पूजनीय बाबा सावन सिंह जी महाराज जी ने पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज जी को अपना बहुत ही सुंदर कोट उतार कर दिया। उस पर रंग बिरंगे सितारे लगे हुए थे। वह बहुत ही कीमती कोट था। आप जी यह कोट पहनकर बाहर निकले तो रास्ते में आपजी को एक भक्त मिला। पूजनीय बाबा जी की प्रशंसा में उस भक्त ने कई भजन बोले। आप जी अपने मुर्शिद की प्रशंसा सुनकर बहुत ही खुश हुए।
आप जी उसे कोई बड़ा ईनाम देना चाहते थे। उस समय आप जी ने अपना कोट उतारा व उस भक्त को पहना दिया। कुछ ईर्ष्यालु लोगों ने पूजनीय बाबा सावन सिंह महाराज जी को आप जी की शिकायत कर दी कि जो कोट आपजी ने मस्ताना शाह बिलोचिस्तानी को दिया था उसे उन्होंने किसी और व्यक्ति को पहना दिया है। वह आप जी की दी हुई दात थी। उन्होंने उस कोट की कोई कद्र नहीं की।
पूजनीय बाबा जी ने उस समय आप जी को बुलाया व पूछा ‘‘आपका कोट कहां है?’’ आप जी ने उतर दिया ‘‘मैं कोट पहनकर बाहर जा रहा था कि रास्ते में इक भक्त मिला, वह आप जी की प्रशंसा में भजन बोल रहा था, मेरे से रहा नहीं गया, मेरे पास देने के लिए कोट के अलावा और कुछ नहीं था और अगर वह मेरी चमड़ी भी मांगता तो मैं वह भी उतार के दे देता।’’ वहां खड़े वह लोग मुर्शिद के प्रति बेहद भावुक कर देने वाले शब्द आपजी के पवित्र मुंह से सुनकर अंदर से कांपने लगे।
पूजनीय बाबा जी ने फरमाया ‘‘देखो भाई इसके पास जो कुछ था अपने सतगुरू के नाम पर इसने कुर्बान कर दिया। है कोई! जो सतगुरू के नाम पर इस तरह अपना सब कुछ कुर्बान कर दे?’’ वह ईर्ष्यालु कुछ भी नहीं बोल सके। पूजनीय बाबा जी आप जी पर बहुत खुश थे। वह अपनी मौज में आकर आपजी पर रहमतों के खजाने लुटाते रहते। आप जी हमेशा सतगुरू जी के प्रेम में ही मगन रहते थे।
जब मालिक के साथ ही तार जुड़ गई तो पीछे क्या रहा गया
17 जून 1967 को पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज गांव केले बांदर (आजकल नसीबपुरा) जिला बठिंडा में सत्संग फरमाने के लिए पधारे। पूरा गांव सत्संग की खुशी में फूले नहीं समा रहा था। इस गांव में उस समय 317 व्यक्तियों को आप जी ने नाम की अनमोल दात प्रदान की। साध-संगत के प्रेम व नाम शब्द लेने वालों का उत्साह देखकर पूजनीय परमत पिता जी बेअंत खुश हुए व वचन फरमाए ‘‘बेटा, आपके गांव का पहला नंबर है।’’
परम पिता जी ने गांव के बारे में वचन फरमाए, ‘‘बेटा, यह तो नसीबों वाला नगर है।’’ परम पिता जी ने सत्संग में चल रही कव्वाली में एक और तुक जोड़ दी-‘‘पिंड तर गिया नसीबपुरा सारा, गुरू दे नाल तार जोड़ के।’’ एक प्रेमी भाई ने परम पिता जी के आगे बेनती की कि, ‘‘पिता जी’’ हमारी प्रेम रूपी तार ही आप जी के चरणों के साथ हमेशा जुड़ी रहे तब परम पिता जी फरमाया, ‘‘बेटा। आप तो सबकुछ पा गए जब तार ही मालिक से जुड़ गई तो पीछे क्या रह गया।’’ यह वचन सुनकर सारी साध-संगत खुशी से नाच उठी।
चोर को दी अनोखे तरीके से चोरी की आदत छोड़ने की शिक्षा
गुरगद्दी पर बिराजमान होने से पहले पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज श्री जलालआणा साहिब में अपने खेतों की संभाल व निगरानी खुद करते थे। एक बार आपजी के खेत में चनों की फसल की चोरी होने लगी। परम पिता जी ने निगरानी शुरू की व एक दिन किसी व्यक्ति को चोरी चोरी फसल चुराते देख लिया।
चोर ने चनों की भरौटी बांध ली लेकिन मुफ्त के माल के लालच में उस चोर ने अधिक फसल काट दी कि वह भरौटी उससे उठाई ही नहीं गई। परम पिता जी धीरे धीरे उसके पास पहुंच गए। चोर आप जी को देखकर घबरा गया। आप जी ने उसे हौंसला दिया और न डरने के लिए कहा। परम पिता जी ने उसे फरमाया कि इस भरौटी की दो भरौटियां बना लो और हम एक-एक कर उठा लेते हैं।
चोर चाहता था कि यह दोनों भरौटियां आप जी ने (परम पिता जी) के घर ले जाई जाएं। परम पिता जी फरमाया, ‘‘नहीं यह आपके हिस्से की हैं और आपके घर पर ही लेकर चलेंगे’’। परम पिता जी अपने पवित्र कर कमलों के साथ उस भरौटी को उसके घर छोड़कर आए। जब परम पिता जी उस व्यक्ति के घर से वापिस आने लगे तो उसने आप जी से माफी मांगी व आगे से कभी भी चोरी नहीं करने का वायदा किया। पूजनीय परम पिता जी महानता वर्णन से परे है, जिनकी दयालता के कारण न सिर्फ चोर को माफ किया बल्कि उसे चोरी की बुरी आदत छोड़ने के भी काबिल बनाया।
13 दिनों में 33 सत्संग
पूजनीय गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने दुनिया को परमात्मा के सच्चे नाम के साथ जोड़ने के लिए अपने सुख आराम की कभी परवाह नहीं की। एक दिन में तीन तीन सत्संग भी फरमाए। एक दिन में 1200 किलोमीटर से अधिक का सफर तय कर मुश्किलों भरे रास्तों वाले क्षेत्रों में सत्संग फरमाए।
1998 में आप जी ने एक बार राजस्थान व मध्यप्रदेश के क्षेत्रों में 13 दिनों में 33 सत्संग फरमाए। आप जी गांव-गांव गए। इस दौरान आप जी खुले स्थानों पर लगाए गए तंबुओं में रूकते रहे, आप जी जहां भी जाते हर धर्म, जाति, भाषा के लोग आपजी से बहुत ही प्रभावित होते। लोग आप जी के प्यार में रंगे गए व उन्होंने आप जी को अपने घर रूकने की बेनती की। आप जी ने संगत के अथाह प्यार को स्वीकार करते हुए राजस्थान व मध्यप्रदेश में संगत की संभाल के लिए कई आश्रमों का निर्माण करवाया।
भलाई के मील पत्थर
डेरा सच्चा सौदा सरसा के पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां जी के पवित्र नेतृत्व में 7 दिसंबर 2003 में एक बड़ा रक्तदान कैंप लगाया गया, जिसमें 15432 यूनिट रक्तदान हुआ जो गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है
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