धान की पराली से बनेगा कोयले जैसा पदार्थ
बठिंडा(अशोक वर्मा)। बठिंडा जिले त के गांव महमा -सरजा में धान की फसल की पराली से कोयले जैसा पदार्थ बनाने के उद्देश्य के साथ लगाया जाने वाला प्रॉजैक्ट वातावरण के लिए वरदान साबित होगा। इस प्रॉजैक्ट का नींव पत्थर वित्त मंत्री पंजाब मनप्रीत सिंह बादल रखेंगे। इस प्रोजैक्ट के निर्माण के लिए प्राथमिक तैयारी शुरू हो गई हैं पंजाब का यह पहला पायलट प्रोजैक्ट है, जिस के लिए विदेशी तकनीकों का प्रयोग किया जाएगा जबकि इस प्लांट का डिजाइन भारतीय विशेषज्ञों द्वारा तैयार किया गया है।
यदि यह प्रॉजैक्ट सफल हो जाता है तो पंजाब में ऐसे 125 से 150 ऐसे प्रोजैक्ट और स्थापित करने की योजना है। पिछले वर्ष बठिंडा छावनी के फ्लाईओवर पर धुंध के दौरान सुबह समय पर घटित हुए सड़क हादसे में करीब डेढ़ दर्जन मौतों उपरांत वित्त मंत्री ने घोषणा की थी कि पराली को निपटाने के लिए कारखाने लगाए जाएंगे, जिससे किसान इसे न जलाएं। पिछले कुछ वर्षों दौरान पराली कारण पैदा होने लगे हालातों को देखते राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल सख़्त हो गया है। महिमा -सरजा प्रॉजैक्ट इसी दिशा में ही सरकार की बड़ी पहलकदमी माना जा रहा है।
चैन्नई की कम्पनी रन्यूएबल एनर्जी प्राईवेट लिमिटड
द्वारा स्थापित किया जा रहा प्रॉजैक्ट
यह प्रॉजैक्ट चैन्नई की कंपनी रन्यूएबल एनर्जी प्राईवेट लिमटिड द्वारा लगाया जा रहा है, जिस पर करीब 20 करोड़ रुपये की लागत आएगी। इस प्रॉजैक्ट के निर्माण के लिए फंडों का प्रबंध कतर की कंपनी अलकिन्दी द्वारा किया गया है। इस प्लांट के अगस्त माह तक शुरु होने की संभावना है। 19 एकड़ जगह में प्रोजैक्ट चलाने के लिए अपेक्षित पराली स्टोर की जाएगी, जबकि एक एकड़ में मशीनरी वगैरह लगाई जा रही है। इस प्रोजैक्ट पूरी सामर्थ्य पर चलाने के लिए 25 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में पैदा हुई पराली की जरूरत होगी।
युुवाओं को रोजगार के अवसर होंगे प्राप्त
गांववासियों ने बताया कि इस प्लांट के स्थापित होने के बाद कुछ लोगों के रोजगार की समस्या हल हो जाएगाी व किसान पराली से सहज ही छुटकारा पा सकेंगे। तकनीकी विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्लांट के स्थापित होने से बठिंडा जिले के काफी हिस्से में धान का अवशेष जलाने पर रोक लगेगी व प्रदूषण भी घटेगा। गौरतलब है कि बठिंडा जिले में हर साल डेढ़ से पौने दो लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान की काश्त की जाती है।
पराली को योग्य ढंग से निपटाने का काम महंगा होने के कारण अधिकतर किसान पराली जलाने को प्राथमिकता देते हैं हर साल लाखों टन पराली जल जाने के कारण वातावरण का नुक्सान हो रहा है, जिस संबंधी वातावरण प्रेमी चिंतित हैं। किसानों का तर्क है कि उनको जागरूक तो कर दिया जाता है परन्तु सरकार पहल नहीं करती। पंजाब में धान की फसल की अवशेष का मुद्दा भी अहम बन चुका है। धान बाद में गेहूं की बिजांद के बीच सिर्फ 15 -20 दिनों का ही अंतराल है। इस सीमित समय में पराली को समेटना जरूरी होता है नहीं तो गेहूं में देरी हो जाती है।
पराली को आग लगाने से वातावरण पर पड़ने वाले बुरे
प्रभाव से भी मिलेगी निजात
महमा -सरजा प्रॉजैक्ट के कंसलटेंट गौतम गर्ग ने कहा कि धान की कटाई के बाद पराली को एकत्रित करने व गांठे बनाने के अलावा प्रॉजैक्ट साइट पर लाने तक का समूह प्रबंध कंपनी की तरफ से किया जाना है। उन्होंने बताया कि प्लांट के शुरु होने बाद में किसानों को पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी व आग लगाने से वातावरण पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव को भी रोका जा सकेगा।
पराली जलाने के बिना और कोई चारा नहीं : कोटड़ा
भारतीय किसान यूनियन सिद्धूपुर के राज्य सीनियर उप अध्यक्ष काका सिंह कोटड़ा ने कहा कि किसानों को पता है कि पराली जलाने से सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है परन्तु किसानों के पास ओर कोई चारा नहीं है। उन्होंने कहा कि यह पहलकदमी अच्छी है परन्तु यह तब ही सफल हो सकती है यदि इसे पूरे पंजाब में लागू किया जाये उन्होंने कहा कि पराली जलाने से रोकने के लिए सरकार को किसानों की सहायता भी करनी चाहिए।
बठिंडा जिले को पहल: डिप्टी कमिशनर
डिप्टी कमिशनर बठिंडा दिपारवा लाकरा ने कहा कि इस प्लांट के शुरु होने के बाद प्रदूषण की बड़ी समस्या का हल होगा उन्होंने कहा कि पराली इकट्ठी करने के लिए बठिंडा जिले को पहल दी जाएगी।
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