प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के त्यागपत्र देने तथा हिंसक घटनाओं के साथ श्रीलंका का वर्तमान संकट और गहरा हो गया है। राष्ट्रपति गोताबया राजपक्षे, जो प्रधानमंत्री के छोटे भाई भी हैं, ने हिंसक घटनाओं में कई लोगों के मारे जाने के बाद सेना को विशेषाधिकार दे दिया है। इस कदम को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। जैसा कि सर्वविदित है, इस संकट की पृष्ठभूमि यह है कि सरकार के विभिन्न निर्णयों, जैसे- आॅर्गेनिक खेती को अनिवार्य करना, करों में बड़ी छूट देना आदि, से देश की अर्थव्यवस्था और राजस्व को बड़ा झटका लगा। कोरोना महामारी ने पर्यटन को तबाह कर दिया, जो श्रीलंका की अर्थव्यवस्था का बड़ा आधार है तथा विदेशी मुद्रा के आय का सबसे बड़ा स्रोत भी। राजपक्षे सरकार में इस परिवार से ही आठ सदस्य थे और बजट का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा इसी परिवार के नियंत्रण में था। इसके बावजूद यह परिवार गिरती अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए सार्थक व प्रभावी हस्तक्षेप करने में असफल रहा।
इस साल के शुरू में ही संकट के बेहद गंभीर होने के स्पष्ट संकेत आ चुके थे। तब यह कहा जा रहा था कि सरकार कुछ ठोस कदम उठायेगी और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से भी बातचीत की संभावना जतायी जा रही थी, पर कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई। राजपक्षे परिवार की कार्यशैली में भी सुधार नहीं हुआ। जब पिछले महीने श्रीलंका विदेशी कर्जों की किस्त चुकाने में असमर्थ रहा, तब देश के भीतर और बाहर साफ संदेश गया कि देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चौपट हो चुकी है। देश के भीतर बढ़ते असंतोष को कम करने के लिए महिंदा राजपक्षे ने सरकार में कुछ फेर-बदल किया, पर इससे न तो स्थिति में कोई सुधार आया और न ही लोगों का रोष कम हुआ। यह भी उल्लेखनीय है कि सरकार के दो शीर्षस्थ पदों पर राजपक्षे बंधु ही काबिज रहे। इसलिए लोगों की सारी नाराजगी इस परिवार से है।
वित्तीय सहायता के लिए अभी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से जो बातचीत चल रही है, उस संबंध में आ रही खबरों से संकेत मिलता है कि श्रीलंका के सामने कड़ी शर्तें रखी जा रही हैं, जिनमें अर्थव्यवस्था में बड़े सुधार भी शामिल हैं। राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक तनाव से भी स्थिति बिगड़ रही है। एक उम्मीद यह की जा सकती है कि कोरोना काल से दुनिया के उबरने के साथ-साथ श्रीलंका में पर्यटकों का आना शुरू हो। इससे अर्थव्यवस्था को थोड़ा सहारा मिल सकता है और लोगों की आमदनी का एक जरिया मिलेगा। श्रीलंका में जो विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, उनकी बड़ी मांग यह है कि दोनों भाई अपना पद छोड़ दें। यदि वहां कोई नयी राजनीतिक पहल होती है, तो वह राजपक्षे परिवार के सत्ता में रहते संभव नहीं है।
प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने तो त्यागपत्र दे दिया है, पर उनके भाई अभी भी देश के राष्ट्रपति हैं। पहले इन्हीं भाइयों के प्रयासों से श्रीलंकाई संविधान में संशोधन कर राष्ट्रपति को बहुत अधिक अधिकार दिया जा चुका है। श्रीलंका के गृहयुद्ध में तमिल समुदाय के भयानक दमन को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शिकायतें हैं। यह मसला देश की आंतरिक शांति व स्थिरता के लिए भी एक प्रश्नचिह्न है।
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