लॉकडाउन और भय की भावना

27अप्रैल को मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कांफ्रेसिंग को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कोरोना वायरस का खतरा अभी समाप्त नहीं हुआ है और इस बारे में निरंतर सतर्क रहने की आवश्यकता है। भारत में लॉकडाउान को एक महीने से अधिक हो गया है और प्रधानमंत्री के शब्दों में इस रणनीति के ये अच्छे परिणाम निकले हैं कि हजारों लोगों को कोरोना संक्रमण से बचाया जा सका है।
लॉकडाउन के दूसरे चरण के बीच में ही कुछ राज्यों ने इसे और बढाए जाने की इच्छा व्यक्त की है क्योंकि इन राज्यों में स्थिति अभी सामान्य नहीं है। गोवा, ओडिशा और मेघालय में कोरोना वायरस का प्रभाव अधिकतर स्थानों पर नहीं पड़ा है किंतु वे भी लॉकडाउन के कारण हो रही असुविधाओं का सामना करने के लिए तैयार हैं ताकि इस महामारी के विरुद्ध मुकाबले को तब तक न छोड़ा जाए जब तक हम इससे पूर्णत: मुक्त न हो जाएं। तमिलनाडू, कर्नाटक और केरल जैसे राज्य लॉकडाउन को बढ़ाने के पक्ष में हैं क्योंकि यह सबसे सुरक्षित विकल्प है। कुल मिलाकर कोई भी राज्य वर्तमान में लॉकडाउन को हटाने के पक्ष में नहीं है। मुख्यमंत्रियों द्वारा इस संबंध में अपनाए गए सतर्कतापूर्ण दृष्टिकोण प्रधानमंत्री को स्थानीय दशाओं के आधार पर धीरे धीरे लॉकडाउन को हटाने की योजना बनाने में सहायता मिलेगी क्योंकि अब लॉकडाउन को हटाना इसे लागू करने से अधिक कठिन है। इसमें कोरोना महामारी की स्थिति का आकलन करना होगा साथ ही इसके प्रसार के अनुकूल कारकों तथा नियंत्रण के उपायों का मूल्यांकन करना होगा।
महामारी की वापसी और भी खतरनाक होगी। अपने देश के बारे में निर्णय लेते समय हमें वैश्विक स्थिति को भी ध्यान में रखना होगा। भारत में 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा की गयी थी और यह आनन फानन में उठाया गया कदम नहीं था न ही यह विलंब से उठाया गया कदम था। भारत में कोरोना का पहला मामला 30 जनवरी को मिला और इन मामलों में धीरे धीरे वृद्धि होती गयी। वैज्ञानिकों ने भी लॉकडाउन को एक बहुत बड़ा कदम माना। इसका स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। कुछ लोगों का मानना था कि समुदाय और नागरिक समाज द्वारा सेल्फ क्वारंटाइन और निगरानी अधिक उचित और लागू करने योग्य रणनीति है। लॉकडाउन का निर्णय विशेषज्ञों की राय के बाद लिया गया। यह कोई एकपक्षीय राजनीतिक निर्णय नहीं था। उस समय तक कई देशों में पहले ही आंशिक लॉकडाउन लागू किया जा चुका था। लॉकडाउन का उद्देश्य महामारी के प्रसार को रोकना है। तथापि इस दौरान स्वास्थ्य प्रणाली को इस महामारी का मुकाबला करने की तैयारी का समय मिला ताकि सामान्य कार्यकलाप शुरू किए जा सकें। इस महामारी पर नियंत्रण के लिए लक्षण दिखने वाले रोगियों, जिन रोगियों मे लक्षण न दिख रहें हों और लक्षण से पूर्व के रोगियों को शेष लोगों से अलग रखना है और इसीलिए लॉकडाउन किया गया किंतु आम आदमी इसके उद्देश्य को नहीं समझ पाया।
प्रत्येक देश में लॉकडाउन की अपनी धारणा हो सकती है किंतु इसके अंतर्गत छह मुख्य उपाए किए जाते हैं जिनमें बड़े समारोहों पर रोक लगाना, स्कूल और कॉलेजों को बंद करना, लक्षण वाले रोगियों को अलग रखना, सभी लोगों के बीच शारीरिक और सामाजिक दूरी बनाए रखना और 70 से अधिक आयु वर्ग के लोगों का विशेष ध्यान रखना आदि हैं। लॉकडाउन का मुख्य कारण लोगों के बीच शारीरिक संपर्क को एक वांछित स्तर पर दूर रखना है ताकि संक्रमण न फैले। मनुष्य एक सामाजिक प्राणाी हे और इसलिए उस पर कोरोना संक्रमण का प्रहार हो सकता है इसलिए इस संक्रमण से बचने का उपाय कानूनी दृष्टि से एक दूसरे से दूरी बनाए रखना है। क्वारंटीन की प्रथा 14वीं सदी में यूरोप के तटीय शहरों को प्लेग से बचाने के लिए किया गया जो जहाज प्रभावित क्षेत्रों के पत्तनों से आए थे, उन्हें 40 दिन तक लंगर डाले रहना पड़ता था। बार बार पीत ज्वर फैलने के कारण अमरीका में 1978 मे इस संबंध में एक क्वारंटीन कानून बनाया गया और उसके अंतर्गत क्वारंटीन के मामलों में संघ सरकार कार्यवाही कर सकती थी। लोक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम 1944 के अंतर्गत किसी अन्य देश से संचारी रोगों का निवारण और प्रसार नियंत्रण केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी बन गयी थी।
महामारी के संबंध में उपाय केन्द्रीय सरकार को करने चाहिए। यह राज्यों के अधिकारों और स्वायत्त्ता के बारे में प्रश्न के संबंध में अपरिपक्व राजनीति का परिचायक है। राज्यों को स्थानीय स्थिति और कार्यान्वयन रणनीति के बारे में परामर्श किया जाना चाहिए और लॉकडाउन जैसी रणनीति तभी प्रभावी होती है जब उसका निर्णय केन्द्रीय स्तर पर लिया जाता है। संक्रमण की स्थिति अलग अलग होती है इसलिए लॉकडाउन की परिस्थितियां भी अलग अलग हो सकती हैं। किंतु इस बारे में निर्णय राष्ट्रीय स्तर पर लिया जाना चाहिए और सार्थक संयुक्त कार्यवाही के लिए अंतर-राज्य समन्वय समिति का गठन किया जाना चाहिए।
देश में स्थापित विकेन्द्रीकृत प्रशासनिक तंत्र कोरोना महामारी का सामना करने और लॉकडाउन को लागू करने के संबंध में एक वरदान साबित हुआ है। स्वास्थ्य विभाग ने राज्य और जिला स्तरीय समितियों का गठन कर उन्हें मौत के कारणों की जांच करने की जिम्मेदारी सौंपी है। ओडिशा में कोरोना महामारी का मुकाबला करने के लिए सरपंचों को मजिस्ट्रेट की शक्तियां दी गयी हैं और उनसे कहा गया है कि वे लॉकडाउन के उपायों और अन्य एहतियाती उपायों जैसे मास्क पहनना, हाथ धोना, सामाजिक दूरी बनाए रखना, सार्वजनिक स्थानों पर थूकने पर रोक लगाना आदि को कड़ाई से लागू करें। हमारे देश में 260000 ग्राम पंचायतें हैं और उनके 30 लाख से अधिक प्रतिनिधि हैं। जिनमें से एक तिहाई प्रतिनिधि महिलाएं है। देश में लगभग पांच हजार शहरी स्थानीय निकाय हैं। इन शासकीय निकायों के अलावा हजारों स्वयंसेवी संगठन, आरडब्ल्यूए आदि हैं। ये सभी सक्रिय हैं और संबंधित लोगों का इनमें विश्वास है। पंचायतों के सरपंचों और प्रधानों का गांव में काफी सम्मान किया जाता है और कोरोना महामारी जैसे संकट के समय जनता का सहयोग प्राप्त करने के लिए इन संस्थानों का उपयोग किया जा सकता है जो कि लॉकडाउन की सफलता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
अमरीका में कुछ राज्यों में स्टे एट होम के रूप में लॉकडाउन लागू किया गया है। भारत में घर से काम करना आम बात हो गयी है। भारत में लॉकडाउन को कड़ाई से लागू किया जा रहा है जिसका अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। लॉकडाउन के उल्लंघन के कई मामले सामने आए हैं किंतु उनका कारण लॉकडाउन के पालन में आ रही कठिनाइयां ही नहीं है। लोग बाजारों में खूब भीड़ लगा रहे हैं, मास्क नहीं पहन रहे हैं और निजी समारोहों के लिए एकत्र हो रहे हैं। यह नियमों का पालन न करने की आम प्रवृति और अज्ञानता को दर्शाता है। इस महामारी का मुकाबला करने के लिए लॉकडाउन को लागू करने हेतु विभिन्न स्थानीय निकायों और संघों को आगे आना चाहिए।
डॉ. एस सरस्वती

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