शाह मस्ताना जी ने बख्शा रूहानियत का खजाना

Maha RehmoKaram Diwas

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के 61वें पावन महा रहमोकर्म दिवस पर विशेष: (Maha RehmoKaram Diwas )

  •  28 फरवरी का सुनहरा दिन है, रूहानियत के इतिहास में खास,

  •  इस दिन बेपरवाह सार्इं जी ने किया रहमोकर्म, बख्शी शाह सतनाम जी को गुरुगद्दी की दात।

25 जनवरी 1919 को श्रीजलालआणा साहिब में धारण किया अवतार

पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने25 जनवरी 1919 को आदरणीय पिता सरदार वरियाम सिंह जी के घर पूजनीय माता आस कौर जी की पवित्र कोख से अवतार धारण किया। आप जी ने गांव श्रीजलालआणा साहिब तहसील, डबवाली, जिला सरसा (हरियाणा) में अवतार लिया। आप जी के आदरणीय पिता जी बहुत बड़े जमींदार थे तथा पूजनीय दादा सरदार हीरा सिंह जी इलाके के प्रसिद्ध जैलदार थे। पूजनीय माता-पिता जी ने आपका बचपन का नाम आदरणीय हरबंस सिंह जी रखा, परंतु गुरुगद्दी बख्शने के बाद डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने आप जी का नाम सतनाम सिंह जी रखा। आप जी सिर्फ 5 वर्ष के ही थे कि पूजनीय पिता जी सचखंड जा विराजे। पूजनीय माता जी की छत्रछाया में आप जी का पालन-पोषण पूजनीय मामा वीर सिंह जी के सहयोग से हुआ।

सरदार सतनाम सिंह जी बहुत बहादुर हैं। सरदार सतनाम सिंह जी ने मस्ताना गरीब के लिए बहुत बड़ी कुर्बानी की है। इन्होंने मस्ताना गरीब के हरेक हुक्म की पालना की है। इनकी जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है।’’ ये वचन पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के बेमिसाल त्याग, प्रबल प्यार, नि:स्वार्थ महान सेवा, सच्चा ईश्वरीय प्यार और राम-नाम के लिए जबरदस्त कुर्बानी पर खुश होकर भरी संगत में फरमाये। सार्इं जी ने सरेआम फरमाया कि ये हैं वो सतनाम, जिसे दुनिया जपदी-जपदी मर गई, पर किसी ने आज तक उसे देखा नहीं! असी इन्हें अर्शों से लेकर आए हैं। जो भी कोई इनका नाम लेकर याद करेगा (इनके नाम का चिंतन करेगा) उसका उद्धार ये अपनी रहमत से करेंगे। पक्षी, परिन्दा भी कोई अगर ऊपर से गुजरा वह भी नरकों में नहीं जायेगा। और इस प्रकार पूज्य सांर्इं मस्ताना जी महाराज ने अपनी अपार रहमतें बख्श कर पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज को डेरा सच्चा सौदा में बतौर दूसरे पातशाह अपना उत्तराधिकारी बनाकर गुरगद्दी पर विराजमान किया।’’

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‘‘आप को जिन्दाराम का लीडर बनाएंगे’’

पूजनीय बेपरवाह जी ने एक बार रास्ते पर शाह सतनाम जी महाराज के पदचिन्ह पर अपनी लाठी से गोल दायरे का निशान बनाकर फरमाया ‘‘देखो भई ये रब्ब की पैड़ है। तभी एक सेवादार ने कहा कि ये पैड़ (पद चिन्ह) तो श्री जलालआणा साहिब के जैलदार वरियाम सिंह जी के बेटे सरदार हरबन्स सिंह जी की हैं। तब सार्इं जी ने अपने इलाही अंदाज में फरमाया, न हम किसी जैलदार को जानते हैं न किसी सरदार को जानते हैं। हम तो यह जानते हैं कि ये पैड़ (पद चिन्ह) रब्ब की है। पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने डेरा सच्चा सौदा ‘अनामी धाम’ गांव घूकांवाली में 14 मार्च 1954 को सत्संग फरमाने के बाद उसी सत्संग वाले चबूतरे पर खड़े होकर पूजनीय परम पिता जी को स्वयं आवाज लगाकर आदेश फरमाया, ‘हरबन्स सिंह!’ (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज का पहले का नाम) दरगाह से आज आप जी को भी नाम-शब्द लेने का हुक्म हो गया है।

आप अंदर जाकर (नाम अभिलाषी जीवों में) हमारे मूढ़े के पास बैठो, असीं अभी आते हैं। आप जी ने अपने मुर्शिदे-कामिल के वचनों को सत्वचन कहकर अंदर चले गए, लेकिन मूढ़े के पास जगह खाली न होने के कारण आपजी उन नाम-अभिलाषी जीवों में पीछे ही बैठ गए। पूजनीय बेपरवाह जी ने आप जी को आवाज देकर अपने मूढ़े के पास बिठाया और ये ईलाही वचन फरमाया, ‘‘आप को जिन्दाराम का लीडर बनाएंगे जो दुनिया को नाम जपाएगा।’’ सच्चाई तो हमेशा अटल है, पता समय आने पर चलता है। तब ही नाम शब्द देने के बहाने बेपरवाह जी ने पूजनीय परम पिता जी की ईलाही ताकत को पूरी दुनिया के सामने प्रकट कर दिया।

कठीन परीक्षा: सार्इं जी के हुक्म पर आप जी ने तोड़ डाला अपना हवेलीनुमा घर

पूजनीय परम पिता जी जब से बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज की पावन दृष्टि में आए, उस दिन से ही सार्इं जी ने आप जी को अपना उत्तराधिकारी मान लिया था। इसलिए पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने आप जी की बहुत कठिन परीक्षा ली। पूजनीय बेपरवाह जी ने आप जी को अपना मकान गिराने तथा घर का सारा सामान डेरे लाने का हुक्म फरमाया। पूजनीय परम पिता जी ने दुनिया की लोक-लाज की जरा भी परवाह किये बिना अपने सच्चे मुर्शिद के वचनों पर फूल चढ़ाए। अपने हाथों से अपना हवेलीनुमा घर तोड़कर उस का सारा सामान र्इंटें, गार्डर, लकड़ी के शहतीर, बड़े-बड़े गेट तथा घर का सारा सामान ट्रकों तथा ट्रॉलियों पर लाद कर शहनशाह मस्ताना जी की हजूरी में ले आए। इससे भी कठिन परीक्षा अभी बाकी थी। शाह मस्ताना जी महाराज ने फरमाया कि अपना सारा सामान डेरे से बाहर ले जाओ तथा इसकी रखवाली भी आप करो।

शाह मस्ताना जी महाराज के अनोखे रंगों के समक्ष आप जी ने सिर झुकाया तथा सारा सामान डेरे से बाहर ले आए। कड़ाके की ठंड में आप जी ने सारी रात बाहर गुजारी परन्तु आप जी के दिल में अपने मुर्शिद के प्रति दृढ़-विश्वास रत्ती भर भी नहीं डोला। अगले दिन आप जी ने घर के सामान की रक्षा से अधिक सेवा को उत्तम माना और सारा सामान सत्संग पर आई साध-संगत को अपने पवित्र कर-कमलों से बांट दिया। अपने गुरु के लिए आप जी के इस महान त्याग की मिसाल दुनिया में कहीं भी नहीं मिलती। आप जी की कठिन परीक्षा के बाद बेपरवाह सार्इं जी ने अपनी रहमत बरसाते हुए फरमाया कि हमने आप जी की कठिन परीक्षा भी ले ली परन्तु आप जी को पता नहीं लगने दिया। बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने आप जी को अपने उत्तराधिकारी का खिताब बख्शा और आप जी का नाम सरदार हरबंस सिंह से ‘शाह सतनाम सिंह जी महाराज’ कर दिया। शाह मस्ताना जी महाराज ने फरमाया कि दुनिया जिस ‘सतनाम’ को ढूंढ़ती मर गई हमने उसे सबके सामने प्रकट कर दिया है।

28 फरवरी 1960: गुरुगद्दी बख्शिश

सच्चे पातशाह सार्इं बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने सरेआम संगत में वचन फरमाया कि ‘‘सरदार हरबंस सिंह जी को आज से सरदार सतनाम सिंह जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी) किया। उन्हें आत्मा से परमात्मा बना दिया है। सतनाम वो ताकत, जो खंडों, ब्रह्मांडों को सहारा दिये खड़ी है। सारे खंड-ब्रह्मंड जिनके सहारे हंै ये वो ही सतनाम हैं।’’ दिनांक 28 फरवरी 1960 को बेपरवाह सार्इं जी ने आपजी को पूर्ण गुरु मर्यादा पूर्वक डेरा सच्चा सौदा में दूसरे पातशाह के रूप में अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। आपजी को सिर से पांवों तक नोटों के लम्बे-लम्बे हार पहनाए गए और एक सुंदर गाड़ी (जीप) में विराजमान कर पूरे सरसा शहर में प्रभावशाली जुलूस के रूप में घुमाया।

तमाम साध-संगत उस बेपरवाही जुलूस में साथ थी ताकि दुनिया को भी पता चले कि पूजनीय बेपरवाह जी ने पूजनीय परम पिता जी को गुरूगद्दी प्रदान कर डेरा सच्चा सौदा में बतौर दूसरे पातशाह विराजमान किया है। उपरांत पूजनीय बेपरवाह जी ने आपजी को डेरा सच्चा सौदा में विशेष तौर पर बनाई गई तीन मंजिला शहनशाही ‘अनामी गुफा’ में सुशोभित कर वचन फरमाये कि ‘न ये हिल सके और न ही कोई हिला सके। सार्इं जी ने फरमाया, असीं अपने प्यारे मुर्शिद सार्इं सावण शाह दातार के हुकुम से सरदार सतनाम सिंह जी को आत्मा से परमात्मा कर दिया है। ये अनामी गुफा सरदार सतनाम सिंह जी को असीं इनकी कुर्बानी के बदले ईनाम में दी है, वरना हर कोई यहां रहने का अधिकारी नहीं है और उसी दिन से बेपरवाह जी ने आपजी को अपने साथ ही शाही स्टेज पर बिठाया।

हम थे, हम हैं, हम ही रहेंगे

23 सितम्बर 1990 का पावन स्वर्णिम लम्हा डेरा सच्चा सौदा के इतिहास में विशेष महत्व रखता है। पूजनीय परम पिता जी ने डेरा सच्चा सौदा की पवित्र मर्यादा के अनुसार पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को शहंशाही स्टेज पर अपने पवित्र कर कमलों से अपना उत्तराधिकारी घोषित कर मानवता के ऊपर महान उपकार किया। इस दौरान पूजनीय परम् ापिता शाह सतनाम जी महाराज ने वचन फरमाए कि जैसा हम चाहते थे बेपरवाह मस्ताना जी ने उससे भी कई गुना अधिक गुणवान (सर्वगुण संपन्न) नौजवान हमें ढूंढ कर दिया है।

हम उन्हें ऐसा बब्बर शेर बनाएंगे जो मुंह तोड़ जवाब देंगे। पहाड़ भी अगर इनसे टकराएगा तो वो भी चूर-चूर हो जायेगा। हमने इन्हें अपना स्वरुप बनाया है। इस पाक पवित्र अवसर पर पूजनीय परम पिता जी ने ‘हम थे (पूज्य बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज के रूप में), हम हैं (परमपिता शाह सतनाम जी के रूप में) और हम ही (पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के रूप में) रहेंगे’ वचन फरमाकर रूहानियत में एक नई मिसाल कायम की। यही नहीं, सभी शंकाओं का निवारण करते हुए लगभग सवा साल तक पूज्य परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने पूजनीय हजूर पिता जी को अपने साथ शाही स्टेज पर विराजमान किया।

रामनाम का बजाया डंका, नशों, रूढ़िवादी प्रथाओं, पाखंडों का किया खात्मा

पूजनीय परम पिता जी ने डेरा सच्चा सौदा की दूसरी पातशाही के रूप में गद्दीनशीन होकर लगभग 30 वर्षों तक साध-संगत की संभाल की। आप जी ने साध-संगत को हक-हलाल की करके खाना, किसी का दिल न दु:खाना व बुराइयों से दूर रहकर मालिक-प्रभु की सच्ची भक्ति करने, मालिक का नाम जपने और इंसानियत की सेवा में समय लगाना, सच के रास्ते पर दृढ़ता से चलने का साध-संगत को पाठ पढ़ाया। आप जी ने बेसहारों को सहारा प्रदान करके उन्हें सामाजिक घृणा का शिकार होने से बचाया और अच्छे नागरिक होने का अधिकार उन्हें वापिस दिलवाया। आप जी ने प्रचलित बाहरी दिखावा, रूढ़िवादी प्रथाओं का खंडन किया।

आप जी ने सीधी-सादी लोक प्रचलित भाषा में राम-नाम का प्रचार किया। घर-परिवार व समाज के हर कार्य में संयम बरतने, सीमित परिवार में रहकर बच्चों की अच्छी तरह से देखभाल करना, उन्हें अच्छी शिक्षा देकर बुराइयों से रोककर प्रभु-भक्ति में लगाना आप जी का संदेश रहा। आप जी ने 11 लाख लोगों को नाम की अनमोल दात प्रदान करके नशों व अन्य बुराइयों से बाहर निकाला। आप जी ने कई ग्रंथों व भजनों की रचना की जिनकी भाषा इतनी सरल, साधारण है कि कोई भी साधारण व्यक्ति पढ़कर समझ सकता है। अंत में 13 दिसम्बर-1991 दिन शुक्रवार समय 12 बजकर 13 मिनट पर पूजनीय परम पिता जी ने अपनी रूहानी यात्रा पूरी करके चोला बदला।

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