टिस के लिए कभी साइकिल तो कभी ऑटो पर जाने वाले मनीष ने सुविधाओं के अभाव को अपने रास्ते की बाधा नहीं बनने दिया। कई बार जब अकेडमी जाने के लिए उसे कोई वाहन न मिलता तो वो पैदल दौड़कर पहुंच जाता और जी-जान लगाकर प्रैक्ट्सि करता। उसके जुनून को देखकर उसके प्रशिक्षक भी हैरान रह जाते।
2008 में लगे सपनों को पंख
फिर वो दिन आया जब इस होनहार खिलाड़ी के सपनों को पंख लगने शुरू हुए। वो साल था 2008 है, जब बाल्यावस्था में 32 किलोग्राम भार वर्ग में मनीष ने पहला पदक जीता। इसके बाद मनीष ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और जिला और राज्यस्तर पर मेडलों की झड़ी लगा दी। मनीष के मुक्के के सामने प्रतिद्वंद्वी पस्त नजर आते।
ओलंपियन को हरा पाया ओलंपिक का टिकट
मनीष अब तक 30 से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट में मैडल जीत चुके हैं। इनमें वर्ष 2015 में दोहा में हुई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में गोल्ड मैडल, इसी वर्ष 22वें प्रेजीडेंट कप में ब्रांज मैडल प्राप्त किया। वर्ष 2018 में आस्ट्रेलिया में हुए कॉमनवेल्थ गेमों में सिल्वर मैडल, वर्ष 2019 में वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक, वर्ष 2019 में हुए साऊथ एशियन गेम्स में रजत पदक हासिल किया। वर्ष 2020 में एशिया ओसाना ओलंपिक क्वालीफायर प्रतियोगिता में आस्ट्रेलिया के ओलंपियन खिलाड़ी हेरी ग्रासाईड को हराकर ओलंपिक का टिकट पक्का किया। इस दौरान उन्हें इंजरी भी हुई, जिसके कारण वे एक साल तक खेल नहीं पाए। लेकिन 2021 में बॉक्सम टूर्नामेंट में गोल्ड मैडल लाकर फिर से अपनी पुरानी फोर्म में लौट आए।
जीत के लिए पसीना बहा रहा मनीष
हरियाणा सरकार भी खिलाड़ियों का पूरा साथ दे रही है। इसी के तहत सरकार ने मनीष को ओलंपिक की तैयारियों के लिए पांच लाख रुपए की राशि दी है, ताकि उसकी तैयारियों में कोई कमी न रहे। कोच मनजीत सिंह कहते हैं कि मनीष इन दिनों अपने खेल को बेहतर बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। दिन-रात ये खिलाड़ी अपनी ताकत और तकनीक के बेहतरीन समन्वय पर फोकस कर रहा है। उन्होंने कहा कि आज पूरा देश इस होनहार खिलाड़ी से ओलंपिक की उम्मीद लगाए बैठा है। मुझे पूरी उम्मीद है कि मनीष देश के लिए बेहतर प्रदर्शन करते हुए मैडल जरूर जीतेगा।
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