शराब हमारे समाज पर एक कलंक है, जो मनुष्य की व्यक्तिगत बर्बादी के साथ-साथ समाज और देश के विकास में बड़ी बाधा है। शराब की बिक्री में वृद्धि को कभी भी विकास की कसौटी नहीं माना जा सकता। पंजाब कांग्रेस प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू ने अपनी तरफ से जिस ‘पंजाब माडल’ का जिक्र किया है उसमें शराब से आय में वृद्धि की बात कही है। यह विचार बेहद बेतुका और समाज विरोधी है। गुजरात सहित देश के कई ऐसे राज्य हैं जहां शराबबंदी होने के बावजूद राज्य ने विकास किया है। पंजाब धार्मिक संस्कृति वाला राज्य है, जहां पावन ग्रंथों में शराब को नरकों की नानी और बर्बादी बताया गया है। आज भी देश में लड़ाई-झगड़ों और सड़क दुर्घटनाओं के पीछे बड़ा कारण शराब ही है।
शराब में यदि कोई अच्छी बात होती तो सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय राजमार्गों पर शराब के ठेके खोलने पर पाबंदी न लगाती। शराब से अपराध बढ़ रहे हैं और मनुष्य आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक और मानसिक तौर पर कमजोर हो रहा है। चुनावों के वक्त भी शराब के ठेके का समय कम किया जाता है, जिससे साबित होता है कि शराब नुक्सानदेह है। पंजाब कांग्रेस 2017 में हर साल शराब के ठेके पांच प्रतिशत घटाने का वायदा कर सत्ता में आई थी। ऐसे प्रस्ताव लेकर आने वाली पार्टी या सरकार शराब से आय में वृद्धि को विकास का आधार नहीं बना सकती। सरकार के पास आय बढ़ाने के कई और भी तरीके हैं, बशर्ते ईमानदारी से कानून लागू किए जाएं। पंजाब में बड़े स्तर पर टैक्स चोरी होती है।
यदि पूरा टैक्स वसूला जाए तो शराब से होने वाली आय से भी कई गुणा ज्यादा आय प्राप्त हो सकती है। सरकारी बसों की हालत में सुधार और भ्रष्टाचार खत्म होने से भी आय में वृद्धि संभव है। दरअसल पंजाब सहित देश भर में शराब के खिलाफ जन आंदोलन छेड़ने की आवश्यकता है। यह भी वास्तविक्ता है कि बड़ी संख्या में राजनीतिक नेता नहीं चाहते कि उनके पुत्र-पौत्र शराब पीएं। पंजाब की संस्कृति के मद्देनजर शराब का इस्तेमाल बंद करने की योजना बननी चाहिए। बिहार जैसे गरीब राजय ने शराब बंद करने की हिम्मत दिखाई। इन परिस्थितियों में पंजाब सरकार को भी मिसाल बनने की आवश्यकता है। बेहतर हो यदि पंजाब में कृषि उत्पाद निर्यात किए जाएं, पंजाब का यदि नाम रोशन होगा तो वह स्वस्थ और नशा रहित पंजाबियों ने ही करना है, शराबियों ने नहीं।
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