राजा भोज का दरबार लगा हुआ था। इसी बीच द्वारपाल ने आकर कहा-‘‘ महाराज! एक फटेहाल व्यक्ति आपसे मिलने की हठ कर रहा है और वह स्वंय को आपका भाई बतलाता है। उसे अंदर भेजा जाए अथवा नहीं? राजा भोज तुरंत बोले, उसे सम्मानपूर्वक अंदर ले आओ। जैसे ही वह व्यक्ति दरबार में प्रविष्ट हुआ, राजाभोज सम्मान में खड़े हो गए और बोले-‘पधारिए भ्राताश्री, आपको हुए कष्ट के लिए में क्षमाप्रार्थी हूँ। बताइए, मौसी जी कुशल मंगल तो हैं?’ उस व्यक्ति ने उत्तर दिया-‘जब मैं यहाँ पहुँचा, तब मौसी जी कि दशा अत्यंत सोचनीय थी। संभवत: वे कुछ देर में प्राण त्याग देंगी।’ यह सुनकर राजाभोज ने अपने खजांची को आदेश दिया- ‘मेरे भ्राताश्री को मौसीजी के अंतिम संस्कार के लिए खजाने से एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ दे दीजिए।’
दरबार मेें उपस्थित सभी लोग इन दोनों का वार्तालाप सुनकर आश्चर्यचकित थे। तब राजा भोज ने कहा-‘आप लोग सोच रहें होगें कि यह क्या रहस्य है? वे कौन हैं और मैं इतने प्रेम से इससे क्योें बात कर रहा हूँ। मैं आपको बताना चाहता हूँ कि हमें सदा यह ध्यान रखना चाहिए कि अमीरी और गरीबी दो बहनों जैसी हैं। मैं राजा हूँ, अत: मैं अमीरी का पुत्र हूँ। यह फटेहाल गरीबी का बेटा है। अत: यह मेरा भाई हुआ। इसकी सहायता करना मेरा कर्त्तव्य है। मौसी के प्राण त्यागने की बात से इसका आशय है कि जब यह राजा के पास आया है तो उसकी गरीबी निश्चित रूप से दूर हो जाएगी।’ राजा भोज की ये बातें सुनकर सम्पूर्ण सभा उनके सद्व्यवहार और सूझ-बूझ को देखकर गद्गद हो उठी और राजा के साम्मान में करतल ध्वनि करने लगी।
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