शराब की बिक्री समाज पर कलंक

Liquor Mafia
शराब की बढ़ रही खपत को कम करने के लिए सरकारें दावे तो बहुत कर रही हैं लेकिन वास्तविकता इसके बिल्कुल उलट है। पंजाब व हरियाणा की पंचायतों ने हिम्मत कर अपने गांवों से शराब के ठेके बंद करवाने के लिए प्रस्ताव पास किए थे लेकिन पंजाब में सरकार ने पंचायतों के इस प्रयास की बिल्कुल भी कद्र नहीं की। इस बार पंजाब में महज 7 गांवों में शराब के ठेके हटाए जाएंगे। अधिकतर पंचायतों के प्रस्ताव रद्द हो गए हैं।
दरअसल पिछले पांच-सात सालों में पंचायतों ने शराब की बिक्री रोकने के लिए बड़ा उत्साह दिखाया था लेकिन शर्ताें के पर्दे नीचे यह प्रयास सफल नहीं हो सके। धीरे-धीरे पंचायतों के हौंसले टूटते गए व उनमें निराशा पैदा होती गई। इस बार महज 51 पंचायतों ने प्रस्ताव दिए जबकि 2016-17 में 250 के करीब पंचायतें शराब के ठेकों को बंद करवाने में आगे आई थी। इधर हरियाणा में इस बार 872 पंचायतें शराब के खिलाफ डटी हुई हैं।
जिसका निर्णय मंत्री मंडल ने लेना है। अगर हरियाणा सरकार इन पंचायतों के प्रस्ताव पर इन गांवों में शराब की बिक्री रोकती है तो यह अन्य पंचायतों के लिए प्रेरणास्त्रोत बनेगा। वैसे भी हरियाणा की पहचान ‘दूध-दही’ के साथ है। राष्ट्र के खिलाड़ियों ने राष्ट्रमंडल, एशियन खेलों व ओलम्पिक में भारत व अपने राज्य का नाम रोशन किया है। सभी खिलाड़ी दूध-घी को ही अपनी सफलता का श्रेय बताते हैं। कोई भी व्यक्ति शराब की बोतलें खाली कर मैडल नहीं लाया।
इसलिए हरियाणा को शराब की खपत घटाने के लिए जोरदार मुहिम चलानी चाहिए। मनुष्य आदर्श का देवता रहा है न कि राक्षस। विज्ञान के नजरिये से शराब स्वास्थ्य को बर्बाद करती है। आर्थिक व सामाजिक तौर पर भी शराब तबाही ही लाती है। अगर सरकार की शराब से कमाई की बात करे तो ग्राफ ऊपर की तरफ जा रहा है। सरकारें शराब की कमाई को अपनी उपलब्धि बताने से जरा भी संकोच नहीं कर रहीं।
हरियाणा में वर्ष 2018-19 में 6300 करोड़ रूपये का राजस्व एकत्रित हुआ था जोकि 2019-20 में बढ़कर 7 500 करोड़ तक पहुंच गया। अच्छा हो अगर हरियाणा शराब के खिलाफ डटी पंचायतों का स्वागत करे। पंजाब सरकार को वर्ष 2019-20 में 5600 करोड़ से अधिक राजस्व प्राप्त होगा व आगामी वित्तीय वर्ष में इसे 6200 करोड़ से अधिक तक बढ़ाने का लक्ष्य तय किया गया है। अगर बिहार जैसा गरीब राज्य भी शराबबंदी के लिए संघर्ष कर रहा है तब हरियाणा व पंजाब जैसे राज्यों को भी पीछे नहीं हटना चाहिए। शराब से होने वाली कमाई धर्म, विज्ञान व संस्कृति के नाम पर कलंक है।