Struggle and Passion: हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के छोटे से कस्बे की गरीब परिवार की बेटी नारी जगत के लिए बनी प्रेरणा

Struggle and Passion
Struggle and Passion: हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के छोटे से कस्बे की गरीब परिवार की बेटी नारी जगत के लिए बनी प्रेरणा

हॉकी की ‘गोल मशीन’ के संघर्ष व सफलता की कहानी

प्रतिभा और मेधा किसी की बपौती नहीं होती। जोश, जुनून और पक्के इरादे के साथ-साथ बेहतर मार्गदर्शन मिले, तो साधारण से साधारण व्यक्ति भी न केवल अपने लिए बल्कि अपने देश और समाज के लिए बहुत कुछ कर गुजरता है। हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के छोटे से कस्बे शाहबाद मारकंडा में 1994 में बहुत ही गरीब परिवार में पैदा हुई बेटी रानी रामपाल ने गरीबी, तंगहाली और समाज के तानों का मुंह तोड़ते हुए अपना ही नहीं, बल्कि देश का नाम रोशन किया और नारी जगत के लिए प्रेरणा बनी। Struggle and Passion

बात महिला हाकी टीम की पूर्व कप्तान और हाकी की ‘गोल मशीन’ कही जाने वाली रानी रामपाल की है, जिन्होंने गत 24 अक्टूबर को हाकी से संन्यास लेने की घोषणा की है। याद रहे, उन्होंने हाकी खेलने से संन्यास लिया है, हाकी खिलाने से नहीं, क्योंकि वह इस समय भारत की जूनियर महिला हाकी टीम की कोच हैं। अब रानी रामपाल गोल नहीं करेंगी, बल्कि नई गोल मशीन तैयार करने का काम करेंगी। रानी रामपाल जिस त्याग, तपस्या और कठोर परिश्रम के बाद इस मुकाम पर पहुंची हैं, वह आज के युवाओं, विशेषकर महिलाओं के लिए प्रेरणादायक है। उनके पिता रामपाल ठेला-रेहड़ी चलाकर परिवार का पालन-पोषण करते थे, और उनकी माता लोगों के घरों में काम करती थीं।

रानी रामपाल कहती हैं कि बचपन में उनके घर में गरीबी के चलते कई बार जब एक समय की रोटी मिल जाती, तो दूसरे समय की रोटी की आस नहीं होती थी। इस प्रकार से वह बचपन में कुपोषण का शिकार भी रहीं। इसके कारण ही बचपन में रानी रामपाल शरीर से बहुत दुबली-पतली थीं। उन्होंने पड़ोसी के घर पर टीवी पर हाकी मैच देखा, तो उनके मन में हाकी के प्रति जुनून पैदा हो गया। अगले ही दिन शाहबाद मारकंडा के हॉकी स्टेडियम में हाकी खेलने के लिए द्रोणाचार्य अवार्डी कोच बलदेव सिंह के पास पहुंची। तब कोच बलदेव सिंह ने कहा था कि आप बहुत दुबली-पतली हैं, हॉकी कैसे खेल पाओगी। फिर भी, कोच बलदेव सिंह ने उन्हें हौसला दिया और उत्साहित किया। इसके बाद रानी ने हॉकी स्टिक पकड़ी और अपने कोच बलदेव सिंह से हॉकी की बारीकियां सीखी।

संघर्ष और जुनून: बेटियों को उनके सपने पूरे करने का अवसर दें

रानी रामपाल का कहना है कि बलदेव सिंह ने उनकी जिंदगी बदल दी, और उनके द्वारा सिखाए गए हाकी के गुर की बदौलत उन्हें 14 वर्ष की आयु में 2008 में इंडियन जर्सी पहनने का मौका मिला और हॉकी में डेब्यू किया। यह हर भारतीय खिलाड़ी का सपना होता है। इसके बाद रानी रामपाल ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 2010 में भारत की जूनियर हाकी टीम में देश के लिए खेली। 2017 के एशियन कप में गोल्ड, 2018 में सिल्वर और 2020 में इंडिया के लिए मेडल जीते। भारतीय टीम की कप्तान के रूप में टोकियो ओलंपिक 2020 में भाग लिया। हालांकि, भारतीय महिला हॉकी टीम मेडल जीतने से चूक गई और टीम को चौथे स्थान पर संतोष करना पड़ा।

रानी रामपाल आगे कहती हैं कि जीवन में उन्हें सबसे ज्यादा गर्व तब हुआ जब 2020 में वह अपने पिता के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से मिली थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने मेरे पिता को सीने से लगाकर कहा था, “मुझे रानी से भी ज्यादा आप पर गर्व है, क्योंकि जो आपने अपनी बेटी के लिए किया है, वो हर बाप अपनी बेटी के लिए करे।” रानी को अपने जीवन में खेल के दौरान कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।

शुरूआती दौर में इंजरी के चलते लोगों ने यहां तक कह डाला था कि रानी शायद ही अब हाकी खेल पाए। इतना ही नहीं, समाज के कई प्रकार के ताने सहने पड़े। इसके बावजूद, उन्होंने हाकी खेली और 254 बेहतरीन हाकी मैच खेले तथा अंतरराष्ट्रीय मैचों में 205 गोल किए। तभी तो रानी रामपाल को हाकी की गोल मशीन कहा जाता है। रानी रामपाल को 2020 में भारत सरकार द्वारा मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उसी वर्ष, देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया। अपनी इस सफलता में रानी रामपाल उड़ीसा, हरियाणा और भारत सरकार के साथ-साथ भारतीय खेल प्राधिकरण का भी महत्वपूर्ण योगदान मानती हैं और धन्यवाद प्रकट करती हैं।

16 साल के खेल करियर के बाद संन्यास लेने की घोषणा कर सबको चौंका दिया

रानी ने गत 24 अक्टूबर को 30 साल की उम्र में 16 साल के खेल करियर के बाद भावुक होते हुए हाकी खेल से संन्यास लेने की घोषणा कर सबको चौंका दिया। उन्होंने महिला हाकी इंडिया लीग में कोच के रूप में नई पारी का आगाज करने का भी ऐलान किया है। हाकी की गोल मशीन कही जाने वाली रानी रामपाल अब खुद मशीन न बनकर नई गोल मशीन तैयार करेंगी।

रानी रामपाल का कहना है कि जब वे अपने शाहबाद मारकंडा आती हैं, तो लोग अपनी बेटियों को कहते हैं कि तुम्हें भी रानी जैसा बनना है। यह सुनकर ऐसा लगता है कि मैं अपने मकसद में कामयाब हो गई हूं। उनका कहना है कि वे हर माता-पिता से यही गुजारिश करेंगी कि वे अपनी बेटियों को उनके सपने पूरे करने का अवसर दें। एक दिन आपको उन पर गर्व होगा, और इस प्रकार से आगे और कई रानी पैदा होंगी, जो विभिन्न क्षेत्रों में देश का नाम रोशन करेंगी।

                                                                         सतीश मेहरा (यह लेखक के अपने विचार हैं)

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