एक दिन जब पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज अपने कक्ष में बैठे हुए थे, जहां पर दो सेवादार भी आप जी के सानिध्य में बैठे हुए थे, पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को याद करते हुए पूजनीय परम पिता जी ने फरमाया, ‘‘गुरमीत सिंह बड़ा हंसमुख है, जब भी देखो हंसता रहता है, खर्चीला भी बहुत है, हालांकि वह सारा खर्च परमार्थ के लिए ही करता है। इसे कहा करो कि यहां इतना खर्च न किया करे। इकलौता लड़का होने के कारण घर वालों का लाडला है लेकिन मालिक की मेहर द्वारा अच्छे रास्ते पर (परमार्थ में) लगा हुआ है।’’ जब भी कभी पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को बाजार से सामान खरीदने में देरी हो जाती तो पूजनीय परम पिता जी उनका बहुत ज्यादा फिक्र करते। एक दिन की बात है कि पूज्य हजूर पिता जी बाजार गए हुए थे। जब वे बहुत देर तक वापिस नहीं लौटे तो पूजनीय परम पिता जी बाहर साध-संगत में ही बैठे रहे और बार-बार यही फरमा रहे थे, ‘‘ अब तक उन्हें आ जाना चाहिए था, पता नहीं इतनी देर क्यों लगा दी।’’ तभी पूज्य हजूर पिता जी वहां पहुंच गए।
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पूज्य सतगुरू जी ने फरमाया, ‘‘भाई, हम तुम्हारे इंतजार में ही बैठे थे। इतनी देर न लगाया करो, हमें आपकी फिक्र हो जाती है।’’ पूजनीय परम पिता जी जब बीकानेर गए तब अपनी लाठी सरसा आश्रम में ही छोड़ गए थे। वहां लाठी की जरूरत को अनुभव करते हुए एक दिन पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां नई लाठी लेने के लिए बाजार में चले गए। उस दिन भी उन्हें वापिस आते समय काफी अंधेरा हो गया था। पूजनीय परम पिता जी उनका इंतजार करते हुए ऊपर छत पर चले गए। जब पूज्य हजूर पिता जी वापिस पहुंचे तो उन्हें उसी समय अपने पास बुला लिया और फरमाया, ‘‘भाई, इतनी देर न लगाया करो और जल्दी आया करो।’’ पूज्य हजूर पिता जी की तरफ निहारते हुए फरमाने लगे, ‘‘बेटा! हमें तुम्हारा ही फिक्र रहता है।’’ जब भी पूज्य हजूर पिता जी पूजनीय परम पिता जी के पास होते तो पूज्य हजूर पिता के प्रति उनका प्रेम स्पष्ट झलकता था।
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