जीवन पर खतरा, आर्थिक भविष्य की चिंता बेमतलब

Life threatening, worrying about economic future is meaningless
दुनिया भर के देशों में कोरोना की महामारी के चलते हुए लॉकडाउन को लेकर कई आर्थिक विशेषज्ञ नफे-नुक्सान का गुणा भाग करने में जुटे हुए हैं जबकि इस दुनिया की 50 फीसदी दौलत को महज एक फीसदी उद्योगपति हड़प कर बैठे हैं, तब कभी किसी ने इतनी चिंता जाहिर नहीं की। आज दुनिया के सामने सबसे बड़ा सवाल अपना जीवन बचाने का है, जीवन अमूल्य है जो किसी भी भौतिक या अभौतिक कीमत अदा कर पुन: हासिल नहीं किया जा सकता। जो आर्थिक तरक्की वर्तमान समाज देख रहा है दरअसल यह तरक्की नहीं बल्कि मनुष्य की बर्बादी है। इस आर्थिक तरक्की के चलते पूरी दुनिया ने अपना हवा, पानी, वन, मिट्टी, जीव जन्तु सब तहस-नहस कर लिए हैं।  प्रकृति फिर भी मेहरबान है इसने एक वायरस का भय दिखाकर मनुष्य का सारा आर्थिक स्वांग बंद कर दिया है, प्रकृति ने आर्थिक पहिये को जरा सा रोककर फिर से मनुष्य की हवा, पानी, मिट्टी, वनों की साफ-सफाई शुरू कर दी है वह भी बड़ी तेजी के साथ, जोकि मनुष्य अरबों रूपये के सफाई एवं पर्यावरण संरक्षण प्रोजेक्ट बनाकर भी नहीं कर पा रहा था।
अत: अब जो भावी आर्थिक बर्बादी का हौव्वा खड़ा किया जा रहा है, वह सिर्फ उन्हीं लोगों की सोच है जो सरकारों को अपना औजार बना पूरी प्रकृति को लूट लेने पर आमादा हैं, अन्यथा आमजन तो अपना उतना आराम से कमा रहा है जितने से उसके पूरे परिवार का पेट भर जाता है, अगर वह ग्राम आधारित कृषि, पशुपालन, सब्जी या ऐसे ही किसी स्थानीय क्रियाकलाप से जुड़ा हुआ है। पुराने समय में कोई आर्थिक मॉडल नहीं बनते थे न ही उनसे किसी समाज-देश की अर्थव्यवस्था को ही हांका जाता था सिर्फ मांग-आपूर्ति का स्थानीय गणित होता था जोकि वस्तु विनिमय पर आधारित था और सब लोग सुखी व बेफिक्र लंबा जीवन जीते थे। अब कोरोना के फैलाव एवं लॉकडाउन ने दुनिया को जरा सा रोका है, कि आप रूक कर देखिए तो सही कि आप क्या कर रहे थे? किस तरह अपने आपको मनुष्य ने मशीन बना लिया है? किस तरह पूरी से जैव सम्पदा कंक्रीट, प्लास्टिक, धुएं में बदल रही है? मनुष्य को वक्त मिला है कि वह अपने आर्थिक मॉडल्स को बदलें, प्राकृतिक सम्पदा सबकी है उसे धन में बदलकर किसी की तिजोरियों में कैद नहीं किया जाए। उन लोगों का रोना अब न सुना जाए जो अभी भी आर्थिक तरक्की एवं उसके गिरने-उठने का पागलपन करने की सोच को फिर से थोपना चाहते हैं। दुनिया को अपनी खुशी की एक झलक दिख गई है बस उसे स्थायित्व देना है। आर्थिक वृद्धि वास्तविक खुशी का पैमाना नहीं है, अत: यह शोर बंद किया जाना चाहिए।

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