श्वासों की कीमत भूल रहा इन्सान

Man is forgetting the cost of breaths

सरसा (सकब)। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि इन्सान जितने भी श्वास राम की याद में लगाता है, वो बेशकीमती श्वास बन जाते हैं। इससे आने वाले समय में भी आपको सुख मिलता है। अगले जहान में भी परमानन्द मिलता है और आवागमन से आजादी प्राप्त हो जाती है। इन्सान को अपने कीमती श्वासों को बेकार नहीं करना चाहिए। दुनियादारी, विषय-विकार, भौतिकतावाद में लगकर आज का इन्सान श्वासों की कीमत भूल रहा है।

इन्सान अगर राम का नाम जपे तो यकीनन उसे परमानन्द मिलता है

पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि एक दिन इन श्वासों की कदर याद आयेगी, लेकिन उस समय श्वास नहीं होंगे। इन्सान को अपने आखिरी समय में परमात्मा याद आता है और सोचता है कि उसने सारी जिंदगी ऐसे ही क्यों बर्बाद कर दी? मालिक की भक्ति-इबादत क्यों नहीं की? ये सब सवाल उसके दिमाग में आते हैं क्योंकि राम-नाम में जो स्वाद, लज्जत है, वो बाजार से खरीदी नहीं जा सकती। राम-नाम का स्वाद अगर एक बार चढ़ जाए तो दोनों जहानों में भी नहीं उतरता। इन्सान अगर राम का नाम जपे तो यकीनन उसे परमानन्द मिलता है और वह बेइंतहा खुशियों का स्वामी बन जाता है।

आप जी फरमाते हैं कि इन्सान इस दुनिया में श्वास लेकर ओम, हरि, अल्लाह के नाम रूपी हीरे, जवाहारात का व्यापार करने के लिए आया था, लेकिन दुनियावीं साजो-सामान, बाल-बच्चों में, खाने-पीने में इतना मस्त हो गया है कि अपने राम को भूल गया। मन का गुलाम बनकर इन्सान भ्रमित हो गया है। मन के गुलाम लोग केवल आपसी प्यार तक ही सीमित रह जाते हैं और अल्लाह, राम के नाम के परमानन्द से वंचित रह जाते हैं।

आप जी फरमाते हैं कि संत यह नहीं कहते कि आपसी प्यार न करो, लेकिन इस प्यार की भी एक हद होती है, बेगर्ज, नि:स्वार्थ प्यार करना चाहिए। उसके बाद अगर बेइंतहा, बेहद प्यार करना है तो अपने राम से करना चाहिए क्योंकि दुनियावीं प्यार पता नहीं कब आपको छोड़ कर चला जाए, लेकिन मालिक से जो सच्चा प्यार, मोहब्बत करते हैं, वो अल्लाह, राम कभी किसी को नहीं छोड़ता।

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