लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Election) के लिए प्रचार जोरों पर हैं। इस बार चुनावों की खास बात यह है कि पार्टियों को सबसे अधिक जोर उम्मीदवार ढूंढने पर लगाना पड़ रहा है। दूसरी पार्टियों के नेताओं को धड़ाधड़ शामिल कर टिकटें भी साथ की साथ पकड़ा दी गई हैं। आमजन भी यह बात आसानी के साथ कह देता है कि जिस नेता ने पार्टी बदली है उसकी टिकट भी पक्की है। मीडिया टिकट मिलने के आसार लिखता है और अगले दिन हकीकत में टिकट मिल भी जाती है। इसी तरह पार्टियां भी एक-दूसरे को देख-देखकर और सोच-सोचकर दे रही हैं।
अगर दमदार नेता हो तो इंतजार करने की जरुरत ही ना पड़े। हैरानी की बात है कि अलग-अलग पार्टियों के पास सैकड़ों छोटे-बड़े नेता हैं परंतु काबित उम्मीदवार नहीं। वास्तव में पार्टियों के अनुसार नेता की योग्यता सिर्फ जीतना ही है। जीतने की होड़ में सिद्धांत नजरअंदाज हो जाते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि वर्तमान राजनीति में सिद्धांत व संस्कारों की कमी है। जीत-हार राजनीति का अंग होना चाहिए उद्देश्य नहीं। राजनीति मुख्य तौर पर जीत-हार से ऊपर होनी चाहिए पार्टियों को अपने सिद्धांतों पर पहरा देने वाले नेताओं पर भरोसा रखना चाहिए। बड़ी अच्छी बात है कि भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र देश है परंतु लोकतंत्र के सिद्धांत भी अपनाने जरुरी हैं।