Uniform Civil Code: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभी हाल ही में मध्य प्रदेश के भोपाल में ‘मेरा बूथ सबसे मजबूत’ जनसभा के दौरान बीजेपी कार्यकतार्ओं को संबोधित करते हुए पूरे देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने की बात कही। उन्होंने सवाल किया कि एक देश में दो तरह के कानून क्यों होने चाहिएं। उन्होंने दावा किया कि देश का विपक्ष समान नागरिक संहिता के पक्ष में नहीं बल्कि खिलाफ है, क्योंकि वे तुष्टिकरण की राजनीति कर रहे हैं। प्रधानमंंत्री के इस बयान के बाद पूरे देश में कॉमन सिविल कोड पर बहस छिड़ गई है। बता दें कि अभी इसको लेकर कोई मसौदा नहीं आया है लेकिन समाज के कई हिस्सों से विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।
उल्लेखनीय है कि जनसंघ के जमाने से ही जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना और समान नागरिक संहिता लागू करना एजेंडे में रहा है और बीजेपी के गठन के बाद राम मंदिर का मुद्दा भी एजेंडे में शामिल कर लिया गया था। केंद्र में पीएम मोदी के आने के बाद इन 9 सालों के कार्यकाल में अनुच्छेद 370 और राम मंदिर का एजेंडा तो पूरा कर लिया गया है। लेकिन बीजेपी अब समान नागरिक संहिता की ओर अपने कदम बढ़ाने का संकेत दे चुकी है। उत्तराखंड में तो बीजेपी सरकार इस कानून को लागू करने की दिशा में कई कदम भी आगे बढ़ा चुकी है। उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता को लागू करने की तैयारी तकरीबन पूरी कर ली गई है। रिटायर्ड जस्टिस रंजना देसाई की अध्यक्षता में कमेटी यूसीसी का मसौदा भी तैयार हो चुकी है।
मुस्लिम कर रहे लगातार विरोध | Uniform Civil Code
आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) यूसीसी का लगातार विरोध जता रहा है। बोर्ड के अनुसार ‘समान नागरिक संहिता (यूसीसी) भारत जैसे विशाल बहु-धार्मिक देश के लिए न तो उपयुक्त है और न ही उपयोगी है। मुस्लिम बोर्ड ने कहा कि समान नागरिक संहिता संविधान में निहित धर्म का पालन करने के मौलिक अधिकार के खिलाफ है। भारत एक बहु-धार्मिक देश है, और प्रत्येक नागरिक को अपने विश्वास और धार्मिक विश्वासों का अभ्यास करने और मानने की गारंटी है। एआईएमपीएलबी ने अपने 27वें सार्वजनिक सत्र के दूसरे और अंतिम दिन पारित एक प्रस्ताव में कहा, ‘इस दिशा में कोई भी प्रयास हमारे संविधान में निहित मौलिक अधिकारों के खिलाफ है’।
बता दें कि गोवा में पहले से ही यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है। इसे 1867 में पुर्तगालियों ने लागू किया था। गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है जहां यूसीसी कई वर्षों से चल रहा है, लेकिन अभी भी इस कोड में कुछ खामियां जताई गई हैं। गोवा में 1867 का समान नागरिक कानून उसके सभी समुदायों पर लागू होता है, लेकिन कैथोलिक ईसाइयों और दूसरे समुदायों के लिए अलग नियम हैं। Uniform Civil Code
जैसे कि केवल गोवा में ही हिंदू दो शादियां कर सकते हैं। 1962 का गोवा दमन और दीव प्रशासन अधिनियम लागू हुआ, 1961 में गोवा के एक क्षेत्र के रूप में संघ में शामिल हुआ। इसके बाद गोवा राज्य को 1867 के पुर्तगाली नागरिक संहिता को लागू करने की अनुमति दी गई। समान नागरिक संहिता के तहत एक ऐसा कानून पारित किया गया जिसमें किसी धर्म, लिंग और लैंगिक झुकाव की परवाह नहीं की जाएगी। गोवा में ये कानून पति और पत्नी के साथ-साथ संतानों (लड़का-लड़की में भेद किए बिना) के बीच धन और आय के समान वितरण की अनुमति देता है।
गोवा में हिन्दुओं को है बहुविवाह का अधिकार, मुस्लिमों को नहीं
गोवा में यूसीसी के नियमानुसार खास स्थिति में हिंदू बहुविवाह कर सकते हैं लेकिन गोवा में रहने वाले मुसलमान शरीयत को मानने का अधिकार तो रखते हैं लेकिन तीन शादियां करने का अधिकार उन्हें नहीं है। यहां शादी के मामले में मुसलमान शरीयत कानून के बजाय पुर्तगाली कानून और हिंदू कानून दोनों के अधीन आते हैं। यह कानून मुसलमानों को बहुविवाह की इजाजत नहीं देता है लेकिन एक हिंदू व्यक्ति दोबारा शादी कर सकता है, अगर उसकी पत्नी 21 साल की उम्र तक गर्भधारण नहीं करती या 30 साल की उम्र तक लड़का पैदा नहीं करती।
मुस्लिमों को विवाह का पंजीकरण कराना अवश्यक | Uniform Civil Code
गोवा में यूसीसी नियमों के अनुसार मुसलमानों को भी अपनी शादी का पंजीकरण करवाना अति आवश्यक है और कानून के तहत मुसलमानों को बहुविवाह और तीन तलाक से वंचित किया जाता है। यूसीसी के तहत गोवा में सभी धर्मों (कुछ धर्मों को छोड़कर) अपनी शादी का पंजीकरण कराना जरूरी है और ये कानून मुस्लिमों पर भी लागू होता है।
यूसीसी शादी के मामले में कैथेलिकों को विवाह पंजीकरण के मामले में छूट देता है, साथ ही शादी को तोड़ने की स्थिति में कैथोलिक पुजारियों को कुछ अधिकार दिए गए हैं। गोवा संहिता के अनुच्छेद 1057 में विवाह के पंजीकरण का प्रावधान है। कोई भी जोड़ा कैथोलिक सिविल रजिस्ट्रार से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) प्राप्त करने के बाद चर्च में शादी कर सकता है। वहीं दूसरे धर्म के लोगों के लिए विवाह के प्रमाण के रूप में केवल विवाह का एक नागरिक पंजीकरण स्वीकार किया जाता है। इतना ही नहीं, तलाक के मामले में भी ये कानून एक समान नहीं हैं। इस कानून के तहत एक आदमी अपनी पत्नी को कभी भी तलाक दे सकता है। लेकिन एक महिला केवल अपने पति की बेवफाई के आधार पर तलाक दे सकती है। जायदाद के मामले में पत्नी और पति संयुक्त रूप से मालिक हैं, लेकिन पति के पास संपत्ति को चलाने उसका इस्तेमाल करने का अधिकार होता है। यूसीसी के अनुसार पति अपनी पत्नी की मर्जी के खिलाफ घर नहीं बेच सकता।
जानें, पक्ष-विपक्ष के तर्क
पूरे देश में यूसीसी को लागू करने की जहां चारों ओर बात हो रही है वहीं इसके पक्ष और विपक्ष में भी बहुत सी बातें हो रही हैं। इसके पक्षकारों के अनुसार यूसीसी पूरे देश में लैंगिक समानता की तरफ उठाया गया कदम होगा। वे इसे कानूनों को सरल बनाने वाला एक कानून मान रहे हैं। पक्षकारों के अनुसार यह कानून धर्म या व्यक्तिगत कानूनों के आधार पर भेदभाव को खत्म करेगा। साथ ही ये भी तय करेगा कि कानून के तहत सभी को समान अधिकार और सुरक्षा दी जा सके।
दूसरी ओर विपक्ष के अनुसार ये कानून देश के धर्मों, संस्कृतियों और परंपराओं को खत्म कर देगा। यही वजह है कि समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर भारत में विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक समुदायों के बीच आम सहमति का अभाव है।
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