लोकसभा चुनाव में भाजपा की दिग्गज उम्मीदवार प्रज्ञा ठाकुर ने राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के हत्यारे को देशभक्त कहकर बाद में माफी मांग ली। गत दिवस ऐसा ही विवादित बयान कांग्रेस नेता सेम पित्रोदा ने भी दिया था। पित्रोदा ने दिल्ली में हुए 1984 के सिख नरसंहार के संदर्भ में ‘जो हुआ सो हुआ’ कहकर पीड़ितों के घावों पर नमक छिड़का। बाद में पित्रोदा ने भी माफी मांंग ली। ऐसे विवादित बयान कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर भी देते रहे हैं। ऐसे नेताओं के प्रति पार्टियों का नजरिया बेहद निराशाजनक रहा है। सभी पार्टियां तीन काम कर रही हैं, एक तो नेता के बयान की निंदा करती हैं, दूसरा बयान को उसका निजी बयान कहती हैं, तीसरा माफी मांगने के लिए कहती हैं। पार्टियों की कार्यवाही के मापदंड बड़े हास्यप्रद हैं।
एक तरफ पार्टी अपने उन नेताओं को पांच मिनटों में निलंबित कर देती हैं जो पार्टी के खिलाफ जरा भी आवाज बुलंद करते हैं। पार्टी को नुक्सान पहुंचाने वाले को किसी भी कीमत पर पार्टी से निकाला नहीं जाता, पार्टी को वोट बैंक इतना प्यारा है कि बागी नेता को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। गत दिवस उत्तर प्रदेश में भाजपा ने अपने वरिष्ठ नेता आइपी सिंह को पार्टी से छह वर्ष के लिए इसी कारण निकाल दिया गया कि उन्होंने भाजपा के दो वरिष्ठ नेताओं को ‘गुजराती ठप्पा’ कहा था। भाजपा ने मध्य प्रदेश में अपने 53 नेताओं व राजस्थान में 11 नेताओं को पार्टी से बाहर निकाला। इसी तरह पार्टी विरोधी गतिविधियों करने पर भाजपा शत्रुघन सिन्हा, यशवंत सिन्हा, नवजोत सिद्धू व कांग्रेस शकील अहमद, जगमीत बराड़ सहित कई बड़े नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा चुकी है।
वरिष्ठ नेताओं को पार्टी के हित से लगाव है, देश के हित से नहीं। हद तो अब प्रज्ञा ठाकुर के बयान ने कर दी, लेकिन उससे माफी मंगवाकर भाजपा दोषमुक्त हो गई। यही कुछ पित्रोदा के मामले में हुआ। सवाल उठता है कि क्या देश की महान हस्तियां या संवेदनशील मुद्दों पर आपत्तिजनक बयानबाजी करना देश की एकता, संस्कृति व मर्यादा को ठेस नहीं पहुंंचाता? या सत्ता के लोभ में इनका कोई महत्व नहीं? पार्टियां ऐसे नेताओं को सबक सिखाने के लिए कभी भी निलंबित नहीं करती। वास्तविक्ता यह है कि विवादित बयान देना भी पार्टियों की रणनीति का हिस्सा है।
पार्टियां जनता में किसी न किसी तरह अपने समर्थन में लहर चलाने के लिए कोई न कोई विवाद छेड़ती रहती हैं, जिसका उद्देश्य किसी वर्ग विशेष के वोटरों को खुश करना होता है। बेहतर हो यदि देश हित में सभी राजनीतिक पार्टियां बड़बोले नेताओं को सबक सिखाने के लिए कोई ठोस कार्रवाई कर संदेश दें। माफी केवल दो अक्षरों का छोटा सा शब्द बनकर रह गया है, पश्चाताप कहीं भी नजर नहीं आता। लेकिन ऐसी बयानबाजी देश व देशवासियों के हित में नहीं और ऐसे नेताओं का बचाव करना भी देश का नुक्सान करने के सामान है।
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