बीते साल में टेक कर्मचारियों की छंटनी नए साल में भी बदस्तूर जारी है। वैश्विक स्तर पर जनवरी में औसतन प्रतिदिन 3,400 से अधिक टेक कर्मचारियों की छंटनी हुई है। इस लिस्ट में माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी बड़ी टेक कंपनियां भी शामिल हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2023 के लिए अधिकांश व्यावसायिक अर्थशास्त्रियों ने भविष्यवाणी की है कि उनकी कंपनियां आने वाले समय में पेरोल में कटौती कर सकती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि दुनियाभर में आर्थिक गतिविधियों में आई गिरावट और रुकावट मंदी की आहट है, लेकिन इसका सबसे बुरा असर अमेरिका और यूरोप में देखने को मिलेगा। इसकी चपेट में ब्रिटेन जैसे देश भी आ सकते हैं।
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ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कंपनियां इस रफ्तार से कर्मचारियों की छंटनी क्यों कर रही हैं और इससे भारत के लोगों पर कितना असर पड़ेगा? विशेषज्ञों के अनुसार टेक कंपनियों के लिए यह साल अच्छा नहीं रहने वाला है। ग्लोबल मंदी की संभावनाओं के बीच कई कंपनियां अपने कर्मचारियों को नौकरी से निकालेंगी। नौकरी जाने का सबसे ज्यादा खतरा कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले कर्मचारियों को होता है। क्योंकि इन्हें अस्थाई तौर पर अपनी जरूरत के हिसाब से रखा जाता है. ऐसे में कंपनी जब भी वित्तीय रूप से मुश्किलों में फंसती है तो कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है।
मेटा के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने अपनी कंपनी में 11,000 कर्मचारियों की छंटनी का कारण बड़ी संख्या में नौकरी देना बताया है। एक्सपर्ट के मुताबिक कोरोना के दौरान ज्यादातर कर्मचारी बीमार पड़ते थे। इसका असर काम पर ना पड़े इसलिए कई कंपनियों ने बड़ी संख्या में लोगों को काम पर रख लिया। इसके अलावा लॉकडाउन में कई कंपनियों ने अपनी डिजिटल मार्केटिंग को भी बढ़ाया। इसके लिए भी कई लोगों को रखा गया। कई कंपनियों ने लॉकडाउन में आॅनलाइन काम की बढ़ती डिमांड के कारण जरूरत से ज्यादा लोगों को रख लिया। अब मार्केट में गिरावट आई, तो कंपनियां इसे बैलेंस करने के लिए कर्मचारियों को निकाल रही हैं। कंपनियां बढ़ती आर्थिक मंदी के बीच अपने खर्च को कम करने के लिए भी लगातार छंटनी कर रही हैं। पहले लॉकडाउन और वर्क फ्रॉम होम की वजह से कंप्यूटर और लैपटॉप सेगमेंट की बिक्री में भी जबरदस्त उछाल आया था, लेकिन अब यह मार्केट डाउन हो रहा है।
साल 2023 के जनवरी महीने में अब तक 166 टेक कंपनियों ने 65,000 से ज्यादा कर्मचारियों को नौकरी से निकाला हैै। माइक्रोसॉफ्ट के 10 हजार कर्मचारियों की छंटनी से पहले अमेजन ने 1000 भारतीय कर्मचारियों समेत ग्लोबली कुल 18000 कर्मचारियों को नौकरी से निकाला है। छंटनी ट्रैकिंग साइट लेयोफ्स डॉट एफवाईआई में दिखाए गए आंकड़ों के अनुसार साल 2022 में 1,000 से ज्यादा कंपनियों ने 154,336 कर्मचारियों की छंटनी की थी। हालांकि 2022 से ज्यादा नए साल के पहले महीने में ही कर्मचारियों को निकाला गया है। इसमें सबसे ज्यादा भारत की स्टार्टअप रही हैं। इसका एक बड़ा उदाहरण स्टार्टअप कंपनी शेयरचैट है जिसने अपनी कंपनी के 20 प्रतिशत या 500 कर्मचारियों की छंटनी की है।
एलन मस्क के आने के बाद से ट्विटर से हजारों लोग अपनी नौकरी गंवा चुके हैं। साल 2022 के अक्टूबर महीने में एलन मस्क ने ट्विटर को टेकओवर किया था। मस्क ने ट्विटर को 44 बिलियन डॉलर में खरीदा था। इसके बाद नवंबर के महीने में मस्क ने करीब 50 फीसदी कर्मचारियों की छंटनी की। औद्योगिक सूत्र बताते हैं कि नए लोगों को टेक कंपनियों में अवसरों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। नौकरी कम हैं और कॉलेज कैंपस चयनों को रोक दिया गया है। हालांकि, सभी अच्छे की उम्मीद कर रहे हैं और अपने खुशहाल दिनों में लौटने की उम्मीद भी कर रहे हैं।
अमेरिका में बड़ी टेक कंपनियों में जा रही नौकरियों का सबसे बड़ा शिकार वहां रहने वाले भारतीय हुए हैं। वैसे, यह बात तार्किक भी है कि इस उद्योग में जिस देश के लोगों की सबसे ज्यादा भागीदारी है, जब संकट आएगा, तो सबसे ज्यादा मार भी उन पर ही पड़ेगी। बहरहाल, एक रिपोर्ट में बताया गया है कि गूगल, फेसबुक आदि बड़ी टेक कंपनियों ने लगभग दो लाख कर्मचारियों को हटा दिया है, जिनमें 80 हजार से अधिक भारतीय हैं। ये भारतीय ऐसे वीजा पर गए थे, जिनके तहत नौकरी ना रहने पर 60 दिन के अंदर उन्हें अमेरिका छोड़ना होगा।
जाहिर है, उनमें से ज्यादातर को जल्द ही भारत लौटना होगा। आखिर जिस समय नौकरियां जाने का दौर है और इस वर्ष अमेरिकी अर्थव्यवस्था के मंदी ग्रस्त होने की आशंका गहराती जा रही है, नई नौकरियां मिलने की गुंजाइश न्यूनतम ही है। अचानक नौकरी जाने से उनके पूरे पारिवारिक जीवन का ताना-बाना डगमगा जाएगा। बहरहाल, वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था में विषय यह अंतर्निहित जोखिम है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने भारत में बेरोजगारी का डाटा जारी किया है। जिसके अनुसार हमारे देश भारत में बेरोजगारी दर 2022 के दिसंबर महीने में बढ़कर 8.30 फीसदी पर पहुंची है। यह पिछले 16 महीनों में सबसे ज्यादा है।
भारत जैसे देश, जिसने मैनुफैक्चरिंग और हाई टेक में अनुसंधान एवं विकास की अनदेखी की है, वहां के कुशल कर्मियों की रोजगार पाने की उम्मीद विकसित देशों से जुड़ी होती है। उन देशों में जो स्थिति पैदा होती है, उसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ता है। इसका विकल्प यही है कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था को इस रूप में खड़ा करे, जिससे सर्विस एक्सपोर्ट पर इसकी निर्भरता घटे। साथ ही देश के अंदर रिसर्च एंड डेवलपमेंट के साथ-साथ आधुनिक उद्योग धंधों का जाल भी बिछे। यह प्रयास ना करने का परिणाम भारतीय कारोबार की प्रतिस्पर्धा क्षमता में लगातार गिरावट आने के रूप में आया है, जिससे हाल के वर्षों में भारत को बहुपक्षीय मुक्त व्यापार समझौतों से मुंह मोड़ना पड़ा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर आपदा को अवसर बनाने का मंत्र देते हैं। तो अब अमेरिका में बनी स्थिति फिर एक ऐसा मौका है, जिसे उनकी सरकार चाहे तो अवसर बना सकती है। लेकिन अभी तक सरकार का जो वास्तविक नजरिया रहा है, उसके बीच ऐसा होने की उम्मीद मजबूत नहीं है। जानकारों के मुताबिक, दुनियाभर की आर्थिक गतिविधियों में आई गिरावट और रुकावट मंदी की आहट है। लेकिन इसका सबसे बुरा असर अमेरिका और यूरोप में देखने को मिलेगा। इसकी चपेट में ब्रिटेन जैसे देश भी आ सकते हैं। हालांकि, भारत में इसका कम ही असर देखने को मिलेगा।
नेशनल एसोसिएशन फॉर बिजनेस इकोनॉमिक्स (एनएबीई) द्वारा किए गए सर्वेक्षण में से केवल 12 प्रतिशत अर्थशास्त्रियों ने अनुमान लगाया है कि उनकी फर्मों में अगले तीन महीनों में रोजगार बढ़ेगा, जो इस गिरावट के 22 प्रतिशत से कम है। नेशनल एसोसिएशन फॉर बिजनेस इकोनॉमिक्स (एनएबीई) के अध्यक्ष जूलिया कोरोनाडो के मुताबिक, यह साल मंदी में प्रवेश करने जा रहा है, जो एक व्यापक चिंता का विषय हैं। बड़े स्तर पर छंटनी होना देश के लोगों में बढ़ रही बेरोजगारी को और बढ़ा रहा है। एक डेटा के मुताबिक, भारत के साथ ही ग्लोबल स्तर पर हर दिन 3000 कर्मचारियों की नौकरी जा रही है। पूरी दुनिया में चार बार आर्थिक मंदी आ चुकी है। पहली बार दुनिया को साल 1975 में मंदी झेलना पड़ा था। इसके बाद 1982 में, तीसरी बार 1991 में और चौथी बार 2008 में आर्थिक मंदी आई थी। (यह लेखक के अपने विचार हैं) राजेश माहेश्वरी वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार
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