सरसा (सकब)। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि दाता-रहबर, मालिक शाह मस्ताना जी महाराज का पाक-पवित्र अवतार माह चल रहा है। साध-संगत बेइन्तहा उमंग, खुशी, उल्लास में अपने मुर्शिदे-कामिल के गुणगान गा रही है। रोजाना बुराइयां छोड़ने का प्रण कर रही है, रोजाना जोश के साथ सच्चाई, नेकी, भलाई के मार्ग पर चलने की कसमें खा रही है। यह बहुत बड़ी बात है! क्योंकि लोग बैठकर यह स्कीम, योजनाएं बनाते हैं कि हमने ठगी कैसे मारनी है, बुरे कर्म कैसे करने हैं! लेकिन ये शाह मस्ताना दाता-रहबर का दर है,यहां बैठकर लोग यह सोचते हैं कि हमने बुरी आदतें कैसे छोड़नी हैं, कैसे अपने-आपको नेक बनाना है और कैसे अल्लाह, वाहेगुरु, सतगुरु, मौला को मनाना है।
मालिक के आशिक दिन-रात इसी में डूबे रहते हैं और उनकी जिंदगी जितनी आनन्दमय होती है, दूसरा कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। उसकी याद में अगर आंसू भी आ जाता है, वो भी एक अलग कसक पैदा कर जाता है, अलग इश्क की आग लगा जाता है और उस आग में उस इन्सान की तमाम बुरे कर्मों की राख हो जाती है। गुजरे समय में किए गए कर्म, संचित कर्म उस इश्क की तपिश को सह नहीं सकते। वो खत्म होते हैं और एक उमंग, तरंग, नजारा पैदा हो जाता है, जिससे बेइन्तहा खुशियां मिलनी शुरू हो जाती है।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि अपनी भावनाओं को बुलंदियों पर ले जाने का, अपनी भावनाओं को अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब से जोड़ने का एक रास्ता साईं मस्ताना जी, शाह सतनाम जी दाता-रहबर ने बताया, जो लोग सुनते हैं, अमल करते हैं, यकीनन उन्हें मालिक की तमाम खुशियां मिलती हैं, तमाम दया-मेहर, रहमत मिलती है, उनके अंत:करण साफ हो जाते हैं और वो खुशियों से लबरेज हो जाते हैं।
आप जी ने फरमाया कि आप अपने मुर्शिदे-कामिल को अपने बुरे कर्मों की आहुति दीजिए। अपने अल्लाह, वाहेगुरु, राम के आगे वायदे करके उस पर चलकर दिखाइये कि ‘हां, मुझमें ये बुरी आदतें हैं, जिंदगी में मैं ये छोड़ दूंगा। मुर्शिद, अल्लाह, राम! मेरा साथ देना।’ साथ में आप सुबह-शाम सुमिरन भी करो। पांच मिनट, दस मिनट, बीस, पच्चीस मिनट, घंटा, डेढ़ घंटा, दो घंटे, जितना भी आप सुमिरन कर सको, करो और साथ ही प्रार्थना करते रहो कि ‘मालिक! मुझमें से ये बुराइयां दूर हो जाएं, मेरी गंदी आदतें बदल जाएं।’ सुबह-शाम हर रोज अगर आप ये चीज करेंगे, तो हो ही नहीं सकता कि आपकी ये आदतें न बदलें बल्कि सौ प्रसेंट बदल जाएंगी। हां, अगर आप बदलना ही न चाहें, अरदास-दुआ करना ही न चाहें, सुमिरन करें ही न, तो आदतें कैसे बदलेंगी? आदतों को बदलना कोई छोटी-मोटी बात तो होती नहीं, बहुत बड़ी बात होती है। जो लोग आदतों को बदल देते हैं, वो ही शूरवीर, बहादुर, योद्धा होते हैं।
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