कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमार स्वामी ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में गठबंधन सरकार चलाने को जहर निगलने के समान बताया है। अपनी बेबसी प्रकट करते वह आंसू भर-भर कर रोये। उन्होंने यह भी घोषणा की कि अगर वह चाहें तो दो घंटों में त्याग-पत्र दे सकते हैं। कुमार की यह बातें भावुक कम व हैरानीजनक अधिक हैं। यह अपने आप में ड्रामे वाली बात है। राजनीति वैसे भी एक ड्रामे की ही तरह है लेकिन स्वामी ने अपनी भूमिका बड़ी ही निपुणता से निभाई।वह गठबंधन सरकार को जहर कह रहे हैं। पहली बात क र्नाटक कोई पहला राज्य नहीं जहां गठबंधन सरकार बनी है। जनता दल (एस) ने सत्ता हासिल करने के लिए कांग्रेस की गठबंधन पेशकश को एकदम स्वीकार कर लिया था। कुमार स्वामी का सत्ता के लिए मोह स्पष्ट था। कांग्रेस ने अधिक सीटें लेने के बावजूद जनता दल पर विश्वास किया है।
गठबंधन सरकार चलाने का निर्णय उन्होंने खुद ही लिया, कुछ परेशानियां गठबंधन सरकार में होती हैं, मतभेद उभरते हैं, जिसे सूझवान मुख्यमंत्री राज्य की बेहतरी के लिए दूर कर लेते हैं। यही कुमार स्वामी कई दिन पहले प्रधानमंत्री को जवाब दे रहे थे कि उन्हें (कुमार स्वामी) अपने स्वास्थ्य की नहीं बल्कि राज्य के स्वास्थ्य की चिंता है। कुमार स्वामी एकदम बदल कैसे रहे हैं? अगर उन्हें राज्य के स्वास्थ्य की चिंता है तब वह गठबंधन चलाने को राज्य के स्वास्थ्य प्रति चिंता समझते हैं? स्वामी की यह बात बेबुनियाद है कि अगर वह चाहें तो त्याग-पत्र दे सकते हैं।
त्याग-पत्र देने की बात अपने आप में उन करोड़ों मतदाताओं का अपमान है, जिन्होंने स्वामी पर विश्वास कर राज्य की कमान उनके हाथों में सौंपी है। दरअसल स्वामी टेढ़े-मेढ़े तरीके से कर्नाटक की जनता को उलाहना दे रहे हैं, जिसने जनता दल को बहुमत नहीं दिया। अब बेहतर यही है कि स्वामी कांग्रेस का कसूर निकालने की बजाए पद की उस शपथ का सम्मान करें जो उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के समय ली है। नि:संदेह स्वामी की इस ‘आंसू बाजी’ ने मुख्यमंत्री के पद व लोकतंत्र की शान को फीका कर दिया है।
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