भारत का अनूठा पर्व और उसकी परंपराओं का महत्व बताता है लोहड़ी पर्व | Lohri Festival
Lohri 2025: लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व साल की ठंड के मौसम में गर्माहट और उत्साह का प्रतीक है। इस दिन लोग अपने पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को मजबूत करने के लिए एकत्रित होते हैं। लोहड़ी मुख्य रूप से पंजाबी संस्कृति का हिस्सा है, लेकिन धीरे-धीरे यह अन्य क्षेत्रों में भी लोकप्रिय हो गया है। इसे नई फसलों की कटाई और ठंड के अंत का उत्सव माना जाता है।
लोहड़ी पर्व (Lohri Festival) से जुड़ी कई लोककथाएं प्रचलित हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी दुल्ला भट्टी से जुड़ी है। दुल्ला भट्टी को ‘पंजाबी रॉबिनहुड’ के नाम से जाना जाता है। यह एक ऐसा वीर था, जो अमीरों से धन लूटकर गरीबों में बांटता था। उसकी बहादुरी और न्यायप्रियता के किस्से आज भी लोहड़ी के गीतों में गाए जाते हैं। कहा जाता है कि उसने एक ब्राह्मण कन्या सुंदरी की जबरन शादी को रोकते हुए उसे अपनी बेटी मानकर एक योग्य युवक से विवाह करवाया। इस घटना की याद में लोग अलाव जलाकर जश्न मनाते हैं।
लोहड़ी का मुख्य आकर्षण अलाव जलाने की परंपरा है। लोग लकड़ियां और उपले इकट्ठा कर रात के समय आग जलाते हैं। इस अलाव के इर्द-गिर्द नाचते-गाते हुए मूंगफली, तिल, गुड़ और रेवड़ी की आहुति दी जाती है। इस दौरान दुल्ला भट्टी के गीत। सुंदर-मुंदरिये हो, तेरा कौन विचारा हो…,
दे माई लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी, ईशर आ दरिद्र जा दरिद्र की जड़ चूल्हे पा इत्यादि गाने गाए जाते हैं। यह परंपरा न केवल सर्दी से बचने का एक तरीका है, बल्कि अग्नि को पवित्र मानकर सुख-समृद्धि और शांति की कामना भी की जाती है। इस पर्व पर बच्चों की भूमिका भी खास होती है। वे घर-घर जाकर लोहड़ी के गीत गाते हैं और “लोहड़ी दो” कहकर तिल, गुड़, मूंगफली और रेवड़ी इकट्ठा करते हैं। हालांकि, यह परंपरा समय के साथ घटती जा रही है। अब लोग बाजार से लकड़ियां और अन्य सामग्री खरीदते हैं।
लोहड़ी (Lohri) का महत्व उन परिवारों के लिए और भी बढ़ जाता है, जहां नई शादी हुई हो, संतान का जन्म हुआ हो, या शादी की पहली वर्षगांठ हो। ऐसे घरों में उत्सव का माहौल होता है। रिश्तेदार और पड़ोसी इकट्ठा होकर इस पर्व का आनंद लेते हैं। हरियाणा और पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों में लोहड़ी विशेष धूमधाम से मनाई जाती है। यहां का भांगड़ा और गिद्धा नृत्य इस पर्व को और भी मनोरंजक बना देता है। यह पर्व नई फसलों की कटाई का प्रतीक भी है। खेतों में खड़ी गन्ने, गेहूं और मक्का की फसलों की खुशहाली के लिए किसान सूर्यदेव का धन्यवाद करते हैं। इस दिन लोग सूर्य की पूजा कर यह प्रार्थना करते हैं कि उसकी किरणें धरती को इतनी ऊर्जा प्रदान करें कि ठंड से होने वाली समस्याएं समाप्त हो जाएं।
लोहड़ी के दिन बनने वाले खास व्यंजन भी इस पर्व को यादगार बनाते हैं। तिल और गुड़ से बने लड्डू, गजक, मूंगफली और मक्की की रोटी के साथ सरसों का साग इस दिन के विशेष पकवान हैं। इन व्यंजनों का सेवन करने से शरीर को गर्माहट मिलती है, जो ठंड के मौसम में अत्यंत आवश्यक होती है।
लोहड़ी (Lohri) पर गाए जाने वाले गीतों में खुशी और उत्साह के साथ-साथ सामाजिक एकता और न्याय का संदेश भी छिपा होता है। दुल्ला भट्टी की कहानी का जिक्र करते हुए ये गीत हमें यह सिखाते हैं कि मुश्किल परिस्थितियों में भी साहस और भाईचारे का परिचय देना चाहिए। हालांकि, शहरीकरण और आधुनिकता ने लोहड़ी के कई पारंपरिक पहलुओं को बदल दिया है, लेकिन इस त्योहार का उत्साह और महत्व आज भी बना हुआ है। लोग अपने-अपने घरों में अलाव जलाते हैं, पारंपरिक व्यंजनों का आनंद लेते हैं और परिवार के साथ समय बिताते हैं। लोहड़ी समाज में प्रेम, सहयोग और भाईचारे का प्रतीक है। यह त्योहार हमें यह संदेश देता है कि एकजुटता और साझेदारी से हर मुश्किल का सामना किया जा सकता है। यह पर्व न केवल ठंड के मौसम में गर्माहट लाता है, बल्कि दिलों में भी उत्साह और उमंग भर देता है।
लोहड़ी (Lohri) का यह पावन पर्व न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि यह सामाजिक एकता और मानवीय संबंधों को भी मजबूत करता है। यह पर्व हमें हमारे पारंपरिक मूल्यों की याद दिलाता है और यह सिखाता है कि जीवन में खुशियों के छोटे-छोटे पलों को कैसे मनाया जाए। इस त्योहार को मनाते हुए हम अपनी संस्कृति, समाज और पर्यावरण के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं। लोहड़ी का यह पवित्र पर्व हर किसी के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लेकर आए, यही कामना है। -योगेश कुमार गोयल (यह लेखक के अपने विचार हैं)
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