डॉक्टर साहिबानों की सलाह के अनुसार पूजनीय परम पिता जी प्रतिदिन सेवादारों के साथ किसी खुली व स्वच्छ जगह पर सैर करने के लिए जाते थे। आप जी ने अपने टहलने के लिए जो जगह पंसद की थी वहां की भूमि कंकरीली एवं पथरीली थी। समस्त भूमि पर कंकरों की मोटी तह बिछी हुई थी। पूज्य हजूर पिता जी को जब यह पता चला कि पूजनीय परम पिता जी ने अपने टहलने के लिए जिस रास्ते का चयन किया है वह कंकर, पत्थरों से भरा हुआ है तो उन्होंने सोचा कि मेरे मुर्शिद के चरणों में कहीं कंकर न चुभ जाएं। अत: वे कस्सी और झाडू लेकर पूरी रात उस रास्ते को साफ करने में लगे रहे।
यह भी पढ़ें:– 142 मानवता भलाई कार्यों को रफ्तार दे रही शाह सतनाम जी नगर की सेवादार बहनें
सुबह जब पूजनीय परम पिता जी टहलने के लिए उस रास्ते की तरफ गए तो उस रास्ते की कायापल्ट देखकर दंग रह गए तथा पूज्य हजूर पिता जी की तरफ देखकर फरमाने लगे, आंखों ही आंखों में बातें हुई, शायद कह रहे थे कि हमारे लिए इतना कष्ट उठाने की क्या आवश्यकता थी। उल्लेखनीय है कि पूजनीय परम पिता जी रोजाना तीस-चालीस कदम ही चलते थे। लेकिन उस दिन पूजनीय परम पिता जी अपनी लाठी को फैंककर बिना किसी सहारे के लगभग 300 कदम (जहां तक पूज्य हजूर पिता जी ने सफाई की थी) तक चलकर गए। यह दृश्य देखकर सब हैरान रहे कि वाह सतगुरू तेरे खेल निराले हैं।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter, Instagram, LinkedIn , YouTube पर फॉलो करें।