एसएचओ लक्ष्मी देवी ने सरपंचों द्वारा किए 45 करोड़ गबन की पोल खोल की थी रिक्वरी

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राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित है यह लेडी सिंघम

भिवानी (सच कहूँ न्यूज)। जब मजबूरी इंसान को चारों तरफ से घेर लेती हैं तो संघर्ष उसे जिंदगी के नए आयाम देता है। कुछ ऐसी ही कहानी है भिवानी महिला थाना एसएचओ लक्ष्मी देवी की। गांवों के विकास कार्यों में सरपंचों द्वारा किए गए 45 करोड़ के गबन की रिकवरी करवाने के चलते सुर्खियों में आई लक्ष्मी देवी को राष्ट्रपति अवार्ड से नवाजा गया। तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं इस लेडी सिंघम के संघर्ष की कहानी। 18 जून 1962 को रेवाड़ी में ठाकर दास धींगड़ा के घर मां रोशनी देवी की कोख से जन्मी लक्ष्मी देवी दो बहन व भाईयों में सबसे बड़ी हैं। उन्होंने मैट्रिक किया और इसके बाद प्रभाकर। इसी दौरान उनके पिता बीमार हो गए। घर में परिवार का पालन-पोषण करने वाला कोई नहीं था।

साहित्य रत्न के पहले वर्ष में ही उन्होंने मां का हाथ बंटाना शुरू कर दिया और एक कारखाने में जाने लगी। पिता तो उस समय से बीमार थे, जब वह नौंवी कक्षा में पढ़ती थी, लेकिन जैसे-तैसे घर का गुजर-बसर चला रहा और पढ़ाई में कदम बढ़ते गए। लेकिन जब परिवार के पोषण की परेशानियां आने लगी तो उनके कंधों पर घर की जिम्मेवारी आ गई। प्रभाकर में लक्ष्मी देवी ने राज्य में पहला स्थान प्राप्त किया। इसी की बदौलत उन्होंने रेवाड़ी के प्रसिद्ध गुरूजी के स्कूल में 60 रूपये प्रतिमाह की नौकरी मिली। 10 दिसम्बर 1986 को उनका विवाह हिसार के अमरनाथ कालड़ा के साथ हो गया। इसके बाद जीवन के संघर्ष की राह आगे बढ़ी और लक्ष्मी देवी पुलिस में भर्ती हो गई। मेहनत व संघर्ष की बदौलत अनेक पड़ाव लांघकर वे 13 जुलाई 1995 को सोनीपत में शुरू हुए पहले महिला थाने की एसएचओ बनी।

15 अगस्त 2010 को मिला था सम्मान

लक्ष्मी देवी को राष्ट्रपति द्वारा उनकी उल्लेखनीय सेवाआें के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से 15 अगस्त 2010 को सम्मानित भी किया जा चुका है। लक्ष्मी देवी ने सरपंचों के गबन के मामले में 45 करोड़ रूपये से अधिक की रिक्वरी कर एक कीर्तिमान स्थापित किया तो इसका पुरस्कार राष्ट्रपति अवॉर्ड के रूप में उन्हें मिला। पति अमरनाथ कालड़ा भी पुलिस के सेवानिवृत्त अधिकारी है। इनके दो बेटों में से एक बैंक तो दूसरा नीजि कम्पनी में अधिकारी है।

मजबूरी में की पुलिस की नौकरी

लक्ष्मी देवी ने बताया कि उन्होंने किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए पुलिस की नौकरी को प्राथमिकता दी। रूंधे गले से वे बोली कि लक्ष्य कोई नहीं था, मजबूरी के चलते उन्होंने पुलिस की नौकरी पकड़ी। ईमानदारी से काम किया और इस मुकाम तक पहुंच गई। अब उनकी एक ही इच्छा रहती है कि जो भी शिकायत आएं, उसका ईमानदारी से निवारण कर सकें, ताकि किसी को कोई शिकायत न रहे।

समाज को दे रही झूठ से दूर रहने का संदेश

लक्ष्मी देवी की सेवानिवृत्ति करीब साढ़े चार वर्ष का अरसा बाकी है। उनका कहना है कि सेवानिवृत्ति तक वे समाज को यही सिखाने का प्रयास करेंगी कि झूठ से दूर रहें, ताकि भ्रांतियों से निजात मिल सकें। समाज में बढ़ रहे अपराध पर तभी लगाम लगेगी।

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