नेता और उद्योगपति मायने क्रोनी भाईचारा

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पिछले सप्ताह भारत के राजनीतिक मंच पर क्रोनी पूंजीवाद और भ्रष्ट नेताओं का एक और किस्सा देखने सुनने को मिला। किंगफिशर एयरलाइंस के किंग आफ गुड टाइम्स भगोडेÞ विजय माल्या के दावे की 2 मार्च 2016 को भारत छोड़ने से पहले वह अपने 2000 करोड रूपए के बैंक ऋणों को निपटाने के लिए वित्त मंत्री अरूण जेटली से मिले थे, उनके इस बयान से राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया। कांगे्रस ने इस बात पर बल दिया कि सीबीआई ने माल्या को हवाई अड्डे पर निरुद्ध करने के नोटिस को बदलकर सूचना देने के नोटिस में क्यों बदला। सरकार ने दोनों पर आरोप लगाया है कि वे अपने कुकर्मों पर पर्दा डालने के लिए ये आरोप लगा रहे हैं। 21वीं सदी में देश की राजनीति में आपका स्वागत है जो आपसी लेनदेन के कारोबार की राजनीति बन गयी है।

कांग्रेस और भाजपा दोनों ने माल्या को राज्य सभा का सदस्य बनाने में मदद की। 2002 में कांग्रेस और जद (एस) की मदद से वे राज्य सभा सदस्य बने तो 2010 में भाजपा और जद (एस) की सहायता से बने। नीरव मोदी के मामले में उनहें ऋण कांग्रेस की संप्रग सरकार के दौरान दिया गया और वे भाजपा की राजग सरकार के दौरन इस वर्ष जनवरी में देश से भाग गए। लगता है यह चोर-चोर, मौसेरे भाई का खेल बन गया है। एक वरिष्ठ राजनेता के अनुसार इस हमाम में हम सब नंगे हैं। तीन वर्ष पूर्व केन्द्रीय राजमार्ग मंत्री गडकरी दक्षिण फ्रांस में एस्सार के रूइया की याच में सैर-सपाटा करने गए थे। हमारे नेता लोग अपने उद्योगपति मित्रों के जेट का उपयोग करते हैं तथा अपने आनंद के लिए उनके घरों का उपयोग करते हैं, उनके बच्चों की शादियों में ये उद्योगपति खर्च करते हैं जिसके चलते कंपनियां अपने राजनीतिक और सरकारी माई बाप के लालच को पूरा करने के लिए कंपनी के खातों में हेराफेरी करते हैं।

क्रोनी पूंजीवाद के अनेक उदाहरण हैं जिनमें 2जी घोटाला, आदर्श घोटाला आदि प्रमुख हैं। कोलगेट में कोयला ब्लॉक संप्रग के मंत्रियों कांग्रेस और उसके सहयोगी सांसदों और पार्टी के निकट रहे लोगों के परिवारों को दिए गए। कांग्रेस के पूर्व सांसद उद्योगपति नवीन जिंदल और विजय डाडा को कोयला ब्लाक दिए गए थे। इसी तरह राजग के केन्द्रीय कारपोरेट मंत्री प्रेमचंद गुप्ता के बच्चों को भी कोयला ब्लाक दिए गए। नीरा राडिया टेप्स उद्योगपति, मीडिया, नेतागणों और अधिकारियों की सांठगांठ को उजागर करते हैं। आज हम ऐसे युग में रहते हैं जहां पर सार्वजनिक नैतिकता और व्यावहारिक राजनीति ने विचित्र आयाम ले लिया है जहां पर भारत आज रियायतों का लोकतंत्र या राज्य सत्ता की रियायत का तंत्र बन गया है।

भ्रष्ट राजनेता प्रत्यक्ष बिक्री की राजनीति के माध्यम से अपने सहयोगियों की मदद करते हैं और अपने मित्रों पर करदाताओं के पैसे उड़ाते हैं और सरकरी बैंकों से कहा जाता है िकवे इन लोगों को बिना सत्यापन के ऋण दें। इसके बदले नेताओं को कारोबारियों और उद्योगपतियों से पैसा मिलता है जिसकी मदद से वह चुनाव लड़ता है। इसे आप धन तंत्र या चोरी का तंत्र भी कह सकते हैं। जिसमें छोटे बड़े हर तरह के नेता लाभान्वित होते हैं और वे इस सबको गलत भी नहीं मानते हैं। नौकरशाहों को रिश्वत दी जाती है और उद्योपतियों की सफलता कानून के शासन के द्वारा नहीं अपितु सरकार द्वारा किए गए पक्षपात पर निर्भर करती है और इस क्रम में छोटे से छोटा अधिकारी, कर्मचारी भी लाभान्वित होता है। क्रोनी पूंजीवाद तीन स्तरों पर कार्य करता है। पहले स्तर पर मंत्री, बाबू, बैंक के अध्यक्ष, डायरेक्टर और कर्मचारी आपको पैसा देते हैं और यह सुनिश्चित करते है कि आपको कारोबार में अपना पैसा न लगाना पड़े।

कारोबारी बैंक से भारी ऋण लेता है और यदि यह पैसा डूब भी जाता है तो वह बैंक का पैसा होता है। दूसरे स्तर पर कारोबारी यह सुनिश्चित करता है कि उसके प्रतिद्वंदी को भी ऐसी रियायत न मिले। इसका मतलब है कि आप न केवल अपने लिए लॉबिंग करते हैं अपितु अपने प्रतिस्पर्धी के विरुद्ध भी लॉबिंग करते हैं। और तीसरे चरण में विमानन जैसे विनियमित उद्योगों में आप न केवल राजनेताओं अपितु विनियामक एजेंसियों में भूतपूर्व नौकरशाहों को भी मैनेज करते हैं। आॅक्सफोम इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार क्रोनी पूंजीवाद सूचकांक में भारत नौवें स्थान पर है। भारत में अरबपतियों के पास सकल घरेलू उत्पाद की 15 प्रतिशत संपत्ति है और इसका श्रेय भाईचारा और ढुलमुल नीतियों को जाता है। इसके अलावा हिन्दुत्व युग में एक नया क्रोनीवाद शुरू हुआ है।

आज नए नौकरशाह अपने राजनीतिक आकाओं का अनुसरण करते हैं और वे इन आकाओं को अपना भगवान मानते हैं। समय आ गया है कि हम पारदर्शी विनियामक ढ़ांचा बनाएं और क्रोनी पूंजीवाद पर अंकुश लगाएं। जिससे हमारे वास्तविक कारोबारियों पर कुप्रभाव न पड़े। इन नेतागणों को राजनीतिक क्रोनीवाद पर रोक लगानी होगी। हमें देश में कारोबार के माहौल को बिगडने से रोकना होगा अन्यथा एक कमजोर शासन व्यवस्था पैदा होगी। हमारे नेताओं के चाल, चरित्र और चेहरे की समीक्षा की जानी चाहिए। यदि व्यक्ति जिम्मेदारी से अपना कार्य नहीं करेगा तो उत्तरदायी समाज की स्थापना नहीं होगी और उत्तरदायी समाज के बिना उत्तरदायी राज्य की स्थापना नहीं हो सकती है। इस संबंध में उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में निर्देश दिया है कि भारतीय अरबपतियों द्वारा सार्वजनिक धन को न उड़ाया जाए और उसने भारतीय रिजर्व बैंक को लताड लगायी है कि वह बैंकों पर निगरानी के मामले में ढ़ील रखता है।

न्यायालय ने केन्द्रीय बैंक से कहा है कि वह ऐसे चूककतार्ओं की सूची उपलब्ध कराए जिन पर सरकारी बैंकों का 500 करोड से अधिक का ऋण लंबित है। समय आ गया है कि हम लोग पंचायत से लेकर केन्द्रीय सरकार के स्तर पर हमारे लोकतंत्र में फैले इस कैंसर का उपचार करें। हर कीमत पर सत्ता की चाह रखने वाले नेताओं को उखाड़ फेंका जाए और क्रोनी पूंजीवाद के हानिकारक प्रभावों पर अंकुश लगाया जाए क्योंकि यह हमारे सस्थानों को नष्ट कर रहा है। जब नेता ऐसे खेल में भागीदार बन जाते हैं और भ्रष्ट लोग भ्रष्टाचार की जांच करते हैं और भ्रष्टाचारियों को निर्दोष साबित कर देते हैं फिर दोषियों की पहचान कौन करेगा।

कुल मिलाकर हमें नेताओं को शासन करने के लिए निर्वाचित करना होगा। हमारे नेताओं को स्वयं को व्यापारी बनने से रोकना होगा। जब अन्नदाता व्यापारी बन जाए तो आम आदमी का गरीब बनना स्वाभाविक है। हमारे नेताओं को इस सच्चाई को स्वीकार करना होगा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में जवाबदेही अपरिहार्य है और सत्ता के साथ जिम्मेदारी भी जुड़ती है। मोदी को इस राजनीतिक व्यवस्था में स्वच्छता लानी होगी और ऐसे नेताओं पर निर्भर रहना बंद करना होगा जो स्वयं को ईमानदार और नैतिक घोषित करते हैं। देश की जनता को राजनीति में आयी गंदगी को स्वच्छ करने के लिए सफेदी की चमकार की अंतिम बंूंद तक को निचोड़ना होगा। देखना यह है कि क्या मोदी भारतीय राजनीति को स्वच्छ करने के अपने वचन को पूरा कर पाते हैं या नहीं। हमें सार्वजनिक चेहरे के प्राइवेट मुखौटे का पदार्फाश करना होगा। जब सच्चाई पर आंच आती है तो फिर बुराई ही बच जाती है। आपका क्या मत है?

पूनम आई कौशिश

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