अपने अधिकारोें का अतिक्रमण ना करें उपराज्यपाल

Kiran Bedi

अपने अधिकारोें का अतिक्रमण ना पुडुचेरी सरकार और उपराज्यपाल  किरण बेदी के बीच जारी गतिरोध के मामले पर सुनवाई करते हुए मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै पीठ ने हाल ही में सरकार के पक्ष में फैसला दिया है। अपने फैसले में अदालत ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि केंद्र शासित प्रदेश में वित्तीय व प्रशासनिक फैसले लेने का अधिकार, वहां की चुनी सरकार के पास ही है। उपराज्यपाल को सरकार की रोजाना की गतिविधियों में दखल देने की शक्ति नहीं है। उपराज्यपाल का इस तरह का दखल, संघ शासित प्रदेश प्रतिनिधित्व अधिकार के खिलाफ है। यहां तक कि उपराज्यपाल को सरकार से दस्तावेज मांगने का अधिकार भी नहीं है।

निर्वाचित सरकार के पास ही सेवा मामलों पर अधिकार है। मंत्रि परिषद और मुख्यमंत्री द्वारा लिया गया निर्णय, सचिवों और अन्य अधिकारियों के लिए बाध्यकारी है। इसके साथ ही अदालत ने उपराज्यपाल की शक्तियों पर साल 2017 में केंद्र द्वारा दो स्पष्टीकरण आदेशों को भी रद्द कर दिया। इन दो आदेशों में स्पष्टीकरण दिया गया था कि राज्यपाल के पास स्वतंत्र रूप से कार्य करने की शक्तियां हैं, जिसके लिये वह मंत्रि परिषद की सलाह के लिए बाध्य नहीं है। यानी जिन कार्यों की जिम्मेदारी मंत्री परिषद की है, उनसे जुड़े दस्तावेज के बारे में पूछने का अधिकार राज्यपाल को है। अदालत के इस आदेश के बाद अब उपराज्यपाल किरण बेदी, पुडुचेरी सरकार से किसी भी फाइल के बारे में नहीं पूछ सकती हैं। इतना ही नहीं वह न तो सरकार को और न ही सरकार की तरफ से कोई आदेश जारी कर सकेंगी। सरकार के कामकाज में उनका अनावश्यक हस्तक्षेप बंद हो जाएगा। पुडुचेरी सरकार अब अपना काम स्वतंत्र रूप से कर सकेगी। उस पर किसी का दवाब नहीं होगा।

मद्रास हाईकोर्ट, कांग्रेस विधायक के. लक्ष्मीनारायणन की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिकाकर्ता ने अपनी इस याचिका में उपराज्यपाल द्वारा सरकार के कार्य में अनावश्यक हस्तक्षेप के खिलाफ एतराज जताते हुए कहा था कि सरकार के प्रतिदिन के कामकाज में उपराज्यपाल का दखल कानून के खिलाफ है। लिहाजा इस पर रोक लगाई जानी चाहिए। बहरहाल दोनों पक्षों की विस्तृत सुनवाई के बाद अदालत ने अपने फैसले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और उपराज्यपाल अनिल बैजल के बीच गतिरोध पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए, कहा कि दिल्ली सरकार पर लगाए गए प्रतिबंध, पुडुचेरी सरकार पर लागू नहीं होते हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और पुडुचेरी में अंतर है। हालांकि पुडुचेरी एक राज्य नहीं है, लेकिन उसकी विधान सभा के पास वही अधिकार हैं, जो एक राज्य की विधान सभा के होते हैं। उपराज्यपाल किरण बेदी वित्त, प्रशासन और सेवा मामलों में स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर सकती हंै, लेकिन मंत्रिपरिषद की सलाह पर परामर्श और कार्य कर सकती हैं। यानी अदालत ने अपने फैसले में उपराज्यपाल को अपनी हद में काम करने की सलाह दी है।
पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी जब से पुडुचेरी की उपराज्यपाल नियुक्त हुई हैं, विभिन्न प्रशासनिक मामलों और अधिकार क्षेत्र को लेकर, उनका राज्य के मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी से टकराव होता रहा है। सरकार ने उन पर अनेक गंभीर इल्जाम लगाए हैं। मुख्यमंत्री वी नारायणसामी का कहना है कि वे राज्य में सरकार के प्रस्तावों के विपरीत मनमाने निर्णय कर रही हैं। विभिन्न मामलों पर उनकी स्वीकृति के लिये भेजी गयीं फाइलों को उपराज्यपाल खारिज कर देती हैं। मुफ्त चावल बांटने की योजना समेत 39 सरकारी प्रस्तावों को उपराज्यपाल लटकाए हुए हैं।

गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों के लिए पोंगल उपहार की उपलब्धता सीमित करने, निजी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश में कथित घोटाले में हस्तक्षेप के बाद, सरकार और उपराज्यपाल के बीच विवाद इतना बढ़ गया कि उनके विरोध में मुख्यमंत्री और उनके सहयोगी मंत्रियों ने राजभवन के बाहर सड़क पर धरना भी दिया। जब यह मामला ज्यादा बढ़ गया, तो अदालत में पहुंचा। जहां अदालत ने केन्द्र सरकार की सारी दलीलों को खारिज करते हुए, पुडुचेरी सरकार के पक्ष में अपना फैसला सुनाया।
हमारे संविधान में स्पष्ट प्रावधान है कि राज्यपाल और उपराज्यपाल को निर्वाचित सरकार के प्रस्ताव के खिलाफ निर्णय करने का कोई प्राधिकार नहीं है। बावजूद इसके केंद्रशासित प्रदेशों में उपराज्यपाल, केन्द्र सरकार के इशारे पर काम करते हैं।

पुडुचेरी अकेले ही नहीं, दिल्ली में भी ह्यआप सरकार व उपराज्यपाल नजीब जंग के बीच लंबा टकराव चला। उसके बाद नये उपराज्यपाल अनिल बैजल के साथ भी आप सरकार के टकराव की खबरें आती रही हैं। उपराज्यपाल और आप सरकार के बीच चला विवाद, तो देश की शीर्ष अदालत भी पहुंचा। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली के मामले में राज्यपाल के अधिकारों को माना था, मगर पुडुचेरी के मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने शीर्ष अदालत से उलट, उपराज्यपाल के मुकाबले चुनी सरकार के अधिकारों को मान्यता दी है। यानी उसने स्पष्ट कर दिया है कि असली ताकत जनता द्वारा चुनी गई सरकार में निहित है।

उपराज्यपाल का काम सिर्फ मंत्रिमंडल की सलाह पर अमल करना ही है। अदालत के इस फैसले के बाद निश्चित तौर पर उपराज्यपाल, पुडुचेरी सरकार की दैनिक गतिविधियों में हस्तक्षेप नहीं कर सकेंगी।
सरकार अपना काम, बिना किसी दवाब के करेगी। उपराज्यपाल और सरकार के बीच अधिकारों की स्पष्ट व्याख्या से, भविष्य में इस तरह का कोई विवाद सामने नहीं आएगा। इस महत्वपूर्ण फैसले की रोशनी में अन्य केंद्रशासित प्रदेशों में अधिकारों के अतिक्रमण से जुड़े विवादों को निपटाने में भी मदद मिलेगी। इस तरह के मामलों में यह फैसला, नजीर साबित होगा।

जाहिद खान

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