वनों को आग से बचाने के लिए बने ठोस नीति

Make a concrete policy to protect the forest from fire

आस्ट्रेलिया के वनों में लगी भयानक आग वातावरण के लिए चुनौती है जिसमें 50 करोड़ जानवरों की मौत होने का अनुमान है। इस हादसे में 2 हजार घर भी जल गए हैं। आग की भयानकता का अंदाजा यहीं से लगाया जा सकता है कि हमारे देश के राज्य पश्चिम बंगाल के क्षेत्रफल जितना जंगल जल गया है। तीन हजार के करीब सैनिक आग बुझाने में जुटे हुए हैं। कुछ माह पूर्व ही दुनिया के फेफड़े माने जाने वाले अमेजन के वनों को आग लग गई थी। गत वर्षों में कनाडा में भी बड़े स्तर पर वन आग की चपेट में आ गए थे।

आग लगने का कारण भले ही कोई भी क्यों न हो लेकिन यह स्पष्ट हो गया है कि हरियाली कायम रखने और बढ़ाने संबंधी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिस प्रकार के कार्यक्रम बनाए जा रहे हैं उसके मुताबिक वनों को आग से बचाने के लिए तकनीक विकसित नहीं हो सकी और न ही प्रबंध मुकम्मल किए जा सके हैं। कनाडा में आज भी आग से वनों का उतना नुक्सान हो जाता है जितना कभी 100 साल पूर्व होता था। इस मामले में शक्तिशाली देशों के बीच सहयोग व तालमेल की कमी बनी रहती है। अधिकतर देश ऐसी घटनाओं में अपनी लड़ाई अकेला ही लड़ता रहा है।

आस्ट्रेलिया, कनाडा जैसे देश तकनीक व अनुदान के लिए समर्थ देश हैं। कई वन एक से अधिक देशों की सीमाओं के साथ सटे हुए हैं।  एक देश में घटित घटना दूसरे देशों के लिए भी मुसीबत बनती है। इन हालातों में सबंधित देशों का कोई संयुक्त अभियान चलाया जा सकता है। वृक्ष प्रकृति के वरदान हैं जो मानव को आॅक्सीजन देते हैं। एक वृक्ष तैयार करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है लेकिन आग से मिनटों में लाखों पेड़ जलकर राख हो जाते हैं।

लगभग हर साल की तरह ऐसी घटनाएं घटती हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आग से हो रहे नुक्सान को रोकने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई गई। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि बढ़ रही जनसंख्या, उद्यौगिकरण व कई अन्य कारणों के चलते वन ही धरती का अस्तित्व का आधार हैं। वनों के बिना धरती दिवस मनाने का कोई महत्व नहीं रह जाएगा। वनों की तबाही के होते विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। बेहतर हो यदि अमीर देश व अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं वनों को बचाने के लिए कोई ठोस मुहिम चलाएं, हर घटना पर चुप रहने से समस्या का निराकरण नहीं हो सकता। वनों को हर हाल में आग से बचाने की आवश्यकता है।

 

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