सच कहूँ से विशेष बातचीत में परिवहन मंत्री बोले, हर कमिटमेंट पूरा करता हूँ
- नई परिवहन नीति का ड्रॉफ्ट तैयार, अब कोई विरोधाभास नहीं
चंडीगढ़। तीन महीनों में दो बार रोडवेज़ कर्मचारियों द्वारा किए गए चक्का जाम के बाद नई परिवहन नीति का दबाव झेल रहे परिवहन मंत्री कृष्ण लाल पंवार ने साफ किया है कि वे हर मसले का हल बातचीत से चाहते हैं लेकिन इसे सरकार की कमजोरी या किसी प्रकार का दबाव-भय न समझा जाए। उनहोंने कहा कि वे जो कमिटमेंट करते हैं उसे पूरा करते हैं। चंडीगढ़ से सच कहूँ ब्यूरो अनिल कक्कड़ के साथ हुई विशेष बातचीत में उनहोंने विभिन्न मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखी।
सवाल: नई परिवहन नीति को लेकर आपने रोडवेज़ यूनियनों से तीन दिन का समय लिया है, दो दिन बीत गए हैं, फिलहाल नई परिवहन नीति का क्या स्टेट्स है?
उत्तर : 13 तारीख की शाम को रोडवेज़ यूनियनों के साथ जो समझौता हुआ था उसके तहत तीन दिनों, विद इन अ वीक (एक सप्ताह) में नई परिवहन नीति का ड्रॉफ्ट तैयार करने की बात हुई थी। जिसके तहत कल ही सभी रोडवेज़ के जीएम, तकनीकी स्टॉफ एवं रोडवेज यूनियनों के पदाधिकारियों के साथ बैठक कर ड्रॉफ्ट की रूप रेखा तैयार की गई जिसमें 479 रूटों पर निजी बसों को परमिट दिए जाने पर सहमति बनी थी। जिसमें से थोड़ी और छंटनी होकर लगभग 450 के करीब रूटों पर निजी बसों को परमिट पर ड्रॉफ्ट तैयार होने की संभावना है। इसका पूरा खाका कल तैयार कर दिया गया था बाकि रहता 5-7 फीसदी आज तैयार करके जल्द ही मुख्यमंत्री के पास भेज दिया जाएगा।
सवाल : ड्रॉफ्ट के बाद पॉलिसी को कितना वक्त लगेगा और क्या तब तक निजी बसें चलती रहेंगी?
उत्तर: देखीए, ड्रॉफ्ट उम्मीद है कि आज-कल में मुख्यमंत्री की सहमति के लिए भेज दिया जाएगा। लेकिन इसे पॉलिसी में कनवर्ट होने के लिए कम से कम 1 महीने का प्रॉसैस तो है। इस दरमियां जो निजी बसें निर्धारित रूटों पर चल रही हैं वे टेंपरेरी परमिट पर चलती रहेंगी।
सवाल: रोडवेज यूनियनों के साथ हुई बैठक में आपने कहा था कि नई पॉलिसी में आप निजी बसों के लिए नए रूट लेकर नहीं आएंगे तो क्या अब नए बने ड्रॉफ्ट में नए रूट शामिल किए गए हैं?
उत्तर : नहीं, नया रूट नहीं डाला गया है। 2016-17 की जो पुरानी परिवहन नीति थी उसमें लगभग 69 पुराने रूटों के तहत ही परमिट दिए जाने थे। वहीं करीबन 1800 एप्लीकेशन निजी बस आप्रेटरों की नए रूटों के लिए आई थी जिसे स्वीकार नहीं किया गया था। वहीं सरकार, अधिकारी एवं कर्मचारी मिल कर ऐसा ड्रॉफ्ट बना रहे हैं ताकि जहां सरकारी बसों की आवाजाही कम है वहां जनता को भी परेशानी न हो। वे भी आसानी से सफर कर सकें और सरकारी बसों का भी नुकसान न हो। इसलिए 479 निजी रूटों पर सहमति बनी है।
सवाल: आप हमेशा रोडवेज़ यूनियनों से हड़ताल के बाद नैगोसिएशन करते हैं, पहले मसला हल करने की कोशिश क्यों नहीं होती?
उत्तर : देखीए, मैं तो जब भी किसी मीटिंग में बैठा हूँ मसला सुलझा कर ही उठा हूँ। इससे पूर्व भी जब रोडवेज कर्मचारियों ने मांग की थी कि 2016-17 पॉलिसी की जगह नई पॉलिसी लाई जाए तब भी बैठ कर ही समझौता हुआ था। तभी सरकार ने 2016-17 पॉलिसी क्वैश करने के लिए एफिडेविट दाखिल कर दिया था। चंूकि अबकी बार पॉलिसी को लेकर झगड़ा नहीं था अबकी बार जो प्राइवेट बसें नई आई हैं वे अपने रूट से हट कर दूसरे रूटों पर आवाजाही कर रही थी जिस वजह से रोडवेज़ यूनियनों ने एतराज़ जताया था। अब सरकार ने मसला सुलझाने के लिए नई नीति का ड्रॉफ्ट तैयार कर लिया है तो इसमें कोई विरोधाभास नहीं रह जाता।
सवाल : 450 रूटों पर अब तय है कि प्राइवेट बसें चलेंगी?
उत्तर: देखीए, 479 रूटों पर सहमति बनी थी जिसमें कुछ की छंटनी हुई अब 450 पर सहमति बन गई है। हालांकि इसमें भी कुछ बढ़ या कम हो सकते हैं। पूर्व में 273 निजी रूटों पर बसें चल रही थी अब कुल 450 पर चलेंगी। भाव 177 के लगभग नए रूटों पर प्राइवेट बसों को निजी परमिट दिए जाएंगे।
सवाल: यूनियनें अक्सर आरोप लगाती हैं कि सरकार वायदाखिलाफी करती है, इस बार सरकार वायदे पर खरा उतरेगी?
उत्तर : शायद ही पिछली किसी सरकार ने इतनी मांगे मानी हों। और मैंने कमेंटमेंट कर दी वह मैं अवश्य पूरी करता हूँ। यह सब रिकॉर्ड पर है। 8200 कर्मचारियों को रैग्यूलर करना, यह मांग कितनी पुरानी थी। 1993 से यह मांग चली आ रही थी। वहीं कर्मचारियों के नाइट स्टे की मांग को भी सरकार ने मंजूर किया। वर्दी, जूतों से लेकर एलटीसी ऐसी कई मांगें सरकार ने स्वीकारी हैं, जो कि कई-कई सालों से लटकती आ रही थीं।
सवाल : आप मांगें भी मान रहे हैं, बातचीत भी कर रहे हैं, फिर भी हड़तालें होती हैं, क्या सरकार ज्यादा लचीला रवैया अपना रही है?
उत्तर : नहीं, मेरा रवैया लचीला नहीं है। मेरा विधानसभा का 30 साल का अनुभव है। मैं यह चाहता हूँ कि मसले को बातचीत से सुलझाया जाए तो बेहतर है। लेकिन मैं अनुभव के आधार पर यह बात कह रहा हूँ कि मेरी चक्की चलती धीरे है लेकिन पीसती बहुत बारीक है। बातचीत के लिए दरवाजे खुले रखने का मतलब डरना या झुकना न समझा जाए।
मैं अनुभव के आधार पर यह बात कह रहा हूँ कि मेरी चक्की चलती धीरे है लेकिन पीसती बहुत बारीक है। बातचीत के लिए दरवाजे खुले रखने का मतलब डरना या झुकना न समझा जाए।
कृष्ण लाल पंवार
परिवहन मंत्री, हरियाणा
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