बच्चों को संस्कारी बनाएं

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बच्चों में अच्छे संस्कार विकसित करने में माँ-बाप की भूमिका काफी अहम होती है। अगर माता-पिता संस्कारी होंगे, तभी तो बच्चे भी संस्कारी बनते हैं वर्ना संस्कारी होंगे ही नहीं।

आजकल के माहौल में बच्चों को अच्छे संस्कार दे पाना माता-पिता के लिए मुश्किल होता जा रहा है। माता-पिता कितना भी समझा लें बच्चे वही करते हैं, जो उनका मन कहता है। लेकिन अगर शुरू से ही आप अपने बच्चों को समझें और उनका मार्गदर्शन करें, तो आपका बच्चा जरूर आपकी बात मानेगा।

व्यवहारिक बातें भी हैं जरूरी

बच्चे में अच्छे संस्कार विकसित करना चाहती हैं, तो व्यवहारिक बातें समझाना भी बेहद जरूरी है। उसे बचपन से ही सिखाएं कि बड़ों से कैसे बात की जाए। बड़ों का अभिवादन करना, थैंक्यू और सॉरी कहना जरूर सिखाएं।

हाइजीन मेनटेन करना, पार्टी एटिकेट्स, रेस्टोरेंट मैनर इन सब चीजों को आप तो फॉलो करें ही, बच्चों को भी सिखाएं। कुछ चीजें तो वह आपसे देखकर ही सीख सकता है। इसलिए आप भी अपने व्यवहार में थोड़ा बदलाव लाएं और उनकी रोल मॉडल बनें।

डाइट भी हो राइट

ग्रोइंग बच्चों को न्यूट्रिशंस से भरपूर डाइट की जरूरत होती है। जो भी उसे खाने के लिए दें, उसकी न्यूट्रिशनल वैल्यू जरूर देखें। मिल्क या प्रोटीन से भरपूर सोया प्रोडक्ट डाइट में जरूर शामिल करें।

जंक या फास्ट फूड कभी-कभार तो ठीक है, पर हमेशा नहीं। घर पर ही बदल-बदल कर उसे कुछ-न-कुछ खाने के लिए दें, वह बाहर खाने की जिद्द नहीं करेगा। अगर हो सके तो उसे अपने साथ किचन में ले जाएं और उसके साथ बातें करते-करते उसकी मनपसंद डिश बनाएं। इस दौरान उसे भी कुकिंग में शामिल कर लें।

संस्कार की जड़ें बचपन से जुड़ीं

बच्चे जो भी व्यवहार करते हैं उसकी जड़ें बचपन से जुड़ी होती हैं। बच्चों का दिमाग वो कोरी स्लेट होता है जिस पर हम जो चाहें लिख सकते हैं। यह प्रक्रिया जन्म से लेकर चार-छह वर्षों तक चलती रहती है। इस उम्र में माता-पिता को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।

अगर आपको उन्हें संस्कारी बनाना हो तो आपको अपने फर्ज से नहीं चूकना चाहिए। बच्चों को संस्कार उपदेश देकर नहीं सिखाए जा सकते। बच्चे वही सीखते हैं, जो माता-पिता को करते देखते हैं।

उन्हें स्वयं के व्यवहार में वे बातें अपनानी होंगी जो बच्चों के हित में हों। जैसे आपके गुण होंगे, बच्चे वैसा ही सीखेंगे। जो आप करते होंगे, वैसा ही वे करेंगे। वे सोचेंगे कि हम अपने अभिभावकों से भी बढ़कर करें।

हर बच्चा यूनीक होता है

हर किसी का पेरेंटिंग स्टाइल अलग होता है। इसे एक निश्चित फॉमूर्ले में बांध कर नहीं रखा जा सकता। सभी बच्चे भी एक समान नहीं होते हैं। उनकी सारी आदतें एक-दूसरे से अलग होती हैं। कोई ज्यादा शरारती होता है, तो कोई थोड़ा कम।

ऐसे में उन्हें अपने माहौल में ढालने के लिए थोड़ी मेहनत तो आपको करनी ही पड़ेगी। सबसे ज्यादा परेशानी उन महिलाओं के साथ है, जो वर्किंग हैं। प्रोफेशनल लाइफ के साथ-साथ उन्हें अपने बच्चों के लिए भी समय निकालना जरूरी होता है। आप क्वालिटी टाइम देकर उसे सही मार्गदर्शन दे सकती हैं।

बातचीत से जीतें विश्वास

बच्चों के नजदीक रहने और उनके मन की बात को जानने का सबसे सरल तरीका है उनसे बातचीत करना। आप बच्चों से बात करके उनका विश्वास जीत सकती हैं। बातचीत के जरिए ही आप बच्चे से सबकुछ शेयर कर सकती हैं।

इस तरह वे अपने मन की बात आपसे कहने से नहीं डरेंगे। वे अपनी हर बात आपसे शेयर करेंगे। बच्चों पर जरूरत से ज्यादा नियंत्रण भी न रखें। उन्हें भी थोड़ा स्पेस दें और उन्हें कभी-कभी अपने मन की करने दें।

कई बार माता-पिता बच्चों के साथ जरूरत से ज्यादा सख्ती बरतते हैं। ऐसे में बच्चे डर के चलते झूठ का सहारा लेने लगते हैं। इसलिए ऐसा माहौल कभी न बनाएं।

पढ़ाई को हौव्वा न बनाएं

अकसर देखने में आता है कि पेरेंट्स बच्चों पर पढ़ाई को लेकर बहुत दबाव बनाते हैं, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। हर दिन थोड़ा-थोड़ा अच्छी तरह से पढ़ाएं और समय-समय पर खुद रिवीजन करवाएं, तो बच्चों पर दबाव नहीं बनेगा।

जिस सब्जैक्ट में वह कमजोर है वहां आप उसके साथ एक्सट्रा मेहनत करें। अगर ट्यूटर की जरूरत है, तो उसका भी अरेंजमेंट करें। मगर सब कुछ उसी के ऊपर न छोड़ें। खुद भी वीकेंड में उसकी पढ़ाई में मदद करें।

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