सच कहूँ/तरसेम सिंह
जाखल। पंजाब के बाद लंपी ने हरियाणा के जाखल के गांवों में भी दस्तक दे दी है। ब्लॉक जाखल के गांव चांदपुरा में बेसहारा पशुओं में संक्रमित बीमारी लंपी स्किन के 3 गोवंश में इस बीमारी के लक्षण मिले। जिनका उपचार डेरा सच्चा सौदा प्रेमियों द्वारा खुद अपने स्तर पर किया जा रहा है। जानकारी देते हुए डेरा प्रेमी करमजीत इन्सां, मेघा इन्सां, हरजिंदर इन्सां ने बताया कि उनके खेतों के आसपास उन्होंने लंपी स्किन से ग्रस्त तीन बेसहारा गायों को देखा। उन्हें इस बीमारी के लक्षण के बारे में पहले से जानकारी थी। इसीलिए उन्होंने खुद उनके लिए हरा चारा और दवा दारू कर अपने स्तर पर इलाज शुरू कर दिया है ताकि यह बीमारी गांव के अन्य दुधारू पशुओं में न फैले। इस बीमारी से संक्रमित पशु के शरीर पर गांठें हो जाती हैं। गांठ में सूजन के कारण मवाद और रक्त बहने लगता है और पशु के बुखार आता है। जिससे पशुओं के दूध देने की क्षमता प्रभावित होती है। साथ ही पशुओं में मृत्यु दर बढ़ जाती है। उन्होंने पशुपालन विभाग से मांग करते हुए कहा कि उनके गांव में भी इस तरह की बीमारी की रोकथाम हेतु पशुओं में टीकाकरण अभियान चलाया जाना चाहिए।
लंपी बीमारी के लक्षण
लंपी स्किन डिसीज बीमारी पशुओं को होने वाली एक वायरल बीमारी है। ये पॉक्स वायरस से मवेशियों में फैलती है। यह बीमारी मच्छर और मक्खी के जरिए एक से दूसरे पशुओं में फैलती है। इस बीमारी के लक्षणों में पशु के शरीर पर छोटी-छोटी गांठें बन जाती हैं। पशु के शरीर पर जख्म नजर आने लगते हैं। पशु खाना कम कर देता है। उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता घटने लगती है।
मानसून में बढ़ा खतरा
मानसून इस रोग को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है। बारिश के मौसम में इस बीमारी का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है। इस समय मच्छर और मक्खियों की तादात बढ़ जाती है। ऐसे में किसी मवेशी को छोटी जगह और कीचड़ युक्त जगहों पर नहीं रखना चाहिए। इसके अलावा मवेशी के इम्यून सिस्टम पर विशेष ध्यान दें। इम्यून सिस्टम अच्छा रहेगा, बीमारियों का खतरा कम हो जाएगा। उन्होंने बताया कि यह बीमारी जानवरों से मनुष्यों में नहीं फैलता। यह एक जानवर से दूसरे जानवर में फैलता है। इस समय सबकों ध्यान देने की जरूरत है। जिस गाय में इस तरह के लक्षण नजर आते हैं, उसका दूध उबालकर पीएं। इसके अलावा जानवरों की साफ-सफाई के साथ-साथ, जहां पर पानी एकत्रित है, वहां स्प्रे करवाना चाहिए।
इन बातों का रखें ध्यान
- मवेशियों को एक से दूसरे जिले में ले जाना भी तुरंत बंद करें।
- खून चूसने, संक्रमण फैलाने वाले मच्छर-मक्खियों से बचाएं।
- संभव हो तो बाड़े के बाहर न निकालें
- बाड़ा भी साफ, सूखा व मच्छर-मक्खी रहित बनाए रखें।
- रात के समय मवेशियों को एक से दूसरी जगह न ले जाएं
चूने खासतौर पर बिना बुझे चूने या कास्टिक चूने से पशु की खाल पर परत बनाएं, इससे कीड़ों से बचाव होगा।
क्या हैं लक्षण
- पशुओं को चलने फिरने में परेशानी हो रही है।
- पांव सूज रहे हैं, शरीर पर गांठें हो रही हैं और बुखार भी आ रहा है।
- इससे वह खान पान भी नहीं कर पा रहे हो।
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