दुनिया से निरक्षरता को समाप्त करने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए यूनेस्को ने 17 नवंबर, 1965 के दिन 8 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस मनाने का फैसला लिया था। निरक्षरता अंधेरे और साक्षरता प्रकाश के समान है। आठ सितंबर 2018 को अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस साक्षरता और कौशल विकास विषय के साथ दुनिया भर में मनाया जाएगा। साक्षरता के साथ ज्ञान एवं कौशल विकास भी जरूरी है। ज्ञान एवं कौशल विकास के लिए साक्षर बनकर आगे बढ़ा जा सकता है। साक्षर, नवसाक्षर व असाक्षरों को साक्षर करने के बाद उन्हें कौशल उन्नयन से जोड़ा जाना और उन्हें रोजगार के अवसर प्रदान करने की महती आवश्यकता है। शिक्षा चाहे जैसी भी हो वह अपने और परिवार के प्रति काम आती है।
कौशल उन्नयन के क्षेत्र में और भी अधिक काम करने की आवश्यकता है कौशल प्रशिक्षण के बाद हितग्राहियों को रोजगार से जोड़ा जाना नितांत आवश्यक है। साक्षरता और कौशल विकास का चोली दामन का साथ है। साक्षरता की सफलता रोजगार से जुड़ी है। हम साक्षर व्यक्ति को रोजी रोटी की सुविधा सुलभ करा कर देश से निरक्षरता के अँधेरे को भगा सकते हंै। हालाँकि केंद्र और राज्य सरकारें विभिन्न स्तरों पर कौशल विकास के कार्यक्रम संचालित कर रही हैं मगर जब तक ऐसे व्यक्ति अपने पैरों पर खड़े नहीं होंगे तब तक साक्षरता अभियान को पूर्ण रूप से सफल नहीं माना जा सकता।
साक्षरता का मतलब केवल पढ़ना-लिखना या शिक्षित होना ही नहीं है। यह लोगों में उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूकता लाकर सामाजिक विकास का आधार बन सकती है। इसका सामाजिक एवं आर्थिक विकास से गहरा संबंध है। साक्षरता का कौशल मानव में आत्मविश्वास का संचार करता हैै। गरीबी उन्मूलन में इसका महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। महिलाओं एवं पुरुषों के बीच समानता के लिए जरूरी है कि महिलाएं भी साक्षर बनें।
जीने के लिये खाने की तरह ही साक्षरता भी महत्वपूर्णं है। गरीबी को मिटाना, बाल मृत्यु दर को कम करना, जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करना, लैंगिक समानता को प्राप्त करना आदि को जड़ से उखाड़ना बहुत जरुरी है। साक्षरता में वो क्षमता है जो परिवार और देश की प्रतिष्ठा को बढ़ा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाने का उद्देश्य व्यक्ति, समुदाय तथा समाज के हर वर्ग को साक्षरता का महत्व बताकर उन्हें साक्षर करना है।
साक्षरता एवं शिक्षा में बहुत बड़ा अंतर है। साक्षरता का आधार शिक्षा अर्जित करना होता है और शिक्षा का आधार ज्ञान। एक व्यक्ति बिना साक्षर हुए भी शिक्षित हो सकता है। साक्षरता एक मानव अधिकार है, सशक्तिकरण का मार्ग है और समाज तथा व्यक्ति के विकास का साधन है। लोकतंत्र की सुनिश्चितता के लिए साक्षरता आवश्यक है। वर्ष 2010 में जब बच्चों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का कानून 2009 लागू हुआ, यह देश के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी। सभी के लिए प्रारंभिक शिक्षा की दिशा में देश के प्रयासों को इस कानून के लागू होने से जबरदस्त बढ़ावा मिला। आज शिक्षा का अर्थ केवल साक्षरता से लिया जाता है, आर्थिक प्रगति के लिए शिक्षा जरुरी है साक्षरता नहीं।
शिक्षित व्यक्ति अपनी आय का साधन बढ़ा सकता है और आये हुए धन को सहेज कर अमीर भी बन सकता है परन्तु साक्षर व्यक्ति ये काम नहीं कर सकता। यहाँ शिक्षा और साक्षरता का अंतर समझना बहुत जरुरी है. शिक्षा का अर्थ है किसी उपयोगी कल को सीखना जबकि साक्षरता केवल मात्र अक्षर ज्ञान है।
साक्षरता दक्षता और व्यवहार वे शक्तिशाली साधन है, जो स्वास्थ्य की बेहतर संभावनाएँ निर्मित करने के लिए महिलाओं और पुरुषों में आवश्यक क्षमताओं तथा आत्मविश्वास को विकसित करती है। साक्षरता और स्वास्थ्य में भी गहरा संबंध है। स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाकर शिशु और मातृ मृत्युदर में कमी लाना, लोगों को जनसंख्या विस्फोट के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक करना इसके उद्देश्यों में शामिल है। साक्षरता का अर्थ केवल पढ़ने-लिखने और हिसाब-किताब करने की योग्यता प्राप्त करना ही नहीं है, बल्कि हमें नवसाक्षरों में नैतिक मूल्यों के प्रति आदरभाव रखने की भावना पैदा करना होगी।
बाल मुकंद ओझा
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