आइए मिलते हैं उल्लुओं से

Owls

उल्लू के नाम से तो आप बचपन से ही परिचित होंगे क्योंकि उल्टा-सीधा काम करने पर यह अस्थायी उपाधि प्राय: सभी को कभी न कभी अवश्य ही मिलती है। यह भी आप जानते होंगे कि दीपावली लक्ष्मी के पूजन का त्यौहार है और जिस प्रकार दुर्गा का वाहन सिंह, गणेश जी का वाहन मूषक (चूहा) होता है उसी प्रकार लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू है किंतु शायद आप यह नहीं जानते होंगे कि उल्लू एक विवादास्पद पक्षी है क्योंकि वह विदेशों में बुद्धिमानी का तो भारत में मूर्खता का प्रतीक माना जाता है। वैसे ही व्यवहार शून्य मूर्ख व्यक्ति के अलावा बहुत अधिक कंजूस तथा दिन-दिन भर सोने वाले व्यक्तियों को भी उल्लू कहने की परिपाटी चली आई है।

सभी उल्लू पक्षी शिकारी होते हैं। छोटे-छोटे जीव, जैसे छोटी-छोटी चिड़ियां, कौवे, साँप, चमगादड़, छिपकलियाँ, चूहे, मेंढक, मछलियाँ और केकड़े इनके प्रिय भोजन होते हैं। इसीलिए उल्लू कृषि-प्रधान देशों में फसल का रक्षक व किसानों का मित्र पक्षी साबित होता है। कभी-कभी उल्लू केवल चूहे खाकर जीवित रहते हैं। चूहों से अनेक संक्रामक बीमारियां फैलती हैं। इस प्रकार ये छूत से फैलने वाले रोगों से मनुष्य का बचाव भी करते हैं।

इनके पंख इतने नर्म और मुलायम होते हैं कि रात को उड़ते समय वे थोड़ी भी आवाज नहीं करते। इनके पंखों का ऊपरी भाग सुनहरा-बादामी और निचला भाग रेशम-सा सफेद होता है।
उल्लू का वर्णन हमारे प्राचीन धार्मिक गं्रथों में भी मिलता है। साथ ही कुछ प्राचीन मूर्तियाँ और चित्र भी देखने को मिलते हैं। अत: स्पष्ट है कि भारत में यह पक्षी हजारों साल पूर्व से पाया जाता है।

तंत्र-शास्त्र में उल्लू का उल्लेख सर्वाधिक मिलता है। तांत्रिक लोग अपनी अनोखी साधना में उल्लू का बलिदान देकर सिद्धि प्राप्त करते हैं। उल्लू के इस बलिदान का शुभ मुहूर्त दीपावली की रात को ही निकाला जाता है। कहते हैं बलिदान के समय उल्लू मनुष्य की बोली बोलने लगता है। ऐसा वर्णन तंत्र-सिद्धि संबंधी बहुतेरे गं्रथों में पढ़ने को मिलता है।
यद्यपि यह सर्वप्रिय देवी लक्ष्मी का वाहन है, फिर भी इसकी भद्दी सूरत व अनेक अप्रिय आचरणों के कारण ही लोग इसके नाम से नाक-मुंह सिकोड?े लगते हैं। कोई शुभ काम करने के लिए निकलते समय उसकी सूरत देख लेना अपशकुन भी माना जाता है।

कुछ उल्लू पक्षी ‘शिकारी उल्लू’ के नाम से जाने जाते हैं। ये जुझारू शिकारी उल्लू अन्य पक्षियों पर हमला कर उसे आखिरी दम तक पहुंचा देते हैं। ये शिकार-प्रेमियों द्वारा अन्य पक्षियों का शिकार करने के लिए भी पाले जाते हैं।
केवल मछलीखोर भूरे रंग के उल्लू ही चट्टानों के बीच बहने वाली नदियों, बीहड़ों और झीलों-स्रोतों तथा नालों आदि के आस-पास रहते हैं। उल्लू मुख्यत: रात्रिचर पक्षी होते हैं, अत: ये अपना शिकार रात में ही खोजने को निकलते हैं। दिन में ये घने पेड़ों की खोहों, पथरीली दरारों, खण्डहरों, टूटे मजारों, श्मशानों, पुराने किलों और बड़े पक्षियों के खाली घोंसलों में बैठे हुए मिलते हैं। इन्हें वीरान जगहों में रहना अधिक पसंद होता हैं इसीलिए तो कहा जाता है कि अमुक स्थान इतना सुनसान है कि वहां उल्लू बोलते हैं किंतु इन्हें बहुत अधिक घने जंगलों से बच कर, बाग-बगीचों तथा खुले खेतों-देहातों के आसपास रहना अधिक पसंद आता है।

इसका चेहरा गोल होता है। आंखें अगल-बगल न होकर सामने होती हैं, जिसके कारण यह भोंडा दिखता है। चपटे चेहरे पर स्थित उल्लू की आंखें बड़ी डरावनी और बड़ी बड़ी होती हैं। इन बड़ी आंखों की सहायता से ही ये अपना शिकार रात में आसानी से ढूंढ लेते हैं। उल्लू का रूप-रंग निराला होता है कि एक बार देख लेने पर आप इसे आसानी से भूल नहीं सकते। वैसे भी डरावनी वस्तु को भूल पाना आसान नहीं होता।

कुछ उल्लू बिल्ली जैसे मुंह वाले होते हैं। ‘मच्छ उल्लू’ का मुंह मछली के समान होता है। उल्लू संसार भर में, खास तौर से हिमालय की तराई में भी पाए जाते हैं। इन्हें झुण्ड में रहना अधिक पसंद होता है। इनमें पहाड़ी उल्लू व लद्दाखी उल्लू नामक जातियां भी प्रसिद्ध हैं।
प्राय: उल्लू अपने घोंसले खुद नहीं बनाते। उनके घोंसले टहनियों, घास-फूस और नरम वस्तुओं से बने होते हैं। वे वर्षों तक एक जगह रहते हैं। मादा उल्लू बारह महीने अण्डे देती है, जो गोलाकार और सफेद होते हैं। मादा उल्लू नर से बड़ी होती है। ये एक बार में छ: सात अण्डे देती हैं।

उल्लू सारी दुनिया में पाये जाते हैं। शायद इसीलिए तो कहा जाता है कि दुनिया उल्लुओं से भरी है। संसार में इनकी अनेक जातियां पाई जाती हैं किंतु हमारे देश में इसकी मुख्य दो जातियां हैं-‘मुआ’ जो पानी के करीब रहते हैं, तथा ‘घुग्घू’ जो पुराने पेड़ों और खण्डहरों में अधिक पाए जाते हैं। उत्तरी अमेरिका में एक प्रकार का उल्लू पाया जाता है जो सिर्फ छ: या सात इंच ऊंचा भी होता है। जोर-जोर से चीखने वाला उल्लू भूरे या हल्के लाल रंग का होता है। ब्रिटेन में एक प्रकार का जंगली उल्लू पाया जाता है, जिसे टॉमी उल्लू कहते हैं। पक्षियों में विशेषकर उल्लू की गर्दन बहुत ही लचकदार होती है। यह एक ही संधि या जोड़ से बनी होती है, इसलिए ये इसे आसानी से इधर-उधर कहीं भी मोड़ या घुमा सकते हैं। यहां तक कि ये इसे पीछे तक घुमाकर भी ले जा सकते हैं।

इस प्रकार अपनी गर्दन को मोड़ पाना और किसी भी प्राणी के लिए संभव नहीं होता।
पहले हमने बताया था कि उल्लू विवादास्पद पक्षी है अर्थात कोई इसे बुद्धिमानी का तो कोई इसे मूर्खता का प्रतीक मानते हैं। उल्लू मूर्ख होते हैं या बुद्धिमान यह तो भगवान जानें पर इतना हम अवश्य कहेंगे कि पशु-पक्षियों के संसार में यदि कोई वास्तव में मूर्ख होते हैं तो वे हैं लेमिंग।
मूर्ख होते हैं ‘लेमिंग’
लेमिंग पक्षी नहीं हैं वरन उत्तरी अमेरिका भाग में पाये जाने वाले चूहे जैसे जीव हैं किंतु इनकी पूंछ चूहों जैसी लंबी न होकर खरगोश जैसी होती है। इनका परिवार बहुत बड़ा होता हैं। इन्हें भालू, लोमड़ी और भेड़िने डटकर अपना भोजन बनाते हैं पर इनकी संख्या घटती नहीं।

लेमिंग कभी-कभी तीन तीन फीट चौड़ी कतार बनाकर पहाड़ी पर से उतरते हैं। दिन में जो कुछ मिलता है वह खाते हैं और अन्त में समुद्र में कूद-कूदकर अपनी जान देते हैं। जो किस्मत से बच जाते हैं, वे पुन: अपनी जाति को बढ़ाने में लग जाते हैं और शीघ्र ही चौगुने हो जाते हैं।

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