” नाच रहा ये जहां “नाच रहा ये जहां ..
डालू जिधर नजर रहमतों के भंडार खुले हैं ,
होकर खुशियों में बावले
आज हम अपने को भूले हैं ।
हमारी किस्मत बनाई ,
की तुम्हें पाकर धन्य हुए ।
आज चली महकती पुरवाई ,
जो हर दिल को छुए ।
नाच रहा है ये जहां ,
हलचल है दसों दिशाओं में ।
नीर प्रेम का बहे ,
वैराग्य है भावनाओं में ।
उतर आया हो चांद धरा पर ,
ऐसा प्रकाश है सब ओर ,
आगमन में खुदा के ,
स्वागत कर रही है भोर ।
हजूर को पहना कर हार ,
शाह – सतनाम जी ने सौंपी संगत की जिम्मेवारी ।
जीव को काल से छुड़ाने ,
दी दोनों जहां की नंबरदारी ।
इंसानियत बचाने हेतु ,
सतगुरु बनकर आए हैं जवान ।
डेरा सच्चा सौदा की राह पर चलके ,
हषार्या ये जहान ।
जिसने खुदा माना ,
लूट रहे हैं वो नजारे ।
करते सेवा जो ,
खुशियां नाचे उनके द्वारे ,
भटके न कभी राह से ,
तू रखना हरदम अपने पास ।
सूरत हो आपकी ही दिल में ,
बस इतनी सी कहूं बात ।।
कुलदीप स्वतंत्र
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