सरसा। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि परमात्मा कण-कण में है। जिस इन्सान ने उसकी मौजूदगी का अहसास मान लिया और यह मान लिया कि वह हर जगह है, तो यकीनन उसे हर जगह एक न एक दिन मालिक नजर भी जरूर आने लगता है। इन्सान के लिए अपने ध्यान को एकाग्र करना जरूरी है। जैसे रूटीन है कि आप खाना खाते हैं, आपका ध्यान एकाग्र होता है, उसके लिए अलग से ध्यान नहीं जमाना पड़ता।
कपड़े पहनते हैं, नहाते हैं, कंघा वगैरह करते हैं, शेविंग करते हैं, तो आप देखते जरूर हैं लेकिन उसके लिए इतना ध्यान एकाग्र नहीं करना पड़ता कि कहीं इधर-उधर न चला जाए। नेच्युरैली आपका हाथ घूमता रहता है, क्योंकि यह आपका रूटीन है। ऐसा ही रूटीन अगर अल्लाह, वाहेगुरु, राम के नाम का बन जाए, तो यकीनन मालिक भी कण-कण में नजर आने लग जाए। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि आप सुमिरन करने की आदत बना लो। फिर न जोर लगाना पड़े, न अलग से परेशान होना पड़े, न ऐसा लगे कि अलग से कोई बोझ उठा रहा हूं।
बस इस तरह से आदत बना लो कि जैसे सुमिरन आपका रूटीन है और पूरी रुचि से सुमिरन करो। जैसे आप सजते-संवरते हैं, तो है तो वो भी रूटीन, लेकिन थोड़ा ध्यान रखते हैं कि कैसे सजना है, क्या करना है, उसी तरह सुमिरन में भी यही ध्यान रखना है कि कैसे मैं तड़प बनाऊं! कैसे मैं भावना बनाऊं! हे मेरे मालिक, रहमत कर। और जब वो रूटीन बन गया, अपने-आप वैराग्य आने लग गया, तो फिर बहुत जल्दी मालिक के नजारे मिलते हैं और इन्सान मालिक के दर्श-दीदार के काबिल बनता चला जाता है।
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