देश भर में आज विश्व तंबाकू निषेध दिवस (World No Tabacco Day) मनाया जा रहा है। इस दिन केंद्र व राज्य सरकारों के स्वास्थ्य विभाग कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, वहीं जिस प्रकार तंबाकू के सेवन से कैंसर के मामले बढ़ते जा रहे हैं, उस लिहाज से प्रचार नहीं हो रहा। तंबाकू पर पूर्णता प्रतिबंध के लिए बड़े स्तर पर परिवर्तन करने की आवश्यकता है। तंबाकू का धुआं केवल सेवन करने वाले के शरीर में ही प्रवेश नहीं करता बल्कि बाहर उसके आसपास भी फैलता है। जिसका स्पष्ट अर्थ है कि तंबाकू का सेवन करने वाला व्यक्ति अपनी जान को तो जान को खतरे में डाल ही रहा है, साथ ही आसपास वाले को भी नुक्सान पहुंचा रहा है।
दरअसल यह इसीलिए बताना आवश्यक समझा गया क्योंकि जनसंख्या (population) का एक बड़ा वर्ग यही मानता है कि तंबाकू का सेवन करने वाले को ही बीमारी होती है। विश्वभर में ऐसे कई मामले भी सामने आएं हैं, जिसमें तंबाकू का सेवन करने वाले के परिवारिक सदस्य भी कैंसर ग्रस्त पाए गए। यह यथार्थ है कि आसपास फैलने वाला धुंआ भी बड़े स्तर पर नुकसान पहुंचा रहा है। इन परिस्थितियों से अनभिज्ञ परिवारिक सदस्य व बच्चे भी बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। वास्तव में जागरुकता व संपूर्ण जानकारी का अभाव ही सबसे बड़ी समस्या है।
यह भी हैरानीजनक है कि कैंसर (Cancer) की जानलेवा बीमारी के बावजूद स्वास्थ्य नीतियों में विरोधाभास है, जिसके कारण तंबाकू का प्रयोग का चलन बंद नहीं हो रहा। स्वास्थ्य विभाग भी इस बात को स्वीकार करता है कि तंबाकू स्वास्थ्य के लिए घातक है और सरकार के दिशा-निर्देशों पर ही सिगरेट, बीड़ी की पैकिंग पर ‘धुम्रपान सेहत के लिए खतरनाक है’ चेतावनी लिखी जाती है। इसके बावजूद तंबाकू पदार्थ बनाने वाली फैक्ट्रियों में अरबों रुपये के उत्पाद निर्विघ्न बनाए जा रहे हैं। इस हिसाब से तो तंबाकू की एक भी फैक्ट्री नहीं होनी चाहिए। जहर तो जहर है भले ही वह स्कूल, अस्पताल से दूर बिके या नजदीक। तंबाकू बेचने वाली दुकानों की दूरी तय की गई है।
बेहतर हो यदि तंबाकू (Tabacco) के उत्पादों पर पूर्ण रूप से प्रतिबंद्ध के साथ-साथ उत्पादन भी बंद किए जाएं। दोहरे मापदंडों के कारण ही न तो शराब का सेवन बंद हो रहा है और न ही तंबाकू का। धर्म व स्वास्थ्य विज्ञान का सीधा संबंध है और सही अर्थों में धर्म ही स्वास्थ्य विज्ञान का आधार हैं। प्रत्येक धर्म शराब और तंबाकू सहित सभी प्रकार के नशों के प्रयोग नहीं करने की शिक्षा देते हैं लेकिन आधुनिक युग में लोग खानपान की कथित आजादी के नाम पर मानवता को गुमराह कर रहे हैं। यदि सरकारें एक ही मापदंड अपनाएं और स्वास्थ्य नीतियां वैज्ञानिक व तर्कसंगत बनाएं तब तंबाकू की रोकथाम चंद दिनों में ही संभव है।
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