नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। समय से पहले आर्थिक लाभ के लिए कृत्रिम तरीके से आमों को पकाकर बाजार में उतारे जाने से इसके प्रेमी भले ही खुश हों लेकिन प्राकृतिक रूप से पके आम का स्वाद उन्हें नहीं मिल रहा है। पिछले चार पांच साल से किसानों और व्यापारियों का ऐसा आकलन है कि अगात आम उतना लाभदायक अब नहीं है जो कुछ साल पहले हुआ करता था। आम के शौकीन अगात आम की किस्मों का स्वाद लेने से बचते हैं और उसके सही तरीके से पकने के समय का इंतजार करते हैं। बेहतर परिवहन सुविधा के कारण आमों को जल्दी पेड़ से तोड़ लिया जाता है और उसे जबरन पकाकर बाजार में उतार दिया जाता है।
दक्षिण भारतीय आमों का दबदबा
पूरा उत्तरी क्षेत्र अगात आम के लिए दक्षिण भारत पर निर्भर रहता है। दक्षिण भारत को प्राकृतिक रुप से यह फायदा है कि इस क्षेत्र में हल्की ठंड होती है और आम के पेड़ो पर जल्दी मंजर आते हैं जिसके कारण आम जल्दी पक जाता है। जम्मू से लेकर पश्चिम बंगाल तक उपोष्ण क्षेत्र में देर से फलों का राजा आम तैयार होता है। इसके कारण आम बाजार पर दक्षिण भारतीय आमों का दबदबा होता है ।
बंगनपल्ली जो सफेदा के नाम से भी विख्यात है वह पिछले कुछ दिनों से बाजार में आया हुआ है। मध्यम आय वाला परिवार इस आम से मिल्कसेक बनाकर इसका आनंद उठाता है। समय से प्राकृतिक रूप से इस आम के तैयार होने पर डेजर्ट रूप में उपयोग में लाकर गुणवत्तापूर्ण स्वाद का लुफ्त लिया जा सकता है। सफेदा को यदि प्राकृतिक रूप से तैयार होने पर उपयोग किया जाए तो इसका लजीज स्वाद मिलता है। आंध्र प्रदेश के किसान बेहतर मूल्य मिलने में लालच में सफेदा को परिपक्व होने से पहले ही इसे पेड़ से तोड़कर बाजार में उतार देते हैं जिसका उत्तर भारत में लंबे समय से इंतजार किया जाता है।
पिछले साल लॉकडाउन के कारण किसानों को काफी नुक्सान हुआ था
बेहतरीन किस्म के आमों में शामिल आॅलफोंसो जल्दी बाजार में आने वाले किस्मों में शामिल हैं, लेकिन अधिक कीमत होने के कारण आम लोगों के पहुंच के बाहर है। दिल्ली और लखनऊ जैसे शहरों के चुनिंदा फल दुकानों पर अल्फोंसो उपलब्ध है जिसका खास लोग इसका मुंहमांगा कीमत अदा करने को तैयार हैं। फरवरी से अल्फोंसो बाजार में दस्तक देने लगता है और मुंबई एवं गुजरात में लोग इसकी कोई भी कीमत देने को तैयार रहते हैं। अप्रैल के बाद मध्यम वर्ग इसकी कीमत देने की स्थिति में होते हैं। वर्षा के शुरू होने पर इसके मूल्य में गिरावट शुरू हो जाती है क्योंकि गुजराती पहली बारिश के बाद से ही अलफोंसो आम से परहेज करने लगते हैं।
पिछले साल लॉकडाउन के कारण अल्फोंसो आम का दूर दराज के क्षेत्रों में परिवहन नहीं हो सका था जिसके कारण किसानों को काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा था । इस साल परिवहन पर रोक नहीं है जिसके कारण देश के अलग-अलग हिस्सों में लोग इसके बेहतरीन स्वाद का आनंद उठा रहे हैं। ओडिशा और आंध्र प्रदेश का सुवर्णरेख भी बाजार में दिखने लगा है। दूर से ही आकर्षक लाल रंग का यह आम लोगों को अपनी ओर खींचता है। इसका फल बहुत बढ़िया नहीं है लेकिन अपने आकर्षक रंग के बदौलत बाजार में जगह बना लेता है।
उत्तर प्रदेश के दशहरी के आने के बाद आम का असली स्वाद
उत्तर भारतीय अगात आम की किस्मों के बाजार में आने के पहले तक सफेदा और सुवर्णरेखा का दबदबा बना रहता है। देश के पूर्वी हिस्से से अगात लंगड़ा और गुलबखास किस्मों के आने के बाद दूसरे आमों का प्रभाव कम होने लगता है। गुलाबखास और लंगड़ा कम मात्रा में उपलब्ध होता है। उत्तर प्रदेश के आमों के विशेषकर दशहरी के आने के बाद आम का असली स्वाद मिल पाता है। इससे पहले बॉम्बे ग्रीन और कई अन्य किस्म के आम काफी कम मात्रा में आता है। दशहरी के आने के बाद मिल्कसेक का बेहतरीन मजा आने लगता है। आमों को समय से पहले जबरन पकाने से इसका असली स्वाद नहीं मिल पाता है। देश के अधिकांश हिस्सा में कार्बाइड से फलों के पकने पर रोक लगा दी गई है, जिसके कारण अब लोग इसे इथाईलीन से पकाने लगते हैं।
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