वाह! आपने तो हमें ही रंगोली में बना रखा है, बहुत आशीर्वाद बेटा!
सच कहूँ/बेव डेस्क विजय शर्मा
उज्जैन। शनिवार को मध्यप्रदेश की साध-संगत पर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने खूब प्यार व आशीर्वाद लुटाया। उत्तर प्रदेश के जिला बागपत स्थित शाह सतनाम जी आश्रम बरनावा से आॅनलाइन गुरुकुल के माध्यम से जुड़ी मध्यप्रदेश की समस्त साध-संगत रूहानी दर्शन कर निहाल हुई। विनायक उज्जैन सिटी में आयोजित रूहानी सत्संग के दौरान पूज्य गुरु जी ने जहां बड़ी संख्या में लोगों की बुराईयां व नशा छुड़वाया वहीं साध-संगत से मिलकर पूज्य गुरु जी रूहानी सफर की यादें भी ताजा हो गई। पूज्य गुरु जी के स्वागत में समस्त सेवादारों व
साध-संगत ने जहां सुंदर रंगोली बनाई वहीं हवा में गुलाल उड़ा कर अपनी खुशी का इजहार किया। आॅनलाइन गुरुकुल के दौरान पूज्य गुरु जी से जिम्मेवारों व 45 मैंबर कमेटी के सदस्यों ने अरदास करते हुए कहा कि गुरु जी, पहले भी आपने दो बार पावन चरण टिकाएं हैं और अब तीसरी बार आपने साध-संगत पर रहमत की है। हम सब पर अपना आशीर्वाद बनाएं रखना ताकि हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को राम नाम से जोड़कर उनकी बुराइयां व नशा छुड़वा सकें।
बेटा! नशों के खिलाफ भी ऐसी कोई रंगोली बनाओ…
इस दौरान जब डॉ. एमएसजी ने एक सेवादार द्वारा फूलों से बनाया गया अपना स्वरूप देखा तो पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि, बहुत आशीर्वाद बेटा, और आपने तो रंगोली में भी हमें ही बना रखा है। वाह! क्या गजब कर रखा है। बहुत अच्छा है, जिसने भी कलाकारी की है। भगवान उसे बहुत खुशियां दें। मालिक दया मेहर रहमत से नवाजे। इस दौरान पूज्य गुरु जी ने उस सेवादार से बात भी की और फरमाया कि बेटा कमाल कर दिया, ऐसी कोई रंगोली नशें के खिलाफ भी बनाओ, अच्छा लगेगा जब वो लोगों को दिखाएंगे। आगे जब भी आपके सत्संग हो तो कोशिश करना कि वो भी बनाना, ये तो आपने खुबसूरत बनाई ही है। आपके प्यार की निशानी है हम दिल से स्वीकार करते हैं। और मालिक से दुआं करते हैं, आपको बहुत-बहुत खुशियां दे।
जब पिता जी ने सुनाया, उज्जैन सत्संग का एक किस्सा
साध-संगत से बातचीत के दौरान पूज्य गुरु जी फरमाया कि बेटा हमें याद है जब उज्जैन में हमने सत्संग किया था, थोड़ी गर्मी थी, सेवादार हाथों से पंखा कर रहे थे, तो एक पंजाब का सेवादार था जो पंखा कर रहा था, तो कोई खड़ा हो गया। वो पंखा जोर से हिला रहा था, तो पंखा उसे लगा और वो भाई बैठ गया। बैठने के बाद वो नशा छोड़कर गया, वो सत्संग के बीच में से उठकर जा रहा था, लेकिन पंखा लगा तो वो बैठ गया। उसने देखा कि ऊपर पंखा लग रहा है तो इससे अच्छा है कि बैठ ही जाऊं। तो वो नशा छोड़ गया। जब वो नशा छोड़कर जाने लगा तो, अब वो जिस भाई से पंखा लगा था, उसने उसके पैर पकड़ लिये, अब वो हिन्दी बोलने वाले थे, और वो दूसरा पंजाबी। तो पंजाबी बोलने वाला कहता मैथो, हो गया, मैथो हो गया, वो हिन्दी वाला कहता कोई नहीं, कोई बात नहीं, दूसरो कहता नहीं नहीं यार मैंनू माफ कर दे। वो काफी देर ऐसे ही करते रहे। इतने में हम आ गए। अब न तो पंजाबी वाले को ये समझ पड़े की ये बोल क्या रहा है। और न हिन्दी वाले को। तो वो हमें बोला, गुरु जी इसने तो मेरा अच्छा ही कर दिया। मैं तो उठकर जा रहा था, इसने पंखा घुमाया, मेरे लगा और मैं बैठ गया। मैं नशें छोड़कर जा रहा हूँ आज, मुझे बड़ा अच्छा लगा अपकी बातें सुनकर, वरना मैं तो बीच में से ही उठ कर जा रहा था, तो मैं तो इसका धन्यवाद कर रहा हूँ, पता नहीं ये क्या कह रहा है। हमने कहा अरे वो भी आपसे माफी मांग रहा है। तो वो लड़का आज भी हमें याद है। उसका नाम ख्याल में नहीं आ रहा है जो पंखा करता था।
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