होली पर सीख

Holi
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        नंंदन वन में होली की धूम मची हुई थी। चारों ओर होली के गीत सुनाई दे रहे थे। सभी जानवर होली की मस्ती में डोलते नजर आ रहे थे। पूरा नंदन वन गुजिया और पापड़ की खुशबू से महक रहा था। लल्लू लोमड़, बिल्लू बुलबुल, चीकू चूहा, खन्नू खरगोश भी खूब मस्ती कर रहे थे। सभी ने इस बार होली से पहले शोपिंग करने की योजना बनाई। वो सब शहर जाकर होली का सामान खरीदने की तैयारी में जुट गए। अगले दिन सुबह, वो चारों आॅटो में बैठकर शहर की ओर जाने लगे। शहर पहुंचकर, शहर की रौनक देख वे सब दंग रह गए। पूरा शहर होली के रंग में सराबोर था। लल्लू बोला, ‘अरे, वाह शहर कितना सुन्दर लग रहा है। यहां तो खूब सारी दुकानें हैं।’लल्लू की बात को आगे बढाते हुए बिल्लू बोला, ‘दुकानों में ढेरसारा रंग और पिचकारियां हैं। मैं तो खूब सारे रंग खरीदूंगा।’‘अरे, देखो जरा यहां तो गुब्बारे भी लटक रहे हैं। शायद पिछले साल की होली में नीकू नेवला शहर से ही गुब्बारे खरीद कर लाया होगा। उसने गुब्बारों में पानी भरकर हम सबको खूब भिगोया। इस बार हम उसे मजा चखाएंगे।’
चीकू ने उचकते हुए कहा। ‘वाह देखो, यहां तो इन्द्रधनुष से भी ज्यादा रंग बिखरे पड़े हैं। लाल, हरा, नीला , पिला, नारंगी सारे रंग। इतने रंग तो हमारे जंगल में भी नहीं दिखाई देते।’ रंग-बिरंगे गुलाल के ढ़ेरों को देखकर, उछलते हुए खन्नू खरगोश बोल पड़ा। चारों दोस्त दिनभर शहर घूमते रहे। उन्होंने खूबसारी खरीददारी की। होली वाले गुब्बारे, ढेरसारा गुलाल, बड़ी-बड़ी पिचकारियाँ और रंग-बिरंगे मुखौटे खरीदे। शाम होने से पहले ही उन लोगों ने जंगल का ऑटो पकड़ लिया और अँधेरा होने तक नंदन वन पहुंच गए। अगले दिन वो सब होली खेलने को खुले मैदान में जुट गए, शहर से लाये रंगों को एक दुसरे पर मलने लगे। चारों दोस्तों ने लम्बू जिराफ को रंगने की योजना बनाई। पर वो बहुत ऊंचा था। कौन उसे रंग लगा पाता, कौन उसे भिगोता। चारों दोस्त दो-दो भागों में बंट गए। योजना के अनुसार लल्लू और चीकू जमीन से लम्बू पर गुब्बारे से वार करेंगे और बिल्लू और खन्नू पेड़ पर चढ़कर उसके ऊपर रंग डालेंगे।
वो चारों अपनी योजना में सफल हुए। लम्बू बुरी तरह से भीग चुका था। लेकिन गुब्बारे से उसकी आँख में हल्की सी चोट आ गई। लम्बू को बहुत गुस्सा आया। वो कुछ कर पाता तब तक चारों वहां से भाग चुके थे। रास्ते में उन सबको नीकू मिल गया, उसे भी उन्होंने जमकर भिगोया। उस पर खूब गुब्बारे बरसाये। गुब्बारों की चोट से नीकू की हालत खराब हो गई।
चीकू, खन्नू,लल्लू और बिल्लू ने एक दूसरे को भी खूब रंग लगाया। शाम हो चुकी थी। सभी अपने-अपने घर चले गए। अगली सुबह सभी की आँखों और चेहरे में भयंकर जलन हो रही थी। सभी की त्वचा झुलस सी गई थी। चीकू, खन्नू, लल्लू और बिल्लू भी बहुत परेशान थे। जंगल के सभी जानवर जिन्हें इन चारों ने रंगा था वो भी इसी परेशानी से जूझ रहे थे।
उधर चारों दोस्तों के हुडदंग की खबर जंगल के राजा शेरू सिंह तक पहुँच गई। शेरू को ये सब सुनकर बहुत गुस्सा आया। उसने उन चारों को अपने पास बुलवाया। ‘तुम चारों ने होली के त्योहार को मजाक बना कर रख दिया है। तुम लोगअपने सेहत से तो खिलवाड़ कर ही रहे हो साथ में दूसरों को भी मुसीबत में डाल रहे हो। तुम लोगों को इतना भी नहीं मालूम कि सस्ता और रासायनिक रंग चेहरे के लिए कितना खतरनाक हो सकता है। इसमें सीसा और अन्य घातक कैमिकल मिले होते हैं। जिनके आँखों में चले जाने से आंखों की रोशनी भी जा सकती है।’,शेरू ने दहाड़ते हुए गुस्से में कहा। वो चारों सिर झुकार सब सुन रहे थे। शेरू ने आगे कहा, ‘होली में पानी भरे गुब्बारों का उपयोग भी ठीक नहीं। तुम्हे पता है तुम्हारे गुब्बारे की चोट से लम्बू की आँख सूज गई है। होली खेलने के लिए सिर्फ और सिर्फ हर्बल गुलाल और हर्बल रंगों का प्रयोग करना चाहिए। होली मस्ती और सौहार्द का त्यौहार है। इसे इसी भाव के साथ मनाना चाहिए। आगे से ध्यान रखना ऐसी गलती नहीं होनी चाहिए।’ चारों ने शेरू से वादा किया कि वो अब रासायनिक रंगों का बिल्कुल भी प्रयोग नहीं करेंगे और ना ही पानी के गुब्बारों से होली खेलेंगे। अब वो सिर्फ हर्बल गुलाल ही लगायेंगे। उनकी बातों की सुनकर शेरू मुस्कुराया और उनको हैप्पी होली बोलकर गुफा में चल दिया।
ललित शौर्य

 

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