नई दिल्ली (एजेंसी)। त्रिपुरा में भाजपा ने बिप्लब कुमार देब की मुख्यमंत्री पद से विदाई कर दी है। राज्य के नए मुख्यमंत्री माणिक साहा सीएम बन गए है। मणिक साहा त्रिपुरा में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष हैं। वह राज्यसभा सांसद हैं। चुनाव से ठीक पहले उन्हें बड़ी जिम्मेदारी मिल गई है। माणिक साहा कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए थे। आइए जानते हैं बीजेपी के उन 4 मुख्यमंत्रियों के बारे में जिन्हें बीजेपी ने मुख्यमंत्री बनाया है लेकिन उनका बैकग्राउंड कांग्रेसी रहा है।
माणिक साहा: माणिक साहा साल 2016 तक कांग्रेस के नेता था। साल 2016 में ही उन्होंने कांग्रेस से किनारा कर लिया। भारतीय जनता पार्टी में शामिल होकर उन्होंने संगठन के लिए काम किया। उनके काम से खुश होकर भारतीय जनता पार्टी ने मणिक साहा को बड़ी जिम्मेदारी दी। साल 2020 में उन्हें त्रिपुरा का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। माणिक साहा पेशे से डेंटिस्ट हैं। वह त्रिपुरा क्रिकेट असोसिएशन के प्रमुख भी हैं। त्रिपुरा की राजनीति में उनकी छवि साफ-सुथरे नेता की रही है। यही वजह है कि उनके नाम पर हंगामा भी नहीं हुआ।
एन बीरेन सिंह: पुराने कांग्रेसी लेकिन बीजेपी ने जताया भरोसा
अगर भारतीय जनता पार्टी सीएम रिपीट करे तो जाहिर सी बात होगी कि नेता दमखम वाला है। बीजेपी के मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल तक पूरा नहीं कर पाते हैं। पुराने कांग्रेसी एन बीरेन सिंह को बीजेपी ने दोबारा मुख्यमंत्री बना दिया। एन बीरेन सिंह साल 2016 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए थे। मणिपुर में उन्होंने कांग्रेस के साथ अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरूआत 2003 में की थी।
कद इतना बड़ा था कि सीधे वन मंत्री बना दिए गए। वह लागतार मंत्री बने रहे। 2012 में उन्होंने लगातार कांग्रेस से तीसरी बार जीत दर्ज की थी। इकोराम इबोबी सिंह की सरकार के साथ तकरार बढ़ने के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी और बीजेपी में शामिल हो गए थे। 2017 में फिर से एन बीरेन सिंह ने बीजेपी से विधायक बने। पहली बार मणिपुर में सत्ता पर काबिज होने वाली बीजेपी ने बीरेन सिंह को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया। फिर 2022 के विधानसभा चुनाव में भी उन्हें ही जिम्मेदारी सौंप दी गई।
हिमंत बिस्व सरमा: हिमंत बिस्वा सरमा साल 2021 में असम के 15वें मुख्यमंत्री के तौर पर चुने गए। असम की राजनीति में उन्होंने खुद को इतना प्रासंगिक कर लिया कि बीजेपी ने मजबूर होकर उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया। साल 2015 तक वह कांग्रेसी रहे। मोदी सरकार की धुर आलोचना भी की। जब 2015 में उन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़ा और बीजेपी की राह पकड़ी तो ऐसे प्रचार किया कि जैसे वह जनसंघ के दिनों से बीजेपी से जुड़े हों। उन्होंने 2021 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को बंपर जीत दिलाई थी।
यही वजह थी कि सबार्नंद सोनोवाल को किनारे करके उन्हें मुख्यमंत्री चुना गया। कांग्रेसी नेता के तौर पर उनका सफर बेहद सफल रहा है। 2011 में असम में हुए चुनाव में उन्होंने मजबूत भूमिका कांग्रेस के पक्ष में निभाई थी। वह पूर्व सीएम तरुण गोगोई के राजनीतिक शिष्य रहे हैं। तरुण गोगोई को 2011 का चुनाव हिमंत बिस्व सरमा ने ही जिताया था।
नेफियो रियो: नेफियू रियो लागतार चार बार नागालैंड के मुख्यमंत्री रहे हैं। नागालैंड में उनसे बड़ा कोई नेता नहीं है। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सहयोग से वह चौथी बार मुख्यमंत्री बने। इससे पहले वह 2003-08, 2008-13 और 2013-14 के दौरान नागालैंड के मुख्?यमंत्री रह चुके हैं.।1989 में राजनीतिक सफर की शुरूआत करने वाले नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के नेता नेफियू रियो ने इस बार बीजेपी के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन किया था। 1989 में रियो ने नॉदर्न अंगामी-सेंकेड सीट से कांग्रेस उम्?मीदवार के रूप में चुनाव जीता। उन्?हें राज्?य कैबिनेट में जगह मिली।
1993 में कांग्रेस के टिकट पर दोबारा नॉदर्न अंगामी-द्वितीय सीट से चुनाव जीता. कांग्रेस में रहते हुए 1988 से 2002 तक नागालैंड के गृह मंत्री रहे। 2002 में नागालैंड की समस्या पर तत्कालीन सीएम एससी जमीर से मतभेद होने पर इस्?तीफा दिया। वह फिर नागा पीपुल्स फ्रंट में भी गए। जनवरी 2018 को एनपीएफ के भाजपा से गठबंधन तोड़ने के बाद रियो एनडीपीपी में शामिल हुए। बीजेपी को रियो के चेहरे पर भरोसा है।
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