पांच प्रतिशत पानी की जिंदगानी

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पेयजल के सम्बन्ध में लाख चेतावनियों के बावजूद हमारी विधायिका और कार्यपालिका के स्तर पर भारी उदासीनता और लापरवाही दिन प्रतिदिन उजागर हो रही है जो बेहद चिंताजनक और मर्मान्तक है। हाल ही में नीति आयोग ने पानी के संकट को लेकर देश को चेताया था और अब कैग की रिपोर्ट में चौकाने वाले खुलासे सामने आये हैं। इससे जाहिर होता है लोकतंत्र के दो स्तम्भ सही काम नहीं कर रहे है। तीसरा स्तम्भ न्यायपालिका सरकारी क्रियाकलापों पर कई बार अपनी नाराजगी जाहिर कर चूका हैं और चौथा स्तंभ मीडिया विषय की गंभीरता सब के सामने रखता जा रहा है।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट से इस बात का खुलासा हुआ है कि राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत करीब 90 हजार करोड़ रुपए में से दस प्रतिशत यानी आठ हजार करोड़ रुपए से अधिक खर्च ही नहीं किये गये। समुचित योजना की कमी और कोष के खराब प्रबंधन के कारण विभिन्न योजनाओं के पूरा होने में बहुत देरी हुयी और लागत भी बढ़ गयी। रिपोर्ट के मुताबिक दो हजार करोड़ से अधिक राशि के उपकरणों का इस्तेमाल ही नहीं किया गया और कार्यक्रम की पुख्ता निगरानी भी नहीं की गयी।

इतना ही नहीं ग्रामीण आबादी को पाईप के जरिए स्वच्छ पेयजल मुहैया कराने का लक्ष्य भी पूरा नहीं किया जा सका और कई कार्यक्रम ठीक से लागू नहीं किये जा सके तथा बीच में ही अधूरे छोड़ दिये गये। रिपोर्ट के अनुसार तीन राज्यों में बिना काम के ही करीब डेढ़ करोड़ रुपए का भुगतान कर दिया गया और 12 राज्यों में 1367 काम अधूरे रहे तथा 359 करोड़ रुपए का फंड दूसरे काम में लगा दिया गया। रिपोर्ट के अनुसार बारहवीं पंचवर्षीय योजना में 2017 तक सभी ग्रामीण बस्तियों, सरकारी स्कूलों तथा आंगनवाड़ी केन्द्रों में स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था करने का लक्ष्य था, लेकिन केवल 44 प्रतिशत ग्रामीण बस्तियों को तथा 85 प्रतिशत सरकारी स्कूलों एवं आंगनवाड़ी केन्द्रों को स्वच्छ पेयजल मुहैया कराया जा सका।

रिपोर्ट के अनुसार केवल 18 प्रतिशत ग्रामीण घरों में पाईप से पीने का पानी मिल सका, 13 राज्यों में निगरानी समितियों का गठन भी नहीं हुआ। भारत सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग की मानें तो देश इस समय भीषण जल संकट से गुजर रहा है और इस आसन्न संकट पर जल्द काबू नहीं पाया गया तो हालत बदतर होने की सम्भावना है। नीति आयोग के अनुसार जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार भारत अब तक के सबसे बड़े जल संकट से जूझ रहा है। आयोग द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के करीब 60 करोड़ लोग पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। करीब 75 प्रतिशत घरों में पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। साथ ही, देश में करीब 70 प्रतिशत पानी पीने लायक नहीं है।

आयोग का कहना है कि इस संकट के चलते लाखों लोगों की आजीविका और जिंदगी खतरे में है। आयोग ने चेतावनी भी दी है कि हालात और बदतर होने वाले हैं। उसके मुताबिक साल 2030 तक देश में पानी की मांग मौजूदा आपूर्ति से दोगुनी हो सकती है। साफ और सुरक्षित पानी नहीं मिलने की वजह से हर साल करीब दो लाख लोगों की मौत होती है।

जल की उपलब्धता को लेकर वर्तमान में भारत ही नहीं अपितु समूचा विश्व चिन्तित है। जल ही जीवन है। पृथ्वी पर कुल जल का अढ़ाई प्रतिशत भाग ही पीने के योग्य है। इनमें से 89 प्रतिशत पानी कृषि कार्यों एवं 6 प्रतिशत पानी उद्योग कार्यों पर खर्च हो जाता है। शेष 5 प्रतिशत पानी ही पेयजल पर खर्च होता है। यही जल हमारी जिन्दगानी को संवारता है।

धरती पर जब तक जल नहीं था तब तक जीवन नहीं था और जल ही नहीं रहेगा तो जीवन के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती। वर्त्तमान समय में जल संकट एक विकराल समस्या बन गया है। नदियों का जल स्तर गिर रहा है. कुएं, बावडी, तालाब जैसे प्राकृतिक स्त्रोत सूख रहे हैं। घटते वन्य क्षेत्र के कारण भी वर्षा की कमी के चलते जल संकट बढ़ रहा है। वहीं उद्योगों का दूषित पानी की वजह से नदियों का पानी प्रदूषित होता चला गया लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। आवश्यकता इस बात की है कि हम जल के महत्व को समझे और एक-एक बूंद पानी का संरक्षण करें तभी लोगों की प्यास बुझाई जा सकेगी।

बाल मुकुन्द ओझा

 

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