उत्तर प्रदेश में सीमा पर फंसे मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए कांग्रेस पार्टी और यूपी सरकार के बीच पिछले कुछ दिन से चल रही ‘बस राजनीति’ गर्म तो खूब हुई लेकिन उन मजदूरों को कोई फायदा पहुंचाने में कामयाब नहीं हुई जो अभी भी सड़कों पर पैदल चलने को विवश हैं। नोएडा में दो दिनों से खड़ी इन बसों पर मजदूरों को ले जाने के लिए यूपी सरकार ने मंजूरी देनी है, जबकि योगी सरकार ने मंजूरी नहीं दी। यूपी सरकार के मुताबिक, करीब 400 बसें मानक पर खरी नहीं उतरीं। हालांकि, प्रियंका गांधी और कांग्रेस पार्टी की ओर से यह भी कहा गया कि कम से कम उन बसों को तो इस्तेमाल कर लिया जाए, जो सही हैं। अब यहां सारा मामला राजनीतिक खींचतान पर जाकर अटक गया है। दोनों पार्टियों की सियासत में मजदूरों में जगी मदद की उम्मीद कहीं गुम हो गई है।
भले ही कांग्रेस को बसें चलाने से राजनीतिक लाभ मिल सकता है, फिर भी संकट के दौर में लाचार लोगों के लिए मदद का हाथ बढ़ाना एक सराहनीय प्रयास है। प्रत्येक नागरिक को दुखी लोगों की मदद करने का अधिकार प्राप्त है व नैतिक कर्तव्य भी है। यूं भी विभिन्न राज्यों की सरकारें समाजसेवी संस्थाओं का सहयोग ले रही हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि यदि गैर-सरकारी प्रयासों को निकाल दिया जाए तब कोरोना महामारी से निपटना बहुत बड़ी चुनौती है। पंजाब, हरियाणा में लाखों लोगों ने प्रवासी मजदूरों व गरीबों की हर संभव मदद की है, इसी कारण यदि कांग्रेस भी जरूरतमन्दों की मदद के लिए आगे आती है तब इसे राजनीतिक चश्में से नहीं देखा जाना चाहिए, मजदूरों के लिए रोकी गई बसों को रोकना उचित नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि भविष्य में राजनीतिक दलों को भी अपने समाजसेवी विंग स्थापित करने पड़ेंगे ताकि राजनीतिक नफे-नुक्सान की जंग में मानवता की सहायता में कोई रुकावट न बन सके।
दरअसल पिछले लंबे समय से सरकारी मंजूरी की औपचारिक कार्यवाहियों व गंदी राजनीति के कारण राहत कार्यों में देरी होती रही है जिसका नुक्सान पहले ही दुविधा में फंसे लोगों को भुगतना पड़ा है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सड़क हादसों के मामले में घायलों को अस्पताल पहुंचाकर उनकी मदद करना व उन्हें किसी भी कानूनी कार्रवाई में न फंसाने की छूट के निर्देश जारी किए हैं। इससे पहले यह होता था कि लोग कानूनी कार्रवाई में फंसने के डर से किसी घायल की मदद करने से कन्नी कतराते थे, जिस कारण कई घायल उपचार के आभाव में दम तोड़ जाते थे। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का आधार यही है कि कोई भी व्यक्ति मदद कर सकता है। मदद करने वाले का धर्म, जाति व पार्टी चिन्ह् कोई मायने नहीं रखता, जिस तरह अब कोरोना वायरस के कारण लाखों मजदूर घर वापिसी के लिए हजारों किलोमीटर के लिए सड़कों पर पैदल चल पड़े हैं, इन परिस्थितियों में मजदूरों की मदद सरकार करे, भाजपा करे या कांग्रेस करे कोई फर्क नहीं पड़ता। यदि देश एक ही है तो दुखियों की मदद के लिए सबको एक होने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए। यदि कोई केंद्र व राज्य सरकारों के राहत फंड में दान दे सकता है तब बसें चलाने पर भी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
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