नशा तस्करी हमारे देश का बड़ा राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा है। राजनीतिक मुद्दों ने तो यहां राज्य सरकारें तक पलट दी हैं, लेकिन इस मामले का कोई समाधान नहीं निकला बल्कि यह सत्ता प्राप्त करने की एक सीढ़ी बन गई है। दरअसल नशा तस्करी रोकने में राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी ही सबसे बड़ी समस्या है। मणिपुर की एक महिला आईपीएस अधिकारी ने वहां की हाईकोर्ट को लिखित रूप में पत्र दिया है कि मुख्यमंत्री उस पर नशा तस्कर को रिहा करने के लिए दबाव बना रहे थे जब आईपीएस अधिकारियों पर नशा तस्करों को रिहा करने के लिए दबाव बनाया जाएगा तब कौन अधिकारी अपनी नौकरी करना चाहेगा। सत्तापक्ष पुलिस का प्रयोग अपने विरोधियों को टिकाने लगाने के लिए ज्यादा करती हैं। यही कारण है कि कई अधिकारी समय से पहले रिटायर्ड हो जाते हैं। यह भी एक कारण है कि 60-70 प्रतिशत विद्यार्थी आईलैट्स करके विदेश जाने की चाहत रखते हैं।
आज भी देश में एक हजार के करीब आईपीएस अधिकारियों के पद रिक्त पड़े हैं। भ्रष्टाचार का लाभ नशा तस्करों को मिल रहा है। कोरोना महामारी के कारण पुलिस की व्यस्तता बढ़ गई है और नशा तस्करी के मामले निरंतर बढ़ रहे हैं। नशा तस्करी बहुत बड़ी समस्या है जिसने राजनीति को हरा और समाज को खोखला किया है। इन परिस्थितियों में सरकारों द्वारा नशा तस्करी के खिलाफ पुलिस को सख्ती बरतने, लोगों को जागरूक करने के लिए विज्ञापन जारी करने और नशा छोड़ने की अपीलें बिल्कुल बेबुनियाद जैसी नजर आने लगती हैं। केवल आईपीएस स्तर के अधिकारियों के मामले में ही नहीं बल्कि निम्न स्तर के पद पर तैनात कर्मचारी भी राजनीतिक दबाव में काम करने के लिए मजबूर होते हैं। यदि सरकारें इच्छा शक्ति से काम करें और पुलिस को निष्पक्षता और स्वतंत्र होकर काम करने का माहौल दें तब नशा तस्करी को कम किया जा सकता है। ओवरडोज लेने के कारण रोजाना कई युवक की मौत होती है, उनके परिवार जनों का दुख आंसुओं से साफ झलकता है। समाज को बचाने के लिए नशे की रोकथाम आवश्यक है इसीलिए नेता नशे से राजनीतिक लाभ लेने की बजाय इसकी संवेदनशीलता को समझें और समाज को बर्बाद होने से बचाएं।
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