Blog: वैश्विक भरोसे का अभाव और जलवायु संकट

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डॉ. संदीप सिंहमार। भारत ही नहीं वैश्विक तौर पर हो रहे जलवायु परिवर्तन व इसकी चुनौतियों को लेकर विश्व के देश किस कदर लापरवाही कर रहे है,इसका अंदाज़ा अज़रबैजान की राजधानी बाकू में यूएन के वार्षिक जलवायु सम्मेलन, कॉप 29 की पृष्ठभूमि में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश के बयान से लगाया जा सकता है। उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हमारी जलवायु दरकने के कगार पर पहुँच चुकी है। यदि हमने वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित नहीं रखा,तो तेज़ी से बढ़ती आपदाएँ हर अर्थव्यवस्था को तबाह कर देंगी। यूएन के शीर्षतम अधिकारियों का यह बयान वास्तव में सोचने के लिए मजबूर करने वाला है।

इस दौरान विश्व अर्थव्यवस्था के 85 फ़ीसदी की हिस्सेदारी वाले जी 20 समूह की शिखर बैठक जिसमें 19 देश व योरोपीय संघ शामिल हैं,शामिल रहे।यह बात ध्यान रहे कि जलवायु जोखिमों कि विफलता का इस दुनिया में दूसरा कोई विकल्प नहीं है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने ध्यान दिलाया कि यूएन जलवायु सम्मेलन की सफलता मोटे तौर पर जी 20 सदस्यों के हाथों में है। इसमें अपनी भागीदारी सुनिश्चित करते हुए अपना योगदान देना होगा। जी 20 वैश्विक उत्सर्जन के लिए 80 फ़ीसदी के लिए ज़िम्मेदार है। इसलिए जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से लड़ने के लिए अगुवाई की आवश्यकता है। इस दशक में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में हर वर्ष 9 फ़ीसदी की कटौती किए जाने की पुकार लगाई है। अब उनकी पुकार कितनी सुनी जाती है, यह भविष्य की बात है।

इस दौरान ब्राज़ील और ब्रिटेन ने संकल्प लिया कि जलवायु को दरकने नहीं देंगे। जलवायु परिवर्तन पर सूचना सत्यनिष्ठा के लिए एक नई वैश्विक पहल की घोषणा भी की। इस पहल के अन्तर्गत, ब्राज़ील और संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन(यूनेस्को) जानबूझकर ग़लत जानकारी फैलाए जाने के विरुद्ध एक साथ मिलकर प्रयास करेंगे। अगले वर्ष ब्राज़ील द्वारा कॉप 30 सम्मेलन की मेज़बानी की जाएगी,जिससे पहले जलवायु वित्त पोषण समझौतों पर सहमति की आवश्यकता पर बल दिया गया है। यह जरूरी भी है। जलवायु की चुनौतियां व समाधान पर बाकू में सफलता हासिल करनी होगी, भरोसे का निर्माण करना होगा और अगले वर्ष ऊँची महत्वाकाँक्षा वाली राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं की तैयारियों को प्रोत्साहन देना होगा। तभी इस सम्मेलन के परिणाम देखने को मिलेंगे।

यूएन महासचिव ने कहा कि वैश्विक संस्थाओं के समक्ष मौजूद चुनौतियों की वजह से जलवायु संकट और जटिल हो गया है। साथ ही अन्तरराष्ट्रीय सहयोग के लिए भी मुश्किले हैं। हमारे सामने वैश्विक शासन व्यवस्था की कमी और वैश्विक भरोसे का अभाव है। निर्धनता, असमानता व जलवायु संकट बद से बदतर होते जा रहे हैं और शान्ति हमारी पकड़ से दूर हो रही है।उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं में सुधार प्रक्रिया को दृढ़ता के साथ आगे बढ़ाने की अपील की। साथ ही कहा कि इसे कभी ना पूरी हो सकने वाली संभावना बनने से रोकना होगा। जलवायु जोखिमों के प्रति सचेत करते हुए कहा कि विफलता का कोई विकल्प नहीं है। वास्तव में यदि वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ा तो विश्व भर में भयंकर तबाही देखने को मिल सकती है। इस तबाही के लिए कोई और नहीं बल्कि खुद इंसान व सरकारें जिम्मेदार होगी।

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